राजधानी दिल्ली में मंगलवार को 'कॉमन्स कन्वेनिंग' कार्यक्रम की शुरुआत हुई और यह कार्यक्रम तीन दिनों तक चलेगा. इस कार्यक्रम के पहले दिन सात ऐसे लोगों ने शिरकत की जिन्हें चेंजमेकर्स का दर्जा हासिल है. कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने दोहराया कि कॉमन्स को समझने के लिए सामूहिक कार्रवाई और सामुदायिक भागीदारी- दो अहम स्तंभ हैं. कार्यक्रम का आयोजन नई दिल्ली में डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में हो रहा है. कॉमन्स कन्वेनिंग का यह तीन दिवसीय कार्यक्रम भारत के पारिस्थितिक कॉमन्स के शासन के सामने आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियों से निपटने के लिए 20 से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्टेकहोल्डर्स जैसे, सरकारी अधिकारियों, आम नागरिकों, शोधकर्ताओं और विभिन्न सामुदाय के प्रतिनिधियों को एक साझा मंच प्रदान करता है.
साल 2022 में प्रकृति मित्र पुरस्कार से सम्मानित ओडिशा के जिशुदान दिशारी ने कॉमन्स- संरक्षण की अपनी यात्रा के बारे में बताया, 'जब मैं छोटा था तब मुझे मेरी दादी ने बताया था कि प्रकृति ही लोगों को बचाएगी. लेकिन मैं जैसे-जैसे बड़ा हुआ, मैंने मिट्टी के क्षरण और अपने गांव के जंगलों को कम होते देखा तो महसूस किया कि अब लोगों को ही प्रकृति को बचाना होगा. इसने मुझे प्राकृतिक संसाधनों को पुनर्जीवित करने हेतु पेड़ लगाने, सिंचाई प्रणाली जैसी संरक्षण तकनीकों की खोज शुरू करने के लिए प्रेरित किया.' आज जीशुदान अपने आस-पास के गांवों के 50 से अधिक युवाओं और 100 महिलाओं के साथ काम करता है और वह कॉमन्स के संरक्षण में समाज से व्यापक भागीदारी का अनुरोध और प्रोत्साहित करता है.
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उन्होंने भारत में चल रहे ऐसे कई समुदाय-नेतृत्व वाले संरक्षण प्रयास की तरफ इशारा किया. साथ ही सम्मेलन से एक कानून बनाने के लिए सबको एक साथ आने का आग्रह किया जो उन्हें सशक्त बनाए और यह सुनिश्चित करे कि नीतियां बाधा बनकर न खड़ी हों. उद्घाटन सत्र में सामुदायिक प्रबंधन के लिए उत्कृष्ट कार्य करनेवाले चेंजमेकर्स को 'चेंजमेकर फॉर कॉमन्स' को सम्मानित किया गया. इस सत्र में सतत विकास और जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों के लिए 2030 एजेंडा हासिल करने में कॉमन्स के महत्व पर जोर देने हेतु गहन चर्चा, सहयोगात्मक शिक्षण और रणनीतिक योजना पर बल दिया गया.
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नागालैंड के वाई नुक्लू फोम को साल 2021 में बजैव विविधता संरक्षण के लिए प्रतिष्ठित व्हिटली पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्होंने कहा, 'मैं नागालैंड के योंग्यिमचेन गांव से आया हूं. हमारे शिकारी समुदाय के लिए शिकार करना बंद करना और बंदूकों से शूटिंग करना छोड़कर कैमरों से शूटिंग करना एक चुनौती थी. इस परिवर्तन से जैव विविधता फिर से दिखाई देने लगी. जल्द ही हमारे जंगल के क्षेत्रों में अमूर बाज आने शुरू हो गए. उनका आना, हमारे नीति निर्माताओं और समुदाय के लीडरों के बीच एक संयोजक के रूप में काम कर गया.'
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बेंगलुरू की लेखिका और लेक एक्टिविस्ट उषा राजगोपालन ने इस परिचर्चा में शहरी परिप्रेक्ष्य को जोड़ा. उन्होंने कहा, 'कॉमन्स सिर्फ गांवों के लिए प्रासंगिक नहीं है, न ही यह जंगल और ग्रामीण प्राकृतिक संसाधनों तक सीमित हैं. बल्कि यह शहरों में और भी अधिक प्रासंगिक है. अगर हम शहरों को रहने योग्य नहीं बनाते हैं, तो लोग अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, जमीन हड़पेंगे और गांवों को शहरों में बदल देंगे.'
उद्घाटन सत्र में भाग लेने वाले प्रमुख वक्ता थे- राजेश एस कुमार, आईएफएस, वन महानिरीक्षक, MoEFCC; मुनिराजू एसबी , उप सलाहकार, नीति आयोग; सुदर्शन अयंगर , अध्यक्ष, फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी; रंजन कुमार घोष , एसोसिएट प्रोफेसर, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद; जीनत नियाज़ी , मुख्य सलाहकार, सर्कुलर इकोनॉमी और क्लाइमेट रेजिलिएंस प्रोग्राम, डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स.
उप-राष्ट्रीय स्तर पर कॉमन्स को संस्थागत बनाने की आवश्यकता पर आगे बोलते हुए, राजेश एस कुमार ने कहा, 'समानता और तात्कालिकता की सोच के साथ कॉमन्स की चुनौती का समाधान करने के लिए हमें सरकार और समुदायों के बीच मेल बना कर उच्च स्तरीय और सहयोगी कार्य करने की आवश्यकता है. भारत में पंचायत स्तर पर बहुत अधिक स्थानीय ज्ञान और जानकारियां है और उप-राष्ट्रीय जुड़ाव कॉमन्स के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं.' इस सम्मेलन का आयोजन सहभागी संस्थाओं के एक समर्पित गठबंधन द्वारा किया जा रहा है जिसमें कॉमन ग्राउंड, फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी, लैंडस्टैक, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS)-मुंबई, UNDP इंडिया और डिज़ाइन पार्टनर कोलैबोरेटिंग फॉर रेजिलिएंस (CoRe) शामिल हैं.
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भारत के कॉमन्स, जैसे सामुदायिक वन, चारागाह और जल निकाय के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता. ये संसाधन 20.5 करोड़ एकड़ क्षेत्र से अधिक भूभाग में फैले हैं, जो कि भारत के कुल भूभाग का एक चौथाई हिस्सा है. साथ ही यह क्षेत्र 35 करोड़ से ज्यादा गरीब गांववालों की आजीविका के लिए जरूरी है. कॉमन्स की तरफ से उन्हें भोजन, पानी, दवा, जलावन की लकड़ी और इमारती लकड़ी जैसे महत्वपूर्ण संसाधन मुहैया करते हैं. इसके अलावा स्वच्छ जल, उपजाऊ मिट्टी, परागण, कीट नियंत्रण और कार्बन भंडारण सहित महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं भी उपलब्ध कराते हैं. ये मौजूदा जलवायु संकट के काल में स्थानीय कृषि-भूमि और आजीविका को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है. हालांकि इन सामान्य संसाधनों का मूल्य बहुत अधिक है, लेकिन स्थानीय समुदाय उनके सतत उपयोग को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए जिन प्रणाली और परंपराओं को अपनाते हैं, वे भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं.