हरियाणा विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले पंजाब-हरियाणा सीमा पर किसानों का आंदोलन फिर से सुलग रहा है. कुछ किसान यूनियनें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)के लिए कानूनी गारंटी सहित अपनी लंबे समय से अटकी हुई मांगों को लेकर दिल्ली की ओर मार्च के लिए समर्थन जुटा रही हैं. पिछले दिनों पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को शंभू सीमा खोलने के लिए कहा है. इसके बाद से ही ‘दिल्ली चलो मार्च’ का नेतृत्व करने वाली किसान यूनियनें अब हरियाणा सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रही हैं.
पंजाब से हरियाणा में प्रदर्शनकारी किसानों की आवाजाही को रोकने के लिए इस साल फरवरी में सीमा को बंद कर दिया गया था. किसान मजदूर संघर्ष समिति के सरवन सिंह पंढेर ने कहा, 'हम शंभू सीमा पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे हैं. आदेश मिलने के बाद हम बैठक करेंगे और रणनीति तैयार करेंगे. हमें सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सुझाई गई समिति से सकारात्मक परिणाम की उम्मीद नहीं है.' सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पंजाब और हरियाणा को किसानों के मुद्दों पर चर्चा के लिए एक समिति गठित करने का प्रस्ताव दिया है. इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि सरकारों और किसानों के बीच 'विश्वास की कमी' है.
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इस बीच हाई कोर्ट के फैसले ने उन किसानों को प्रोत्साहन दिया है जो दिल्ली चलो मार्च की अपील के लिए नए सिरे से एक दृष्टिकोण शुरू करने की योजना बना रहे हैं. यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब हरियाणा में अगले तीन महीनों में चुनाव होने वाले हैं. इसने राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पार्टी को हाल ही में लोकसभा चुनावों में किसानों, खासकर जाट समुदाय के विरोध का सामना करना पड़ा था और वह 10 में से पांच सीटें हार गई थी. पार्टी ने जिन सीटों पर हार का सामना किया, उनमें से अधिकांश ग्रामीण हैं. शहरी सीटों पर भी जीत का अंतर काफी कम हुआ है.
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विपक्षी कांग्रेस के हाथों पांच लोकसभा सीटें हारने के बाद, बीजेपी को लगने लगा है कि किसानों की नाराजगी को भुनाने से आगामी विधानसभा चुनावों में उसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंच सकता है. राज्य सरकार ने राजनीतिक नुकसान को कम करने और ग्रामीण क्षेत्रों में अपना आधार मजबूत करने के लिए किसान संपर्क कार्यक्रम शुरू किया है. ये वो क्षेत्र हैं जहां कांग्रेस मजबूत होकर उभरी है. किसानों में से अधिकांश प्रभावशाली जाट समुदाय से आते हैं, जो 90 विधानसभा सीटों में से 40 पर खासा असर डालता है.
आंदोलन को फिर से गति देने के लिए किसान यूनियनों ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी से मुलाकात की. उन्होंने राहुल से मुलाकात कर पंजाब और हरियाणा के गैर-बीजेपी सांसदों के साथ अपने मांग पत्र साझा किए. उन्होंने यूपी, जींद और पिपली (हरियाणा में) में महापंचायत करने से लेकर 15 अगस्त को ट्रैक्टर मार्च निकालने और नए आपराधिक कानूनों की प्रतियां और प्रधानमंत्री के पुतले जलाने तक सब कुछ की योजना बनाई है. इस साल फरवरी में पंजाब के दो प्रमुख किसान यूनियनों द्वारा शुरू किए गए दिल्ली चलो मार्च को अब राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य दिया जा रहा है.
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पिछले पांच महीनों से शंभू सीमा पर डेरा डाले हुए किसान मजदूर संघर्ष समिति और बीकेयू (गैर-राजनीतिक) सहित दो प्रमुख किसान यूनियनों को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के अलावा सर्वोच्च न्यायालय में मामला उजागर होने के बाद नई जान मिल गई है. किसान यूनियनें अब आंदोलन को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही हैं. 31 अगस्त को दिल्ली चलो मार्च का विरोध प्रदर्शन अपने 200 दिन पूरे कर लेगा. विरोध प्रदर्शन की अगुआई कर रहे किसान यूनियनों ने पंजाब और हरियाणा के किसानों से भी इस दिन खनौरी और शंभू बॉर्डर पर पहुंचने की अपील की है.
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किसान यूनियनें 1 सितंबर 2024 को उत्तर प्रदेश में एक मेगा रैली करेंगी. इसके बाद 15 और 22 सितंबर को हरियाणा के जींद और पीपली में दो रैलियों का आयोजन होगा. एक दर्जन किसान नेताओं के एक समूह ने संसद में राहुल गांधी से मुलाकात की. राहुल ने भरोसा दिया है कि वह एमएसपी पर कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए इंडिया गठबंधन के नेताओं के साथ किसानों द्वारा उठाई गई मांगों पर चर्चा करेंगे. किसान यूनियनें विपक्ष की तरफ से पेश किए गए निजी विधेयकों के समर्थन में एक मार्च का आयोजन भी करेंगी. उन्होंने नए आपराधिक विधेयक की प्रतियां जलाने की भी घोषणा की है.
दो अलग-अलग किसान संगठनों द्वारा विपक्षी नेताओं से मुलाकात करने और विरोध प्रदर्शन की योजना बनाने के बावजूद, सबसे बड़ा किसान गठबंधन, संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम), जिसमें लगभग 40 यूनियनें शामिल हैं, का कहना है कि सरकार के खिलाफ किसी बड़े केंद्रीय आंदोलन की फिलहाल कोई योजना नहीं है. प्रमुख किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने घोषणा की, 'हमने केंद्र सरकार और विपक्षी गुट को बैठकों के लिए संकेत भेजे हैं और जल्द ही औपचारिक निमंत्रण के साथ आगे बढ़ेंगे. हमने 9 अगस्त को देश भर के सभी जिलों में ट्रैक्टर मार्च आयोजित करने का फैसला किया है.'
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किसान समूहों के बीच परस्पर विरोधी आंदोलन केंद्र सरकार के साथ शिकायतों को दूर करने के लिए एक टूटे हुए दृष्टिकोण को सामने लाते हैं. एसकेएम सबसे महत्वपूर्ण संगठन बना हुआ है, जो एक व्यापक गठबंधन का प्रतिनिधित्व करता है, फिर भी व्यक्तिगत समूह अपने रास्ते पर चल रहे हैं. टिकैत की टिप्पणी गुरनाम सिंह चढूनी जैसे कुछ किसान नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भी सामने लाती है, जो आने वाले विधानसभा चुनावों पर नजर गड़ाए हुए हैं.
इस मामले पर, टिकैत ने एक स्पष्ट सीमा रेखा खींचते हुए कहा, 'चढूनी एसकेएम का हिस्सा नहीं हैं और वह जो भी कदम उठाना चाहते हैं, उठाने के लिए आजाद हैं. हम उनके प्रति जवाबदेह नहीं हैं.' यह अंतर किसान आंदोलनों के भीतर एक महत्वपूर्ण विभाजन को रेखांकित करता है, जो विभिन्न एजेंडों और रणनीतिक दृष्टिकोणों के बारे में बताता है. एसकेएम अपनी मुख्य मांगों, विशेष रूप से एमएसपी के लिए कानूनी स्थिति और ट्रैक्टरों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए विचारधारा को मजबूत कर रहा है. इन मांगों को किसान समुदाय के अंदर बड़ा समर्थन हासिल है.
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बीजेपी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार ने अब उन किसानों को शांत करना शुरू कर दिया है, जिन्होंने हाल ही में एसकेएम के बैनर तले हरियाणा सरकार के अधिकारियों से एमएसपी पर कानूनी गारंटी का मुद्दा उठाने के लिए मुलाकात की थी. किसानों ने हरियाणा सरकार को अल्टीमेटम देते हुए 15 अगस्त तक उनकी मांगों पर कार्रवाई करने को कहा है, नहीं तो वो अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे. बीकेयू के हरियाणा अध्यक्ष रतन मान ने कहा, 'हमने अपना आंदोलन स्थगित करने का फैसला किया है और उम्मीद है कि सरकार 15 अगस्त तक कोई समाधान निकालेगी.अगर मुद्दे अनसुलझे रहे तो 15 अगस्त के बाद आगे की कार्रवाई तय की जाएगी.'
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किसान संघ ने 30 सूत्रीय मांगपत्र पेश किया है, जिसमें एमएसपी के लिए कानूनी ढांचा, लंबे समय से अटका फसल क्षति मुआवजे का जल्द वितरण, फसलों की खरीद के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन बंद करना और फसल क्षति मुआवजा पाने की प्रक्रिया को सरल बनाना शामिल है. किसानों ने सरकार से कहा है कि खरीफ 2023 के बाढ़ प्रभावित जिलों के लिए मुआवजा पूरी तरह से जारी नहीं किया गया है. दिलचस्प बात यह है कि शंभू सीमा मुद्दे पर हरियाणा के किसान संघों ने चर्चा नहीं की, जो केवल स्थानीय मुद्दों पर अड़े रहे.
किसान नेताओं ने कहा कि उनका भविष्य का कदम अदालत के आदेश पर निर्भर करेगा. अगर सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के अनुसार 'तटस्थ व्यक्तियों' वाली समिति किसानों से बातचीत करती है और मांगों का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने की कोशिश करती है, तो उनका फैसला बदल सकता है. किसान यूनियनों और केंद्र के बीच कई दौर की बातचीत विफल रही है. इस बीच, हरियाणा सरकार, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और हरियाणा के वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता लोकेश सिंहल ने अदालत को सूचित किया है कि शंभू बॉर्डर पर बख्तरबंद टैंक जैसे दिखने वाले 500-600 से अधिक मॉडिफाइड ट्रैक्टर तैनात किए गए हैं. इन्हें अगर सीमा से आगे जाने दिया गया तो कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है.