सेब उत्पादकों के लिए तुर्किये और ईरान के साथ अब अमेरिका का वाशिंगटन एप्पल भी चुनौती बनेगा. दरअसल, 2018 में स्टील और एल्युमीनियम पर अमेरिका द्वारा आयात शुल्क लगाए जाने पर भारत सरकार ने अमेरिकी एप्पल समेत 28 वस्तुओं पर 20 प्रतिशत रीटेलिएटरी टैरिफ (प्रतिशोधात्मक शुल्क) लगाया था, जिससे अमेरिकी एप्पल पर आयात शुल्क 50 से बढ़कर 70 फीसदी हो गया था. अब पीएम मोदी ने अमेरिकी यात्रा के दौरान रीटेलिएटरी टैरिफ को वापस लेने का निर्णय लिया है. जोकि आने वाले 90 दिनों के भीतर लागू हो जाएगा. वहीं, रीटेलिएटरी टैरिफ खत्म होने की वजह से भारत में अमेरिकी एप्पल का आयात बढ़ जाएगा.
ट्रिब्यून इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्पादकों और आढ़तियों के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाला वाशिंगटन एप्पल प्रीमियम स्थानीय उपज को प्रभावित करेगा, जिसे चालू सीजन (जुलाई से नवंबर) समाप्त होने के बाद बाजार में लाया जाएगा.
हिल स्टेट हॉर्टिकल्चर फोरम के संयोजक हरीश चौहान ने कहा, “केंद्र के इस फैसले से हिमाचल प्रदेश, कश्मीर और उत्तराखंड के बागवानों को आर्थिक नुकसान होगा. वाशिंगटन एप्पल एक उच्च गुणवत्ता वाला सेब है. 70 प्रतिशत आयात शुल्क ने इसे एक अलग लीग में धकेल दिया था जहां यह प्रीमियम भारतीय सेब के साथ कंपटीशन नहीं कर सका. आयात शुल्क में कटौती से इसकी कीमत लगभग प्रीमियम भारतीय सेब जितनी ही होगी. इसकी गुणवत्ता को देखते हुए, हमारा सेब इसके साथ कंपटीशन करने के लिए संघर्ष करेगा.”
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अमेरिकी मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार, वाशिंगटन एप्पल के लिए भारत दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाजार था, जहां 2017 में 120 मिलियन डॉलर का कारोबार हुआ था. शुल्क में बढ़ोतरी के साथ, वाशिंगटन एप्पल के आयात में काफी गिरावट आई है.
वहीं सेब उत्पादकों का कहना है कि वाशिंगटन सेब पर आयात शुल्क कम होने का मतलब है कि फसल कम होने पर भी वे अच्छी कमाई नहीं कर पाएंगे. प्रोग्रेसिव ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकेंद्र बिष्ट ने कहा, “आयातित अमेरिकी एप्पल सितंबर के आसपास बाजार में आएगा, जब स्थानीय स्तर पर उत्पादित सेब का मार्केटिंग किया जाएगा. अगर हमारे सेब की कीमत अधिक होगी तो लोग वाशिंगटन एप्पल खरीदेंगे.”
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बिष्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को अपने फैसले की समीक्षा करनी चाहिए और आयात शुल्क को 70 प्रतिशत पर बहाल करना चाहिए. उन्होंने कहा, सरकार का फैसला अनुचित है, खासकर ऐसे समय में जब सेब उत्पादक 100 प्रतिशत आयात शुल्क की मांग कर रहे हैं. किसान बागवानों के सबसे बड़े संगठन संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक संजय चौहान और सेब उत्पादक संघ के प्रदेशाध्यक्ष सोहन सिंह ठाकुर ने इस फैसले पर चिंता जताई है और आयात शुल्क 100 फीसदी करने की मांग उठाई है.