खेती के बाद अब पोल्ट्री (मुर्गी पालन) में भी कांट्रेक्ट सिस्टम शुरू हो गया है. खासतौर पर ब्रॉयलर इंटिग्रेशन फार्मिंग (चिकन) में कंपनियां इंटीग्रेशन पोल्ट्री एग्रीमेंट कर रही हैं. इसके तहत फार्मर को मुर्गी के चूजे (चिक्स) दे दिए जाते हैं. फिर एक तय वजन के तैयार होने पर उन्हें ले लिया जाता है. इसके बदले पहले से तय प्रति किलो रेट के हिसाब पोल्ट्री फार्मर को पेमेंट कर दिया जाता है. रेट और दूसरी शर्तें आदि सब एक एग्रीमेंट में तय हो जाती हैं. लेकिन उड़ीसा से लेकर पंजाब तक के फार्मर का आरोप है कि कंपनियां उन्हें एग्रीमेंट की कॉपी नहीं देती हैं.
जबकि एग्रीमेंट के नाम पर फार्मर से तमाम दस्तावेज और एडवांस खाली चेक ले लिए जाते हैं. इतना ही नहीं फार्मर और पोल्ट्री एसोसिएशन की डिमांड पर केन्द्र सरकार द्वारा लागू पॉलिसी को भी कंपनियां नहीं मान रही हैं. अफसोस की बात ये है कि पॉलिसी लागू कराने में राज्य सरकारें भी पूरी तरह से सहयोग नहीं कर रही हैं.
ये भी पढ़ें: Poultry: अंडे-चिकन के बारे में सोशल मीडिया पर फैलाई जा रहीं ये पांच बड़ी अफवाहें, जानें सच्चाई
पोल्ट्री फार्मर ब्रॉयलर वेलफेयर फेडरेशन के सचिव संजय शर्मा ने किसान तक को बताया, ‘सही दाम न मिलना तो एक बड़ी परेशानी है ही, लेकिन कंपनियों ने कुछ ऐसी मनमानी शर्तें लगा रखी हैं जो हंटर का काम करती हैं. ये वो शर्त हैं जो दर्द होने पर रोने भी नहीं देती हैं. ब्रॉयल मुर्गे को पालन पर जो लागत आती है उसके मुकाबले कंपनियां बहुत ही कम रेट देती हैं. कई ऐसे खर्च हैं जिन्हें कंपनियां लागत में नहीं जोड़ती हैं. इससे भी बड़ी बात ये है कि अगर प्राकृतिक आपदा के चलते चूजों या मुर्गों की मौत होती है तो उसकी भरपाई कंपनियां फार्मर से करती हैं.
चूजे देते वक्त उनकी क्वालिटी नहीं बताई जाती हैं, जैसे उनका वजन और उन्हें लगी वैक्सीन के बारे में. फीड देते वक्तक उसकी क्वालिटी के बारे में नहीं बताया जाता है. दाने में क्या-क्या मिलाया गया है बोरी पर इसकी कोई जानकारी नहीं होती है. मुर्गा तैयार होने पर कंपनियां वक्त से माल नहीं उठाती हैं. इससे लागत बढ़ जाती है.
ये भी पढ़ें- Poultry Egg: क्या है केज फ्री अंडा, भारत में इसकी क्यों होने लगती है चर्चा, जानें पोल्ट्री एक्सपर्ट की राय
एक वक्त ऐसा आता है जब मुर्गा दाना ज्यादा खाता है और वजन कम बढ़ता है. इससे लागत बढ़ जाती है. इस बढ़ी हुई लागत की कटौती भी फार्मर से की जाती है. पालने के लिए लगातार चूजे नहीं दिए जाते हैं. एक से लेकर तीन महीने तक का गैप कर दिया जाता है. जबकि पोल्ट्री फार्म पर लेबर का खर्च और बिजली का फिक्स चार्ज तो जाना ही जाना है’.
बीएफसीसी, गुजरात के प्रेसीडेंट अनवेश पटेल (अन्नू भाई) ने किसान तक को बताया कि पोल्ट्री में चल रहा ब्रॉयलर इंटिग्रेशन फार्मिंग एग्रीमेंट विदेशों में बंद हो चुका है. इस एग्रीमेंट से छोटे मुर्गी पालकों का शोषण किया जाता है. इसी को देखते हुए विदेशों में इसे बंद किया गया है. भारत में भी इस पर रोक लगनी चाहिए. ये एग्रीमेंट पोल्ट्री बाजार पर भी बड़ा असर डाल रहा है. अगर ये लागू रहता है तो फिर सरकार को चाहिए कि इसमे कुछ शर्तें जोड़कर इसे देशभर में लागू कराए. वहीं एग्रीमेंट के तहत मुर्गी पालकों को ग्रोइंग रेट कम से कम 14 से 15 रुपये किलो मिलना चाहिए.
पोल्ट्री फार्मर फेडरेशन ऑफ ओडिशा के प्रेसीडेंट रतिकांता पॉल ने किसान तक को बताया, ‘ब्रॉयलर इंटिग्रेशन फार्मिंग के तहत रेट कम दिए जा रहे हैं. उस पर भी हाल ये है कि हर कंपनी का ग्रोइंग रेट अलग-अलग है. एक कंपनी ऐसी है जो प्रति किलो सात रुपये दे रही है. जबकि दूसरी कंपनी आठ तो तीसरी कंपनी नौ और 10 रुपये तक दे रही हैं. मौसम के हिसाब से कंपनी रेट बदलती रहती हैं. कंपनियों की इसी मनमानी के चलते ही अभी हाल ही मैं एक पोल्ट्री फार्मर ने हमारे ओड़िशा में आत्मसहत्या कर ली थी.’
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today