झींगा पालन और कोस्टल एक्वायकल्चर (तटीय जलीय) इंडस्ट्री को अब नई रफ्तार मिल जाएगी. मछली और झींगा कारोबार से जुड़े कारोबारियों की बड़ी डिमांड पूरी हो गई है. इसे लेकर मछली पालकों में बहुत खुशी है. सोमवार को मछली कारोबार से जुड़ा एक संशोधित बिल सीएए 2023 (कोस्टल एक्वाकल्चर एक्ट) लोकसभा में पास हो गया था. वहीं आज यानि बुधवार को राज्यसभा में भी ये बिल पास हो गया है. मछली पालक और कारोबारी लम्बे वक्त से इसकी डिमांड कर रहे थे. गौरतलब रहे कि कोस्टल एक्वाकल्चर अथॉरिटी (सीएए) ने इसी साल मार्च में इस संशोधित प्रस्ताव को केन्द्र सरकार के पास भेजा था.
समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए)के मुताबिक साल 2022-23 के लिए समुद्री खाद्य निर्यात का लक्ष्य 8,868 मिलियन अमेरिकी डॉलर निर्धारित किया गया है. जिसे पूरा करने के लिए झींगा मछली निर्यात को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. झींगा मछली पालन को और बढ़ाने देने के लिए खारे पानी की जलीय कृषि के तहत क्षेत्र को बढ़ाने के लिए राज्यवार लक्ष्य तय किए गए हैं.
झींगा एक्सपर्ट और झींगालाला रेस्टोरेंट चैन के संचालक डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि अभी तक झींगा पालन और कोस्टल एक्वाकल्चर के लिए अलग-अलग विभाग में चक्कर लगाने होते थे. किसी भी एक काम के लिए वक्त भी काफी लगता था. लेकिन अच्छी बात ये है कि अब सभी तरह के कारोबार और पालन कोस्टल एक्वाकल्चर एक्ट के तहत ही काम करेगा. ऐसा होने से कारोबार को नई रफ्तार मिलेगी. साथ ही तमाम तरह की मंजूरी लेने के लिए अब वक्त भी खराब नहीं होगा.
काम करने में भी आसानी होगी. साथ ही झींगा, हैचरी के अलावा अब न्यूक्लियस प्रजनन केंद्र, ब्रूड स्टॉक गुणन केंद्र और बीज उत्पादन से संबंधित कोई भी अन्य गतिविधि इस अधिनियम में शामिल रहेगी. ऐसा करके सरकार ने मछली और झींगा कारोबार से सीधे तौर पर जुड़े तीन करोड़ और दूसरे रास्तों से इस कारोबार में शामिल दो करोड़ लोगों को बड़ा फायदा होगा.
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झींगा पालक और मछलियों के डॉक्टर मनोज शर्मा ने बताया कि तटीय पर्यावरण की रक्षा के लिए तटीय जलीय कृषि अधिनियम 2005 लागू किया गया था. इस अधिनियम के बाद मछली पालन के क्षेत्र में सिस्टम के मुताबिक विकास भी हुआ है. लेकिन बाजार की मांग के अनुसार इस विधेयक में कुछ संशोधन की जरूरत थी जो अब पूरी हो गई हैं. इसमे सीएए का भी बड़ा योगदान है जो उसने मार्च में संशोधन विधेयक का प्रस्ताव केन्द्रम सरकार को भेजा था. अब मछली पालकों का तेजी से पंजीकरण भी सुनिश्चित हो जाएगा. अभी यह प्रक्रिया बहुत समय लेती थी और जटिल भी थी.
डॉ. मनोज शर्मा का कहना है कि जलीय कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को नियंत्रित किया जा सकेगा. मछली पालक का ढांचा और जिला भूमि समिति की भूमि आवंटन प्रक्रिया में शामिल अधिकारी और कार्यालय की प्रक्रिया आसान हो जाएगी, इससे झींगा फार्म विकसित करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए यह प्रक्रिया आसान हो जाएगी. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि एक्वाकल्चर क्षेत्र पर्यावरण के अनुकूल तरीके से नई ऊंचाइयों पर जाएगा.
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इतना ही नहीं देश में डिजिटलीकरण के अभियान को ध्यान में रखते हुए पंजीकरण और नवीनीकरण से जुड़ी प्रक्रिया जैसे फार्म पंजीकरण और फार्म लाइसेंस आनलाइन होने की उम्मीद है. सीएए को खेतों और हैचरी की विशेष आवश्यकता और बीएमसी की स्थापना पर भी विचार होगा.