बिहार सरकार के द्वारा चौर वाले इलाके में मछली पालन की मदद से किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा रहा है. जहां कभी पूरे साल जलजमाव हुआ करता था. अब वैसे इलाकों में मछली पालन समृद्धि का रास्ता खोल रहा है. कुछ ऐसा ही देखने को मिला समस्तीपुर जिला के सरायरंजन प्रखंड के सहजादापुर गांव में, जहां कभी कई एकड़ जमीन में पूरे साल पानी भरा रहता था. धान की कटाई नाव पर हुआ करती थी. लेकिन पिछले डेढ़ दशक से इस गांव के अलावा आसपास के ग्रामीणों के लिए चौर इलाके की जमीन आर्थिक पक्ष को मजबूत करने का माध्यम बन चुकी है. यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि सरकार के द्वारा चौर इलाकों को मछली पालन के रूप में विकसित किया गया है. इस इलाके में जल निकासी की बेहतर संभावना नहीं होने से पिछले कुछ सालों से मछली के व्यवसाय में घाटा लग रहा है. शुरुआत के दिनों में जिस रफ्तार से इसका विकास हुआ, उसके बाद से विकास की गाड़ी इधर बहुत धीमी दिख रही है.
सरायरंजन प्रखंड के सहजादापुर सहित मियारी गांव की करीब 110 एकड़ जमीन चौर इलाके में आती है. वहीं साल 2011 में बिहार सरकार के मत्स्य व पशुपालन संसाधन विभाग के द्वारा समेकित कृषि प्रणाली के तहत मछली पालन के लिए चौर क्षेत्र का विकास किया गया. करीब 44 किसानों के द्वारा 80 से 90 एकड़ के आसपास की जमीन में मछली पालन किया जा रहा है. वहीं शेष भागों में किसान रबी फसल की खेती करते हैं. हर साल करोड़ों रुपये का मछली का कारोबार है.
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किसान तक से बातचीत करते हुए 65 वर्षीय कौशल किशोर कहते हैं कि उनकी भी करीब 06 बीघा जमीन चौर इलाके में आती है. लेकिन आज से करीब 36 साल पहले यानी 1987 तक यहां धान की खेती होती थी. मजदूर धान की कटाई नाव पर चढ़कर करते थे. मजदूरों की कमी होने के बाद खेती पूरी तरह से बंद हो गई. लेकिन बिहार सरकार की मदद से चौर इलाके की जमीन को पायलट प्रोजेक्ट तहत मछली पालन के लिए विकसित किया गया. इसके बाद से किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है. कभी इस जमीन से एक रुपये तक की कमाई नहीं होती थी. लेकिन अब किसान साल के लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं. वहीं अनिल ठाकुर कहते हैं कि कभी पूरे इलाके में पानी होने से जमीन होने के बाद भी किसान बिना जमीन के थे. मगर अब ऐसा नहीं है. अब यहां के किसान मछली पालन से जीवन की गाड़ी को बेहतर ढंग से चला रहे हैं. कौशल किशोर कहते हैं कि वे खुद चार से पांच लाख तक की कमाई कर रहा हैं.
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सहजादापुर गांव के रिषभ कुमार कहते हैं कि जिस नाले की मदद से चौर का पानी जमुआरी नदी में जाता था. उस नाले का मार्ग बंद होने से पानी बाहर नहीं जा पाता है. इसकी वजह से चौर में ही पानी का जमाव हो रहा है. कोरोना के बाद से ही जलजमाव की समस्या बनी हुई है. जल निकासी को लेकर सरकार के द्वारा बात की जा रही है. लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं हुआ है. वहीं पिछले साल के दौरान चौर इलाके में अधिक पानी होने से लाखों रुपये की मछली बह गई. अगर सरकार जल निकासी की व्यवस्था कर दे तो घाटे में चल रहे मछली व्यवसाय को फिर से एक नई उड़ान मिल सकती है.