Ganja menace: खतरे में गांव के युवाओं का भविष्य, गांजे की लत पर लगाम जरूरी, उठाने होंगे ठोस कदम

Ganja menace: खतरे में गांव के युवाओं का भविष्य, गांजे की लत पर लगाम जरूरी, उठाने होंगे ठोस कदम

गांजा की लत एक सामाजिक संकट बन चुकी है, जो विशेष रूप से ग्रामीण युवाओं को प्रभावित कर रही है. विजेंद्र यादव की कहानी हमें चेतावनी देती है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो कई और परिवार इस त्रासदी का सामना कर सकते हैं. सामूहिक प्रयासों, जागरुकता, और सख्त कानून प्रवर्तन से ही हम इस समस्या का समाधान पा सकते हैं.

ganja menaceganja menace
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Jul 30, 2025,
  • Updated Jul 30, 2025, 5:22 PM IST

उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में गांजे (Cannabis) का बढ़ता उपयोग एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुका है. खेतों की मेड़ों, नहरों और नदी किनारे स्वतः उगने वाला यह पौधा अब ग्रामीण युवाओं के लिए नशे का सुलभ साधन बन गया है. राष्ट्रीय स्तर के आंकड़ों और स्वास्थ्य शोधों से यह स्पष्ट है कि गांजे का उपयोग ग्रामीण युवाओं के मानसिक, शारीरिक और आर्थिक जीवन को गहराई से प्रभावित कर रहा है. यह प्रवृत्ति विशेष रूप से युवाओं को प्रभावित कर रही है, जिससे उनकी सेहत, शिक्षा, और आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. यह प्रवृत्ति विशेष रूप से युवाओं में अधिक देखी जाती है .गांजे का पौधा बिना किसी देखभाल के उग जाता है, जिससे इसकी उपलब्धता आसान हो जाती है.

गांजे की लत एक सामाजिक संकट बन चुकी है, जो विशेष रूप से ग्रामीण युवाओं को प्रभावित कर रही है. विजेंद्र यादव (परिवर्तित नाम) की कहानी हमें चेतावनी देती है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो कई और परिवार इस त्रासदी का सामना कर सकते हैं. सामूहिक प्रयासों, जागरूकता, और सख्त कानून प्रवर्तन से ही हम इस समस्या का समाधान पा सकते हैं.

विजेंद्र की तरह देश में लाखों युवा चपेट में 

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के एक गांव में रहने वाले विजेंद्र यादव (परिवर्तित नाम) एक मेहनती किसान थे. परंतु गांजे की लत ने उनकी जिंदगी बदल दी. दिन की शुरुआत और अंत गांजा के सेवन से होने लगा. खेती-बाड़ी पर ध्यान कम होता गया, जिससे उत्पादन में गिरावट आई. कुछ सालो बाद, बिजेंद्र का छोटा भाई धुरा यादव भी इसी लत का शिकार हो गया और इन्हें देखकर गांव में तमाम नौजवान गांजे का सेवन करना सीख गए. दोनों की सेहत बिगड़ती गई, और आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उचित इलाज नहीं मिल सका. अंततः, दोनों भाइयों की असमय मृत्यु हो गई.

भारत में गांजे का उपयोग व्यापक है. साल 2019 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 72 लाख भारतीयों ने पिछले साल गांजे का सेवन किया था. 10 से 75 वर्ष की आयु के लगभग 2.83 फीसदी लोग वर्तमान में गांजा उत्पादों का उपयोग करते हैं. यह प्रवृत्ति विशेष रूप से युवाओं और पुरुषों में अधिक देखी जाती है. गांजा का पौधा बिना किसी देखभाल के उग जाता है, जिससे इसकी उपलब्धता आसान हो जाती है. ग्रामीण क्षेत्रों में इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता की कमी है. कुछ समुदायों में इसे धार्मिक या सांस्कृतिक कारणों से स्वीकार किया जाता है. बेरोजगारी, गरीबी और मानसिक तनाव के कारण युवा इसकी ओर आकर्षित होते हैं.

गांजे का चौतरफा हमला सेहत, समाज, और भविष्य पर

गांजे का अधिक उपयोग मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक सेहत, और सामाजिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. नियमित सेवन से मानसिक विकार, स्मृति ह्रास, और श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. यह खेती-किसानी जैसे पेशों में उत्पादकता को घटाता है और आर्थिक स्थिति को कमजोर करता है. इसके अलावा, यह युवाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर सकता है, जिससे उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है. पारिवारिक संबंधों में तनाव, अपराध में वृद्धि और सामाजिक अलगाव जैसे परिणाम सामने आते हैं.

गांवों में गांजा की बढ़ती उपलब्धता और सेवन को रोकने के लिए केवल सामाजिक और कानूनी प्रयास ही नहीं, बल्कि खेतों और सार्वजनिक स्थलों पर इसके जैविक और यांत्रिक नियंत्रण की रणनीति भी जरूरी है. स्कूलों, कॉलेजों और पंचायत स्तर पर गांजा जैसे नशे के दुष्प्रभावों को लेकर सघन जागरुकता अभियान चलाना ज़रूरी है. इसमें स्वास्थ्य विशेषज्ञों, अध्यापकों और ग्राम सभाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए.

गांजे का कहर, रोकथाम के लिए जरूरी है दोहरा प्रहार

गावों में स्वंयसेवकों की एक निगरानी टीम गठित की जाए, जो खेतों की मेड़, नहरों और परित्यक्त ज़मीनों पर गांजा के उगने की निगरानी रखें और समय रहते पौधों को नष्ट करें. खेतों की मेड़ और खाली पड़ी ज़मीनों पर गांजा के नियंत्रण के लिए निम्न तकनीकी उपाय उपयोगी हो सकते हैं.

इस पर ग्लाइफोसेट (Glyphosate) जैसे शाकनाशी का प्रयोग किया जा सकता है, जो गांजा जैसे चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को प्रभावी रूप से समाप्त करता है. इसे 1-2% घोल बनाकर फूल या फल आने से पहले गांजा के पौधों पर छिड़का जाए. इसके अलावा जुताई और गहरी खुदाई करके अंकुरित पौधों को मिट्टी में मिला देना चाहिए. गांजे की लत के शिकार व्यक्तियों के लिए पुनर्वास केंद्र, मनोवैज्ञानिक परामर्श, और योग/ध्यान शिविरों का आयोजन किया जाना चाहिए. गांजे की अवैध खेती, उपयोग और वितरण पर सख्ती से रोक लगाने के लिए ग्राम स्तर पर कानून प्रवर्तन की निगरानी होनी चाहिए. ग्राम प्रहरी समितियों को जिला प्रशासन का सहयोग देना चाहिए. बेरोजगार युवाओं को कृषि आधारित उद्योग, कौशल विकास प्रशिक्षण और स्वयं सहायता समूहों से जोड़कर उन्हें सकारात्मक दिशा में प्रेरित किया जा सकता है.

लेखक: डॉ. रणवीर सिंह (ग्रामीण विकास, पशुपालन और नीति निर्माण प्रबंधन में चार दशकों का अनुभव)

MORE NEWS

Read more!