चने की फसल का विनाश कर देता है उकठा रोग, जानिए क्या है लक्षण और समाधान

चने की फसल का विनाश कर देता है उकठा रोग, जानिए क्या है लक्षण और समाधान

बार‍िश से अधिक पानी और बाद में अचानक सूखी हुई जमीन उकठा रोग की वजह हैं. सामान्य तौर पर निचले पत्ते पीले पड़ना, बाद में धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाना या अचानक सभी पत्तों को सूखे हुए दिखाई देना इसके प्रमुख लक्षण हैं. जान‍िए क्या है इसका समाधान. 

चने की खेती चने की खेती
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jun 27, 2024,
  • Updated Jun 27, 2024, 6:42 PM IST

भारत की दलहनी फसलों में चना सबसे महत्वपूर्ण है. इसलिए इसे दालों का राजा भी कहा जाता है. इसकी हरी पत्तियां साग और हरा तथा सूखा दाना सब्जी और दाल बनाने में उपयोग होते हैं. चने की दाल का छिलका और भूसा पशुओं के आहार में उपयोग किया जाता है. इसके चलते इसकी बाज़ार में मांग हमेशा बनी रहती है. इसकी खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं लेकिन कई बार चने की फसल में उकठा रोग लगाने से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में अगर आप इस रोग के लक्षण और समाधान के बारे में जान जाएंगे तो इसकी फसल मुनाफे वाली बन जाएगी.  

कृषि वैज्ञानिक संजीव कुमार, रमेश नाथ गुप्ता, आनंद कुमार, राकेश कुमार और हंसराज के अनुसार दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ों में हवा में मौजूद नाइट्रोजन जमीन में फ‍िक्स करने की क्षमता होती है. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है. चने का उत्पादन कई प्रकार के रोगों द्वारा प्रभावित होता है, लेक‍िन उकठा रोग इस फसल के ल‍िए व‍िनाशकारी है. ज‍िसकी समय पर पहचान और उसका समाधान जरूरी है. 

उकठा रोग कैसे होता है?

बार‍िश से अधिक पानी और बाद में अचानक सूखी हुई जमीन उकठा रोग की वजह हैं. सामान्य तौर पर निचले पत्ते पीले पड़ना, बाद में धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाना या अचानक सभी पत्तों को सूखे हुए दिखाई देना इसके प्रमुख लक्षण हैं. 

क्यों होता है यह रोग 

चने की फसल में उकठा रोग, फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक फफूंद के कारण होता है. इस रोग का प्रभाव खेत में छोटे-छोटे बिखरे हुये क्षेत्रों में दिखाई देता है. स्वस्थ पौधों की तुलना में रोगग्रस्त पौधों को मिट्टी से अधिक आसानी से निकाला जा सकता है. मुरझाए हुए पौधे में अधिकांश जड़ें कवक से संक्रमित हो जाती हैं, इसके कारण जड़ें कमजोर हो जाती हैं. 

क्या है मैनेजमेंट  

चने की बुआई 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक कर देनी चाहिए.

कम से कम 4-5 वर्ष का फसलचक्र अपनाएं.

म‍िट्टी में बीज की बुवाई उचित गहराई पर करनी जरूरी है.

सरसों या अलसी के साथ चने की अन्तर फसल लगाएं. इससे उकठा रोग में कमी देखी गई है.

खेत में चने के पुराने अवशेषों को न छोड़ें.

प्रमाण‍ित, स्वस्थ एवं रोगरहित बीजों का प्रयोग करें.

गर्मियों में 2-3 बार खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए. 

उर्वरकों का संतुल‍ित मात्रा में प्रयोग करें.

रोगरोधी किस्में जैसे-अवरोधी, बी.जी.-212, केपीजी-59, पूसा 391, विजय, विशाल आदि का प्रयोग करें.

बीज उपचार जरूर करें 

जैव कवकनाशी ट्राइकोडर्मा विरिडी की 5 क‍िलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर 100 क‍िलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी के छींटें देकर 10 दिनों तक छाया में रखें. इसे बुवाई से पहले आखिरी जुताई पर जमीन में मिलाने से उकठा रोग का काफी हद तक नियंत्रण हो जाता है. ट्राइकोडर्मा जैव कवकनाशी 4-10 ग्राम प्रति क‍िलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके ही बुवाई करें.

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