भारत में व्रत-उपवास और कई इलाकों में साबूदाना बड़े पैमाने पर खाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर किस फसल से साबूदाना बनाया जाता है. दरअसल, शकरकंद की तरह दिखने वाले कसावा से साबूदाना बनाया जाता है. इसलिए किसानों के बीच कसावा की खेती एक मुनाफे का सौदा है. विशेषज्ञों का कहना है कि देश में साबूदाने का सेवन बड़े पैमाने पर किया जाता है. यही वजह है कसावा की खेती बेहद तेजी से फल-फूल रही है. कई कंपनियां किसानों से जुड़कर अब इस फसल की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करवाने लगी हैx. इसके अलावा कसावा का निर्यात दूसरे देशों में भी बड़े पैमाने पर किया जाता है. जिससे किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर साबूदाना कैसे तैयार होता है और कसावा की क्या खासियत है.
कसावा कंद वाली एक फसल है, जिसकी जड़ें स्टार्च से भरपूर होती हैं. कसावा की बनावट शकरकंद की तरह होती है, लेकिन इसकी लंबाई ज्यादा होती है. जमीन में उगने वाली इस फसल से भरपूर मात्रा में स्टार्च पाया जाता है, जिससे साबूदाना बनाने के लिए गूदा तैयार किया जाता है. उसी गूदे से साबूदाना बनाया जाता है. वहीं, साबूदाना से बने व्यंजनों का सबसे अधिक उपयोग व्रत यानी उपवास के दिन होता है. शुद्ध और सात्विक माने जाने वाला साबूदाना एक बाईप्रोडक्ट है.
ये भी पढ़ें;- पहाड़ी राज्यों के लिए बेस्ट है अरहर की ये किस्म, मई जून में करें खेती तो 20 क्विंटल तक मिलेगी पैदावार
अब ये जान लेते हैं कि आखिर साबूदाना बनता कैसे है. दरअसल, तकनीकी रूप से साबूदाना किसी भी स्टार्च युक्त पेड़ पौधों से बनाया जा सकता है. लेकिन, अधिक स्टार्च होने की वजह से कसावा साबूदाने के उत्पादन के लिए उपयुक्त माना गया है. कसावा की जड़ों से साबूदाने बनाया जाता है. इसके लिए पहले कसवा की जड़ों के छिलके की मोटी परत को उतारकर धो लिया जाता है. धुलने के बाद उन्हें कुचला जाता है. फिर उसे निचोड़कर इकठ्ठा हुए गाढ़े द्रव को छलनियों में डालकर छोटी-छोटी मोतियों सा आकार दिया जाता है, उसके बाद धूप में सुखा लिया जाता है या एक अलग प्रक्रिया के तहत भाप में पकाते हुए गरम किया जाता है. वहीं, जब वो पूरी तरह से सूख जाता है तो साबूदाना तैयार हो जाता है.
कसावा की खेती आमतौर पर पर दक्षिण भारत में की जाती है, जिसमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल प्रमुख है. वहीं, अब मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती होने लगी है. असल में इसकी खेती कम पानी और कम उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है. इस वजह से किसान अब इसे ऐसी जगहों पर बोने लगे हैं. इसके अलावा इसकी खेती साल में कभी भी की जा सकती है. लेकिन प्री मॉनसून के बाद खेती करना बेस्ट माना जाता है.