सर्दियों का मौसम आते ही बाजार में सब्जी की ढेरों वैरायटी मिलने लगती है. वहीं, सब्जी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद भी होती है. ऐसे में पूरे साल मार्केट में सब्जियों की डिमांड रहती है. खास बात यह है कि सभी सब्जियों की कई अलग-अलग किस्में भी हैं. इन किस्मों की उत्पादन क्षमता भी अलग-अलग होता है. ऐसी ही एक ठंड के दिनों में मिलने वाली सब्जी है जिसकी वैरायटी का नाम हिसार रसीली है. दरअसल, ये गाजर की एक खास वैरायटी है. इसकी खेती के लिए नवंबर का महीना बेस्ट माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं इसकी उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं और कैसे करें इसकी खेती.
हिसार रसीली: गाजर की इस किस्म की बाजार में सबसे ज्यादा डिमांड रहती है. इसका रंग गहरा लाल होता है. वहीं, इसका आकार लंबा और पतला होता है. ये किस्म किसानों के बीच भी सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. इस किस्म का गाजर 85 से 95 दिनों में तैयार हो जाता है. वहीं, इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है.
पूसा आसिता: गाजर की यह किस्म मैदानी क्षेत्रों में अधिक पैदावार के लिए काफी मशहूर है. इस किस्म के गाजर का रंग काला होता है. वहीं, इस किस्म को तैयार होने में 90 से 100 दिन का समय लग जाता है.
नैंटस: इस किस्म की सबसे अच्छी बात ये है कि ये खुशबूदार होता है. इस किस्म को तैयार होने में 110 दिन का समय लगता है. इस किस्म का गाजर आकार में बेलनाकार और रंग में नारंगी होता है. इसमें बाकी किस्मों की तुलना में कम पैदावार प्राप्त होती है.
पूसा केसर: यह गाजर की एक खास किस्म है. इस किस्म से पैदा होने वाले गाजर का आकार छोटा और रंग गहरा लाल होता है. ये किस्म बीज रोपाई के लगभग 90 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है. वहीं, यह किस्म पैदावार में बेहतर होती है.
पूसा मेघाली: गाजर की यह एक संकर किस्म है, जिसके फलों में केरोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती है. इससे निकलने वाली गाजर का गूदा नारंगी रंग का होता है. इस क़िस्म को तैयार होने में लगभग 100 से 110 दिन का समय लग जाता है.
गाजर की बुवाई करने से पहले खेत को समतल कर लें. फिर खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई करें. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाएं. इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और इसमें गोबर की खाद को अच्छी तरह से मिला ले. वहीं, एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए लगभग 4 से 6 किलो गाजर के बीज की आवश्यकता होती है. बुवाई के 12 से 15 दिन बाद बीज अंकुरित हो जाते हैं.