किसान अगर दिसंबर-जनवरी में भिंडी की खेती करें तो उन्हें अच्छी कमाई हो सकती है. भिंडी की यह फसल मार्च से निकलने लगती है जिसका बाजार में बढ़िया रेट मिलता है. हालांकि सर्दियों में भिंडी की खेती में कुछ समस्याएं आती हैं, जैसे बढ़वार की कमी और अंकुरण में देरी. ऐसे में किसानों को सर्दियों में भिंडी की खेती करने से पहले एक बार खेती की समस्याओं के बारे में जरूर सोच लेना चाहिए. इससे उन्हें भविष्य की चिंताओं को दूर करने में आसानी होगी.
अगर आप एक एकड़ में भिंडी की खेती करना चाहते हैं तो आपको 1.5 किलो बीज की जरूरत होगी. किसान इसके लिए भिंडी की उन्नत किस्मों का चयन करें तो पैदावार अधिक मिलेगी. इसमें राधिका, नाधानी की 862, नूनहेम्स सिंघम और इंडाम 9821 बीज लगा सकते हैं. सिंजेंटा की 102 बीज भी लगा सकते हैं. उन्नत किस्मों को लगाने का फायदा ये होता है कि सर्दियों के दिनों में भी भिंडी की बढ़वार अच्छी होती है, अंकुरण सही होता है.
अगर बढ़वार ठीक नहीं हो तो किसानों को इसका उपाय करना चाहिए. इसके लिए किसान 200 लीटर पानी में 30 किलो सरसों की खली मिला दें. इसमें 3 किलो गन्ने का गुड़ भी मिलाएं. इसको अच्छे ढंग से मिक्स कर देना है चार दिन के लिए छोड़ देना है. इसके बाद जो मिश्रण तैयार होगा उसे सिंचाई के पानी में मिलाकर खेत में डालना है. यह मिश्रण एक एकड़ खेत के लिए है. इस मिश्रण के इस्तेमाल से भिंडी के पौधों को अच्छी बढ़वार मिलेगी. किसान चाहें तो इस मिश्रण में ह्यूमिक एसिड मिलाकर भी सिंचाई के पानी के साथ खेत में दे सकते हैं.
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पौधे से अधिक पैदावार लेने के लिए बुवाई की विधि का भी ध्यान रखना होगा. इसमें पौधे से पौधे के बीच की दूरी 2.5 से 3 फीट और लाइन से लाइन के बीच की दूरी 3 फीट रखनी है. बुवाई के समय आपको खाद की बेसल डोज की सही जानकारी होनी चाहिए. एक एकड़ खेत में बुवाई के समय गोबर की खाद 2 ट्रॉली, एसएसपी खाद 50 किलोग्राम और डीएपी खाद 25 किलो देनी चाहिए. शुरू में गड्ढानुमा क्यारियों में एक या दो बीजों को डालकर बुवाई करनी चाहिए.
बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें. सर्दियों में भिंडी में 8 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. खरपतवारों को हटाने पर भी पूरा ध्यान होना चाहिए. जब फसल 40 से 50 दिनों की हो जाए तो पहली निराई-गुड़ाई करें. दूसरी निराई-गुड़ाई का काम फसल के 70 से 90 दिनों के हो जाने पर करना चाहिए. एक्सपर्ट बताते हैं कि सर्दियों में भिंडी की फसल में अधिक पानी देने की जरूरत नहीं होती बल्कि अधिक निराई-गुड़ाई करने से पौधों को अच्छी बढ़वार मिलती है.
भिंडी में पीत शिरा रोग (येलो वेन मोजैक वायरस) और चूर्णिल आसिता नामक रोग गंभीर होता है. येलो मोजैक वायरस बीमारी में भिंडी की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और फल भी पीले पड़ने लगते हैं. इससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है. इसके रोकथाम के लिए किसानों को ऑक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ईसी या डाइमिथोएट 30 प्रतिशत ईसी की 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में या इमिडाइक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल या एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एसपी की 5 मिली प्रति ग्राम मात्रा 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए.
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चूर्णिल आसिता रोग में भिंडी की निचली पुरानी पत्तियों पर हल्के सफेद धब्बे बनने लगते हैं या पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं. ये धब्बे बहुत तेजी से फैलते हैं. इस रोग का नियंत्रण न करने पर पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है. इस रोग के नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा या हेक्साकोनोजोल 5 प्रतिशत ईसी की 1.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 या 3 बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.
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