महाराष्ट्र में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और इन चुनावों से पहले हाल ही में आम बजट पेश किया गया है. राज्य के प्याज उत्पादक क्षेत्र को बजट में कोई राहत नहीं मिली है. ऐसे में प्याज की खेती करने वाले किसान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से काफी नाराज हैं. इन नाराज किसानों ने अब लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनावों में बीजेपी और महायुति गठबंधन को सबक सिखाने की कसम खाई है. गौरतलब है कि महायुति ने हाल ही में हुए चुनावों में महाराष्ट्र के मुख्य प्याज उत्पादक क्षेत्र की छह लोकसभा सीटों में से एक को छोड़कर बाकी सभी सीटें खो दी थीं.
बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को हाल के लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र के प्याज क्षेत्र में झटका लगा था. इसका मुख्य कारण फसल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना था. अब विधानसभा चुनावों में उसे और ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. व्यापारियों और किसानों ने केंद्रीय बजट में प्याज पर प्रतिबंध नहीं हटाने पर अपनी निराशा जताई है. अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी के नेता ने यह माना है कि प्यात के फ्री एक्सपोर्ट पर लगे प्रतिबंध का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा है. नासिक में बीजेपी के इस नेता ने कहा कि लंबे समय से लगा प्रतिबंध पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रहा है. उनकी मानें तो नेता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को इसके राजनीतिक प्रभाव के बारे में समझाने में सक्षम नहीं थे.
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डिंडोरी, नासिक, बीड, औरंगाबाद, अहमदनगर और धुले लोकसभा सीटें राज्य की प्याज बेल्ट हैं, जो देश के प्याज उत्पादन का लगभग 34 फीसदी हिस्सा है. अकेले नासिक में राज्य की प्याज की खेती का 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सा है. औरंगाबाद को छोड़कर, जहां एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के संदीपन भुमारे ने जीत हासिल की, ये सभी अन्य सीटें एनडीए द्वारा खो दी गईं. अहमदनगर और बीड में, एनसीपी (शरद पवार) के नीलेश लंके और बजरंग सोनवणे जैसे नए लोगों ने क्रमशः सुजय विखे-पाटिल और पंकजा मुंडे जैसे बीजेपी के दिग्गजों को हराया.
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एकनाथ शिंदे के गुट वाली शिवसेना के नेता जो नासिक जिले के बलगन तालुका से हैं, उनका कहना है कि विपक्ष लगातार प्याज की कीमतों का मुद्दा उठा रहा है. उन्होंने कहा,'हमने अपने नेताओं से केंद्र के सामने निर्यात का मुद्दा उठाने को कहा था. विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और बजट में इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई है, इसलिए यह हमारे लिए उल्टा पड़ सकता है.' डिंडोरी लोकसभा सीट के एक किसान, जिन्होंने हाल ही में हुए चुनावों में एनसीपी (शरद पवार) को वोट दिया था, ने कहा, 'पिछले साल प्याज की कीमतें निर्यात प्रतिबंध के कारण कम रहीं. मुझे लगा था कि सरकार बजट में प्रतिबंध हटा लेगी, लेकिन केंद्र ने इससे कोई सबक नहीं सीखा है. विधानसभा चुनावों में भी यह मुद्दा बना रहेगा. हममें से ज्यादातर लोग सरकार के इस कदम से निराश हैं.'
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शरद पवार की एनसीपी के शिरूर से चुने गए सांसद अमोल कोल्हे ने भी किसानों की राय दोहराई है. उन्होंने महायुति सरकार पर राज्य में कृषि संकट को दूर करने में असफल रहने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि चाहे प्याज हो या सोयाबीन, सरकार ने इन पर आंखें मूंद ली हैं. आने वाले विधानसभा चुनावों में उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. सोयाबीन मराठवाड़ा और विदर्भ के पिछड़े क्षेत्रों में उगाई जाने वाली मुख्य फसलों में से एक है, जबकि डेयरी किसान कम कीमत मिलने के कारण राज्य सरकार के खिलाफ खड़े हैं. 28 जून को पेश किए गए महाराष्ट्र के बजट में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने डेयरी किसानों के लिए 5 रुपये प्रति लीटर सब्सिडी की घोषणा की थी.
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पिछले साल दिसंबर में, केंद्र ने महाराष्ट्र में सूखे के कारण कम उत्पादन की आशंका के चलते प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस साल मार्च में, केंद्र ने प्रतिबंध हटा दिया, लेकिन कुछ शर्तों के साथ यह प्रतिबंध हटाया गया था. सरकार ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 550 डॉलर प्रति टन और 40 फीसदी निर्यात शुल्क तय किया था. किसानों ने इसे एक ऐसा कदम बताया था जिसने एक्सपोर्ट चेन को 'निचोड़' दिया है. उनका कहना था कि सरकार के फैसले से प्याज की कीमत प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में बहुत ज्यादा हो गई हैं.
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देश के सबसे बड़े लासलगांव थोक बाजार में प्याज का कारोबार 'संतोषजनक' है. वर्तमान समय में यह 2,600-2,800 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है. प्याज उत्पादकों के संघ के अध्यक्ष भरत दिघोले ने कहा कि यह ट्रेंड सिर्फ पिछले 15 दिनों से बना हुआ है. उन्होंने कहा, कि अगर नुकसान का आकलन किया जाए तो यह कीमत उसका हिसाब नहीं दे पाएगी. उन्होंने बताया कि पहले, किसानों को अपनी उपज को औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता था. ऐसे में अगर सरकार ने तुरंत उपाय नहीं किए तो फिर लोकसभा का हाल विधानसभा चुनावों में भी दोहराए जाने की आशंका है.
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