यह सवाल उस संकट का है, जो आज भारत के खेतों में गहराता जा रहा है और जिसके मुख्य पात्र देश के करोड़ों किसान हैं. खरीफ की बुवाई का अहम समय चल रहा है, लेकिन किसानों को डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) खाद के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. इस संकट पर सरकार की अपनी एक कहानी है, जो दावों और आश्वासनों से भरी है. सरकार का कहना है कि चिंता की कोई बात नहीं है, क्योंकि वे एक मजबूत व्यवस्था के तहत काम कर रहे हैं.
उनके अनुसार, राज्यों की जरूरत का आकलन करके हर महीने मासिक आपूर्ति योजना जारी की जा रही है. उर्वरकों की हर बोरी पर नजर रखने के लिए एकीकृत उर्वरक निगरानी प्रणाली (iFMS) जैसा ऑनलाइन तंत्र काम कर रहा है और कालाबाजारी करने वालों से निपटने के लिए राज्यों को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत पूरे अधिकार दिए गए हैं. इतना ही नहीं, उर्वरकों के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रति माह प्रति खरीदारखरीद की सीमा भी 50 बोरी तय कर दी गई है.
लेकिन सरकारी दावों के इस उजाले के पीछे एक स्याह हकीकत छिपी है और इस हकीकत की कहानी खुद संसद में पेश किए गए आंकड़े सुनाते हैं. इस संकट की असली वजह तीन परतों में लिपटी हुई है. पहली और सबसे बड़ी वजह है- चीन से आयात में भारी गिरावट. भारत डीएपी के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर रहा है, लेकिन अब वहां से आने वाले जहाज खाली होते जा रहे हैं.
आंकड़े बताते हैं कि जहां वर्ष 2023-24 में चीन से 22.28 लाख टन डीएपी का आयात हुआ था, वह 2024-25 में घटकर सिर्फ 8.47 लाख टन रह गया. हाल यह है कि जुलाई 2025 में तो मात्र 97 हजार टन डीएपी ही आया. चीन ने अपने निर्यात नियमों को इतना सख्त कर दिया कि वहां से खाद मंगाना टेढ़ी खीर हो गया. कहानी की दूसरी परत है देश के अपने घर में उत्पादन में गिरावट. जब बाहर से माल आना कम हुआ, तो उम्मीद थी कि देश के कारखाने इस कमी को पूरा करेंगे, लेकिन हुआ इसका उल्टा.
पिछले तीन सालों से डीएपी का घरेलू उत्पादन लगातार घट रहा है. यह 2022-23 के 43.47 लाख टन से गिरते-गिरते 2024-25 में 37.69 लाख टन पर आ गया, जो पांच साल पहले का स्तर पर है. इस संकट की तीसरी और आखिरी परत है आसमान छूती कीमतें. अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी इतना महंगा हो गया है कि कंपनियों के लिए इसे खरीदकर लाना मुश्किल हो रहा है. जो डीएपी अप्रैल 2024 में $542 प्रति टन का था, वह जुलाई 2025 तक $800 प्रति टन का हो गया.
इस तरह, एक तरफ सरकारसब कुछ ठीक हैका भरोसा दिला रही है, तो दूसरी तरफ घटता आयात, गिरता उत्पादन और बढ़ती कीमतें किसानों के लिए एक ऐसा चक्रव्यूह बना रही हैं जिससे निकलना मुश्किल हो रहा है. अगर इस कहानी का सुखद अंत नहीं हुआ, तो इसका सीधा असर खरीफ की फसलों पर पड़ेगा और देश की खाद्य सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं. अधिकाश के अधिकांश राज्यों में किसान खरीफ फसलों की बुवाई में व्यस्त हैं.
इस अहम समय में किसान यूरिया के बाद दूसरे सबसे ज्यादा खपत वाले उर्वरक, डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं. किसानों को खाद के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ रहा है, जबकि सरकार का दावा है कि देश में उर्वरकों की कोई कमी नहीं है. आयात और घरेलू उत्पादन के आंकड़े एक अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं, जिससे सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच एक बड़ा अंतर दिखाई देता है.