बीते कुछ साल से देश में झींगा के घरेलू बाजार को तैयार करने और जो है उसे मजबूत करने की मांग उठ रही है. हाल ही में इसी तरह की मांग विदेश मंत्री एस. जयशंकर के सामने भी उठाई गई थी. सूरत, गुजरात में विदेश मंत्री एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे, जहां झींगा उत्पादक किसानों ने घरेलू बाजार बनाने तैयार करने की मांग उठाई. इस पर विदेश मंत्री ने लोकल फॉर वोकल और वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट का हवाला देते हुए किसानों की मांगों से सहमति जताई है.
उन्होंने अपील करते हुए कहा है कि हमे अपने घरेलू प्रोडक्ट को अपनाना चाहिए. साथ ही हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम आसानी से दूसरे देशों को अपने बाजार में दखल ना देने दें. भारतीय बाजार बहुत कीमती है. बाजार में जान घरेलू डिमांड से ही आती है. फिर वो चाहें कोई प्रोडक्ट हो या फिर टूरिज्म. उन्होंने मांग करने वाले झींगा उत्पादक किसान मनोज शर्मा को यकीन दिलाते हुए कहा कि इस दिशा में हम पूरी कोशिश करेंगे.
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देश में हर साल करीब 10 लाख टन झींगा का उत्पादन होता है. इसमे से सात लाख टन के करीब झींगा कई देशों को एक्सपोर्ट हो जाता है. ऐसे में बचता है तीन लाख टन झींगा. इसी बचे हुए झींगा को लेकर बीते कुछ साल से चर्चाएं हो रही हैं. इसी झींगा का असर एक्सपोर्ट पड़ रहा है. तीन लाख टन झींगा की वजह से ही इंटरनेशनल बाजार में रेट और डिमांड पर असर पड़ रहा है. देश के झींगा उत्पादक किसानों को घाटा उठाना पड़ रहा है. आंध्रा प्रदेश में तो कई किसानों ने घाटे से उबरने के लिए झींगा के तालाब तक बेच दिए हैं.
झींगा एक्सपर्ट मनोज ने बताया कि हमारे देश में करीब 160 लाख टन मछली खाई जाती है. दो हजार रुपये किलों तक की मछली भी खूब बिकती है. लेकिन झींगा को हमारे 140 करोड़ की आबादी वाले देश में ग्राहक नहीं मिल पाते हैं. जबकि झींगा तो सिर्फ 350 रुपये किलो है. दो सौ से ढाई सौ रुपये किलो का रेड मीट खाया जा रहा है.
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जिसमे करीब 15 फीसद प्रोटीन है, जबकि झींगा में 24 फीसद प्रोटीन होता है. जरूरत बस इतनी भर है कि अगर देश के दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, चंडीगढ़, बेंग्लोर आदि शहरों में भी झींगा का प्रचार किया जाए तो इसकी खपत बढ़ सकती है. यूपी और राजस्थान तो विदेशी पर्यटको के मामले में बहुत अमीर हैं. वहां तो और भी ज्यादा संभावनाएं हैं.