पूरे देश में मॉनसून फुल मोड में एक्टिव है और अच्छी बारिश ने इस बार धान की खेती करने वाले किसानों के लिए काफी उम्मीदें जगा दी हैं. लेकिन वहीं कृषि विशेषज्ञों की मानें तो धान की खेती करने वाले किसानों को थोड़ा सावधान रहने की जरूरत होती है. उनकी मानें तो अगस्त वह महीना है जो धान की खेती के लिए काफी नाजुक माना जाता है. उनका कहना है कि यह वह समय होता है जब धान की फसल में फुटाव होता है. ऐसे में अगर किसानों ने थोड़ी भी लापरवाही दिखाई तो सारी फसल चौपट हो सकती है. जानें आखिर ऐसा क्या होता है कि विशेषज्ञ अगस्त के महीने में किसानों को सावधान रहने की सलाह देते हैं.
धान की खेती पर करीब से नजर रखने वाले कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसान अगस्त के महीने में लापरवाह रहेंगे तो फिर धान में फुटाव कम होगा और पैदावार में कमी आ सकती है. ऐसे में धान की रोपाई जिन खेतों में होती है वहां पर फुटाव के लिए किसानों को बताए गए खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव करते रहना चाहिए. साथ ही यूरिया खाद का भी खास ध्यान रखने की जरूरत है. अगर धान की फसल में पानी जमा हो जाए तो फिर पौधे का तना तक गल जाता है. इससे फुटाव पर बुरा असर पड़ सकता है.
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फसल में भरपूर फुटाव हो इसके लिए खेतों की हल्की सिचाईं भी करते रहे. खेतों पर बनी मेढ़ों की जरिये लगातार पानी रिसता रहता है. फसल में जो दवा डाली गई है और जो उर्वरक प्रयोग किए जाते हैं, वो पूरी तरह से पानी में घुल जाते हैं. इसकी वजह से वो भी पानी के साथ रिस जाते हैं. बारिश के मौसम में गहरे खेतों को हल्की सिचाईं की जरूरत होती है. इससे अचानक बारिश में फसल डूबकर खराब होने से बच जाती है.
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किसानों को ध्यान रखना होगा कि फसल में शाम के समय ही उर्वरक डालने हैं और वह भी कम पानी के साथ. अगर वो सुबह उर्वरक डालते हैं तो फिर वह शाम तक पानी में घुलकर भाप बनकर उड़ जाएगा और उसका कोई फायदा नहीं होगा. विशेषज्ञों के मुतबिक शाम के समय डाला गया 30 किलो उर्वरक सुबह के 50 किलोग्राम उर्वरक के बराबर ही होता है. अगर खेत में बारीक धान बोया गया है तो फिर सिर्फ एक बैग यूरिया की खुराक ही काफी है. वहीं बाकी में दो कट्टो तक यूरिया की जरूरत होती है.
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धान के किसानों को अगर अच्छा फसल का फुटाव हासिल करना है तो फिर उसे सफेदा रोग, खैरा रोग, झुलसा रोग, दीमक से बचाने की सख्त जरूरत है. इन रोगों से फसल बची रही तो अच्छा फुटाव होगा. पैदावार किसान को अच्छी मिलेगी व आमदनी लागत के हिसाब से होगी. खैरा रोग जिंक की कमी से होता है और इस रोग की वजह से फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती है. इससे बचाने के लिए किसानों को एक हेक्टेयर खेत में 20 किलो यूरिया और 5 किलो तक जिंक सल्फेट का छिड़काव करना चाहिए. पानी के साथ करने पर दो किलो यूरिया और पांच किलो जिंक काफी है.
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वहीं सफेदा रोग आयरन की कमी से होता है और इसमें फसल की पत्तियां सफेद पड़ जाती है. धीरे-धीरे वो सूखने लगती है. पांच किलो फेरस सल्फेट को 20 किलो यूरिया के साथ मिलाकर छिड़काव करने से फायदा मिलता है. झुलसा रोग धान के पौधों का बढ़ना रुक जाता है. इसके लक्षण दिखने पर स्टेप्टोसाइक्लीन दवा चार ग्राम को पांच सौ ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड के साथ आठ सौ से एक हजार लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से फायदा मिलता है.
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अगर धान की खेती में दीमक लग जाए तो पूरी फसल को चट कर सकता है. जैसे ही दीमक लगे तो तार ताप हाइड्रोक्लोराइड चार से छह किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जा सकता है. फोरेट 10 जी दवा आठ से 10 किलो एक हजार लीटर पानी में घोल तैयार कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. साथ ही फसलों की निराई करते हैं और घास पैदा न होने दें.
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