केंद्र सरकार ने बीजी-II (बोलगार्ड-II) कपास बीज की कीमतों में इजाफा किया है. मगर दूसरी तरफ बीज उद्योग ने इस वृद्धि पर निराशा व्यक्त की है. बीजी-II कपास पर ₹37 बढ़ने के बाद अब इसका खुदरा दाम ₹901 हो गया है. बीजी-I कपास के बीज के लिए कीमत ₹635 प्रति पैकेट तय की गई है. लेकिन इसको लेकर बीज उद्योग का कहना है कि सिर्फ ₹37 बढ़ाने से लागत की भरपाई नहीं हो पाएगी. अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने इस फैसले की आलोचना की है.
फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (FSII) देश में शोध-आधारित एग्रीबायोटेक कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है. कपास बीज की कीमतों में इजाफा को लेकर FSII के नेता राम कौंडिन्य ने एक अंग्रेजी अखबार 'बिजनेसलाइन' से बात की है. कौंडिन्य का कहना है कि बीजी-II के प्रति पैकेट 37 रुपये की कीमत वृद्धि, कपास बीज कंपनियों की वित्तीय व्यवहार्यता और कपास बीज में अनुसंधान निवेश को बहाल करने के लिए जरूरी लागत से कम है."
ट्रेट फी को छोड़कर कपास के बीज की कीमत 2016 में ₹751 प्रति पैकेट से बढ़कर 2024 में ₹864 ही हुई है. राम कौंडिन्य ने कहा कि अब इसे बढ़ाकर ₹901 कर दिया गया है. यह सालना 1.8% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर है. जबकि इसी दौरान, कृषि मजदूरी में 120 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और खाद की कीमतें भी दोगुनी हो गईं. इस तरह बढ़ती लागत ने कपास उद्योग का मुनाफा खत्म कर दिया है."
FSII के नेता ने कहा, "इसी अवधि के दौरान, कपास का MSP 70 प्रतिशत से ज्यादा बढ़कर, यानी 4,160 रुपये प्रति क्विंटल से 2024 में 7,121 रुपये प्रति क्विंटल हो गया, जिससे कपास उद्योग पर बीज खरीद मूल्य बढ़ाने का दबाव पड़ा." कौंडिन्य का मानना है कि ₹1,020 प्रति पैकेट कीमत करने से सामान्य स्थिति बहाल हो जाती. उन्होंने कहा, "कीमत (₹901) निराशाजनक है. हम चाहते हैं कि सरकार कपास क्षेत्र में जारी संकट को समझे और कपास के उचित बीज मूल्य सहित उपायों के अधिक व्यापक पैकेज की घोषणा करे."
वहीं इसको लेकर बीज उत्पादक कम्पनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली भारतीय राष्ट्रीय बीज एसोसिएशन (NSAI) का भी मानना है कि कपास की नई कीमतें पर्याप्त नहीं हैं. NSAI के अध्यक्ष एम प्रभाकर राव ने कहा, "यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि पिछले 10 सालों में हमें मूल्य वृद्धि में केवल 1 प्रतिशत सीएजीआर वृद्धि ही मिली है. हमने ₹150 की वृद्धि मांगी थी, लेकिन हमें केवल ₹37 मिले." प्रभाकर राव का मानना है कि इससे रिसर्च और डवलेपमेंट में खराब निवेश हो सकता है. उन्होंने कहा, "उद्योग द्वारा रिसर्च और डवलेपमेंट में अपर्याप्त निवेश नई किस्मों के विकास को प्रभावित करेगा और अपर्याप्त बीज उत्पादन को जन्म दे सकता है. जिसकी वजह से बाजार में शॉर्टेज हो सकती है."
अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने भी इस फैसले की आलोचना की है. AIKS के महासचिव विजू कृष्णन ने कहा, "इससे कपास किसान और भी गहरे संकट में फंस जाएंगे. इस बढ़ोतरी को 2023-24 में पहले से की गई 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. यह देखते हुए कि औसतन, सालाना लगभग 4.5 करोड़ पैकेट बेचे जाते हैं, बीज कंपनियों द्वारा अर्जित भारी लाभ की कल्पना कोई भी कर सकता है."
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