
एक तरफ जहां किसान खाद के लिए घंटों लाइन में खड़े होते नजर आ रहे हैं वहीं हरियाणा सरकार ने कुछ ऐसा ऐलान किया है जिससे आने वाले समय में किसानों के लिए शायद और मुसीबत खड़ी हो सकती है. लेकिन वहीं दूसरी तरफ हरियाणा सरकार ने इस फैसले को एक सफल परिणाम के तौर पर दिखाया है. आपको बता दें हरियाणा सरकार ने खाद देने की व्यवस्था में बदलाव किया है. अब यह व्यवस्था पूरी तरह ‘मेरी फसल–मेरा ब्यौरा’ (MFMV) पोर्टल से जुड़ गई है. नई व्यवस्था में किसानों को पहले इस पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा. रजिस्ट्रेशन के बाद ही उन्हें खाद मिल पाएगी. कृषि विभाग ने इसे पहले पंचकूला में आज़माया था. वहां सफल होने के बाद अब यह व्यवस्था पूरे हरियाणा में लागू कर दी गई है. अब सवाल यह उठता है कि अगर किसान इस पोर्टल से खुद को कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं या किसी टेक्निकल प्रॉब्लम की वजह से यह मुमकिन नहीं हो पा रहा है तो क्या होगा? किसानों को खाद नहीं मिलेगी.
राणा ने कहा कि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की अगुवाई में हरियाणा पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां खाद देने की पूरी व्यवस्था को किसान-जांच वाले डिजिटल सिस्टम से जोड़ दिया गया है. ‘मेरी फसल–मेरा ब्यौरा’ (MFMV) और IFMS सिस्टम को मिलाने से अब खाद की थोक में गलत खरीद, काला बाजारी और फैक्ट्रियों को अवैध सप्लाई जैसी ग़लतियां रुक गई हैं.
उन्होंने बताया कि अब किसानों को खाद तभी मिलती है जब उनकी जमीन का रिकॉर्ड, MFMV पोर्टल पर भरी गई फसल की जानकारी और आधार से जुड़ा बैंक खाता-ये सब सही पाए जाते हैं. इस नई व्यवस्था से 25 लाख पंजीकृत किसानों में से 90% किसानों को बिना लाइन लगाए, बिना किसी देरी के और बिना किसी भेदभाव के खाद मिल चुकी है.
कृषि मंत्री ने कहा कि इस व्यवस्था से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि खाद की हेराफेरी बंद हो गई है. रियल टाइम निगरानी और किसान-स्तर पर तय खरीद सीमा ने गलत तरीके से सब्सिडी वाली खाद बेचने वालों को रोका है. पिछले छह महीनों में हरियाणा ने 4455 जांचें कीं, 120 नोटिस भेजे, 36 लाइसेंस रद्द या निलंबित किए और 28 एफआईआर भी दर्ज कीं. इसके बाद डीएपी की चोरी 7.92% और यूरिया की चोरी 10.12% कम हुई है.
उन्होंने बताया कि खेत का रकबा बढ़े बिना ही खाद की खपत कम हो गई है. 8 अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच यूरिया की खपत 48,150 मीट्रिक टन (10.12%) और डीएपी की खपत 15,545 मीट्रिक टन (7.92%) कम हुई. सिर्फ इस कमी से ही सरकार ने 351.90 करोड़ रुपये की सब्सिडी बचाई है.
उन्होंने कहा कि पारदर्शी व्यवस्था से अब खाद हर किसान तक पहुंच रही है. पहले बड़े खरीदार ही ज्यादा खाद उठा लेते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. 40 बैग से ज्यादा खरीदने वाले किसान 43.2% घटे हैं और 20 बैग से कम खरीदने वाले 16.4% बढ़े हैं. औसत खरीद भी 20 बैग से घटकर 18 बैग हो गई, जिससे हर गांव के छोटे किसान तक भी खाद पहुंची है.
राणा ने बताया कि एमएफएमबी पोर्टल पर किसानों का भरोसा बढ़ा है. खरीफ 2020-21 में 9.20 लाख किसान दर्ज थे, जो 2025-26 में बढ़कर 12.80 लाख हो गए. इस बदलाव से एनपीके, टीएसपी और एसएसपी जैसे संतुलित उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा मिला है. इससे 51,492 मीट्रिक टन डीएपी के बराबर की बचत हुई है, जो मिट्टी की सेहत सुधारने में मदद करेगी.
उन्होंने बताया कि 3 दिसंबर को हरियाणा कृषि विभाग का एक दल दिल्ली में केंद्र वित्त मंत्रालय की बैठक में गया. वहाँ अधिकारियों ने हरियाणा के इस मॉडल की तारीफ की और कहा कि इसे दूसरे राज्यों में भी लागू किया जा सकता है.
कृषि मंत्री ने कहा कि यह प्रणाली अच्छे प्रशासन का उदाहरण है, जिसमें घबराकर खरीदना, लंबी लाइनें लगाना, फर्जी बिलिंग और जमाखोरी-सब खत्म हो गई हैं. इस रबी सीजन में हरियाणा को 2.5 लाख मीट्रिक टन उर्वरक की बचत की उम्मीद है, जिससे 1,030 करोड़ रुपये से ज्यादा की सब्सिडी बच सकती है. उन्होंने कहा कि जनवरी 2026 तक इसके और भी अच्छे नतीजे दिखेंगे.
राणा ने कहा कि एमएफएमबी से जुड़ी खाद व्यवस्था ने किसानों का अनुभव बदल दिया है. अब खाद की पूरी निगरानी होती है और जो खाद हरियाणा के लिए भेजी जाती है, वही हरियाणा के खेतों में इस्तेमाल होती है. यही असली किसान सशक्तिकरण है.
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