Poultry: राकेश टिकैत का सरकार से बड़ा सवाल, पोल्ट्री एग्रीकल्चर में है या इंडस्ट्री है 

Poultry: राकेश टिकैत का सरकार से बड़ा सवाल, पोल्ट्री एग्रीकल्चर में है या इंडस्ट्री है 

NIBPS के प्रेसिडेंट चरनजीत का कहना है कि पोल्ट्री फार्म की बिल्डिंग का बीमा तो हो जाता है. लेकिन बीमारी से और प्राकृतिक आपदा के चलते मरने वाले मुर्गे-मुर्गियों का बीमा नहीं किया जाता है. जबकि किसी भी आपदा में हजारों मुर्गे एक ही झटके में मर जाते हैं, जिससे पोल्ट्री फार्मर को लाखों रुपये का नुकसान हो जाता है. 

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Poultry: राकेश टिकैत का सरकार से बड़ा सवाल, पोल्ट्री एग्रीकल्चर में है या इंडस्ट्री है पोल्ट्री फार्म में पल रहे ब्रॉयलर चिकन. फोटो क्रेडिट-उन्नत

एक बार फिर किसान नेता राकेश टिकैत सुर्खियों में हैं. इस बार उन्होंने पानीपत, हरियाणा से सरकार पर कुछ सवाल दागे हैं. पोल्ट्री फार्मर से बात करने के बाद टिकैत ने पूछा है कि पोल्ट्री सेक्टर एग्रीकल्चर में आता है या सरकार इसे इंडस्ट्री मानती है. क्यों सरकार पोल्ट्री फार्मर को खेती करने वाले किसान की तरह से अन्य सुविधाएं नहीं देती है. क्यों पोल्ट्री फार्म को कमर्शियल रेट पर बिजली दी जाती है. क्यों  फसल की तरह से मुर्गे-मुर्गियों का बीमा नहीं किया जाता है. इतना ही नहीं ब्रॉयलर इंटिग्रेशन फार्मिंग (पोल्ट्री कांट्रेक्ट) के नाम पर बड़ी कंपनियों को मनमानी की छूट दे दी गई है. 

कानून बनाया गया है लेकिन उसे पूरे देश में लागू नहीं कराया गया है. पॉल्यूशन कंट्रोल जैसे कानून बनाकर छोटे पोल्ट्री फार्मर को खत्म करने की साजिश की जा रही है. गौरतलब रहे टिकैत पानीपत में पोल्ट्री फार्मर से बात कर रहे थे. इसी दौरान पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) और ब्रॉयलर प्रोड्यूसर एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने भी उनसे मुलाकात कर परेशानियों से अवगत कराया. 

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टिकैत बोले, सरकार के सामने रखेंगे ये पांच मुद्दे 

राकेश टिकैत ने पीएफआई के सेक्रेटरी रविन्द्र  सिंह संधू और नॉर्थ इंडिया ब्रॉयलर प्रोड्यूसर एसोसिएशन (NIBPS) के अध्यक्ष चरनजीत सिंह से बात करते हुए भरोसा दिलाया कि वो पोल्ट्री फार्मर की पांच बड़ी समस्याओं को जल्द  ही सरकार के सामने उठाएंगे. साथ ही इस मामले में सरकार को पत्र भी लिखा जाएगा. उन्होंने कहा कि ब्रॉयलर इंटिग्रेशन फार्मिंग पर मांग की जाएगी कि इसके संबंध में बने कानून को पूरे देश में लागू कराया जाए, जबकि अभी तक ये सिर्फ आठ राज्यों में ही लागू है.

साथ ही पोल्ट्री फार्मर को खेती की तरह से सस्ती बिजली दिलाने, मुर्गे-मुर्गियों का बीमा कराने, पोल्ट्री से संबंधित पॉल्यूशन कंट्रोल के लिए बने नियमों पर विचार करने की भी मांग की जाएगी. इतना ही नहीं पोल्ट्री को दर्जा देने की मांग भी रखी जाएगी कि इसे एग्रीकल्चर में शामिल करें या फिर इंडस्ट्री मानें. 

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पीएफआई सेक्रेटरी बोले, कंपनियां लागत तक नहीं देतीं

ब्रॉयलर इंटिग्रेशन फार्मिंग पर बोलते हुए पीएफआई के सेक्रेटरी रविन्द्र सिंह संधू ने राकेश टिकैत को पोल्ट्री फार्मर की परेशानी बताते हुए कहा कि कंपनियां कांट्रेक्ट् के तहत ब्रॉयलर मुर्गा पालने के लिए देती हैं. लेकिन अफसोस की बात ये है कि पोल्ट्री फार्मर को लागत के बराबर भी भुगतान नहीं किया जाता है. मजबूरी ये है कि उस किसान के पास करने के लिए कुछ और है नहीं, छोटे पोल्ट्री फार्मर का बाजार खत्म हो गया है. कंपनियां इनका शोषण कर रही हैं. 
 

 

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