बेशक क्लाइमेट चेंज को लेकर अभी उतनी गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है जितने की जरूरत है. लेकिन खतरे की घंटी बज चुकी है. किसी एक-दो जगह नहीं अब हर एक फील्ड में इसका असर दिखाई देने लगा है. समुंद्र भी इससे अछुता नहीं रहा है. समुंद्र में पलने वाली मछलियों पर भी क्लाइमेट चेंज का असर होने लगा है. यही वजह है कि समुंद्र की सतह पर पलने वाली मछलियों ने अब सतह को छोड़ना शुरू कर दिया है. हाल ही में महाबलिपुरम, तमिलनाडू में एक इंटरनेशनल कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया था.
विषय था मरीन फिशरीज और क्लाइमेट चेंज. इस मौके पर डिप्टी डायरेक्टर जनरल जेके जैना (फिशरीज साइंस), इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च ने मरीन फिशरीज पर क्लाडइमेट चेंज के हो रहे प्रभाव पर कई अहम जानकारियां सामने रखीं.
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डीडीजी जेके जैना ने कॉन्क्लेव के दौरान बताया कि कलाइमेट चेंज का असर इतना होने लगा है कि मछलियां अब अपनी जगह को छोड़ने लगी हैं. जैसे समुंद्र की सतह पर रहने वाली मछलियां ने सतह को छोड़ना शुरू कर दिया है. एक खास प्रजाति की मछली सतह पर रहती थी. लेकिन अब ये 50 मीटर गहरे पानी में पकड़ी जा रही है. ये एक बड़ा और खतरनाक संकेत है. इतना ही नहीं मछलियों के साइज और वजन पर भी इसका असर पड़ रहा है.
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डीडीजी जेके जैना ने बताया कि क्लााइमेट चेंज के चलते समुंद्री सतह का तापमान बढ़ रहा है. इसके चलते मछलियों की फेनोलॉजी पर प्रभाव पड़ रहा है. इसी बड़ी वजह के चलते कुछ मछलियों का वजन और साइज घट रहा है. जैसे बॉम्बे डक प्रजाति 232 एमएम से घटकर 192 एमएम जैसे छोटे आकार में मैच्योर हो रही है. और अगर वजन की बात करें तो पहले सिल्वर पॉम्फ्रेट 410 ग्राम के आकार में मैच्योंर होता था, लेकिन अब 280 ग्राम पर मैच्योर हो रहा है. ऐसे ही समुंद्री झींगा की लंबाई में भी कमी देखी गई है.