USDA के मुंबई कार्यालय ने अनुमान लगाया है कि भारत का कपास उत्पादन 2025-26 के सीजन में, जो अक्टूबर से शुरू होगा, वह लगभग 314 लाख गांठ (प्रत्येक 170 किलो वाली) रहेगा. जबकि मध्य भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में किसानों ने दूसरी लाभकारी फसलों की ओर रुख किया है, जिसके कारण इसके रकबे में भी गिरावट आई है. बता दें कि USDA संयुक्त राज्य अमेरिका का कृषि विभाग है. इसका अनुमान है कि भारत का 2025-26 कपास क्षेत्र पिछले साल के 115 लाख हेक्टेयर से कम होकर 112 लाख हेक्टेयर रह जाएगा.
मध्य भारत के किसानों ने अधिक लाभ के कारण धान, मक्का और मूंगफली जैसी प्रतिस्पर्धी फसलों की बुवाई करना पसंद किया है, जबकि अनुकूल मानसून की स्थिति के कारण पैदावार में वृद्धि से रकबे में कमी की भरपाई होने की उम्मीद है. USDA ने विपणन वर्ष 2025-26 के लिए 476 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज का अनुमान लगाया है, जो वर्तमान सीजन के 464 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से अधिक है.
भारत में कपास की खपत 255 लाख गांठ (प्रत्येक 170 किलो वाली) के साथ मामूली रूप से बढ़कर 257 लाख गांठ होने का अनुमान है, जो कपड़ों की स्थिर मांग और भारत-यूके व्यापक आर्थिक एवं व्यापार समझौते (सीईटीए) के अनुमोदन के बाद संभावित निर्यात वृद्धि पर आधारित है. 24 जुलाई तक, घरेलू लिंट की कीमतें कॉटलुक ए-इंडेक्स से 5 से 6 सेंट (करीब 5 रुपये) ज़्यादा हैं, जिससे मिलों को आयात पर अपनी निर्भरता बढ़ानी पड़ रही है. व्यापार सूत्रों के अनुसार, मिलों का उपयोग लगभग 90 प्रतिशत है, जो धागे, कपड़े और परिधानों की मज़बूत निर्यात मांग के कारण है, जिससे खपत में वृद्धि के अनुमान को बल मिलता है.
हालांकि, घरेलू रेशों की ऊंची कीमतें मिलों को तत्काल जरूरतों से ज़्यादा माल तैयार करने से हतोत्साहित कर रही हैं. अप्रैल/जून में रेडीमेड कपड़ों के निर्यात में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 9 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. इसी प्रकार, सूती धागे का निर्यात पांच सालों के औसत से 8 प्रतिशत और सूती कपड़े का निर्यात पांच सालों के औसत से 19 प्रतिशत अधिक है. इसमें कहा गया है कि पिछले तीन महीनों में रुपये में गिरावट और सूती धागे की कीमतों में 1.4 प्रतिशत की गिरावट के कारण स्पिनरों को बांग्लादेश, चीन और वियतनाम के पड़ोसी बाजारों में अधिक किफायती धागा निर्यात करने में मदद मिली है.
1 अक्टूबर से प्रभावी, मध्यम और लंबे रेशे वाले कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 8 प्रतिशत की वृद्धि से रेशे की कीमतें बढ़ रही हैं, जिससे मिलें आयात बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित हो रही हैं.
(सोर्स- PTI)
ये भी पढ़ें-
दुधारू पशुओं के लिए वरदान है 'बरसीम', दूध उत्पादन में होता है चमत्कारी इजाफा
50 देशों तक पहुंचेगा भारतीय कृषि यंत्र, भारतीय तकनीकों की मदद से सजेगा विदेशी खेत