तमिल फिल्म ‘कत्थी’: जब डबल रोल में नायक ने निभाई किसानों के पैरोकार की भूमिका!

तमिल फिल्म ‘कत्थी’: जब डबल रोल में नायक ने निभाई किसानों के पैरोकार की भूमिका!

तमिल फिल्मों में पिछले कुछ वर्षों से यह चलन देखने में आ रहा है कि फिल्म निर्माता बड़ी कुशलता से मौजूदा और प्रासंगिक विषयों पर टिप्पणी को कहानी का हिस्सा बना देते हैं. एटली की फिल्में इसकी जीती जागती मिसाल हैं.

जब डबल रोल में नायक ने निभाई किसानों के पैरोकार की भूमिकाजब डबल रोल में नायक ने निभाई किसानों के पैरोकार की भूमिका
प्रगत‍ि सक्सेना
  • Noida,
  • Oct 08, 2023,
  • Updated Oct 08, 2023, 10:00 AM IST

कमर्शियल सिनेमा में किसानों के मुद्दों को उठाने का चलन भारत में क्या पूरी दुनिया में ही कम मिलता है. अक्सर खेती-किसानी पर बात करने वाली फिल्में गंभीर या कलात्मक फिल्मों की श्रेणी में डाल दी जाती हैं. ‘मदर इंडिया’ या हरियाणवी फिल्म ‘लाडो’ जैसी चंद ही फिल्में हैं जिन्हें इस संदर्भ में ट्रेंड सेटर कहा जा सकता है. इन्हीं फिल्मों में से एक है तमिल फिल्म ‘कत्थी’.

‘कत्थी’ की खासियत ये है कि इस फिल्म में एक धांसू कमर्शियल फिल्म के सारे मसाले हैं- एक्शन, इमोशन, रोमांस, षड्यंत्र, थ्रिल- सभी कुछ. लेकिन इस सबके बावजूद यह गंभीर विषय को सामने लाती है. दरअसल, यह भी एक कारगर तरीका है ज़मीन से जुड़े मुद्दों को लोगों के सामने लाने का.

‘जवान’ ने तोड़े सारे बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड 

तमिल फिल्मों में पिछले कुछ वर्षों से यह चलन देखने में आ रहा है कि फिल्म निर्माता बड़ी कुशलता से मौजूदा और प्रासंगिक विषयों पर टिप्पणी को कहानी का हिस्सा बना देते हैं. एटली की फिल्में इसकी जीती जागती मिसाल हैं. एटली की ताज़ा फिल्म ‘जवान’ ने तो बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ डाले. यह समझना एक दिलचस्प एहसास है कि तमिल फिल्मों का यह चलन लगभग हमारी वाचिक परंपरा के नाटक-तमाशा इत्यादि के लक्षणों की ही एक झलक है और अब यह दक्षिण भारतीय फिल्मों में ही नहीं बल्कि हिन्दी में भी बहुत लोकप्रिय हो रहा है.

बहरहाल, हम बात करते हैं फिल्म ‘कत्थी’ की. यह फिल्म रिलीज़ हुयी 2014 में. इसके निर्देशक हैं तमिल के मशहूर फिल्म निर्देशक ए आर मुरुगाडौस. मुरुगाडौस को एक्शन फिल्मों और सामाजिक विषयों पर फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है. इन्होने हिन्दी और तेलुगू में भी कुछ फिल्में बनाई हैं. हिन्दी फिल्म ‘गजनी’ ए आर मुरुगाडौस की जबरदस्त हिट हिन्दी फिल्म थी.

‘कत्थी’ का अर्थ होता है चाकू

‘कत्थी’ का अर्थ होता है चाकू. और फिल्म के संवाद चाकू की तरह ही धारदार हैं. फिल्म ‘कत्थी’ की कहानी ज़रा जटिल है क्योंकि इसमें अनेक उप कहानियाँ यानी सब प्लॉट भी जोड़ दिये गए हैं. कहानी शुरू होती है कथिरेसन नाम के चोर से, जो कोलकाता में पुलिस से भागता है और चेन्नई आता है जहां से वह बैंकॉक चले जाना चाहता है. यहाँ कथिरेसन की मुलाक़ात अंकिता नाम की लड़की से होती है जिसे वह प्यार करने लगता है, लेकिन अंकिता उससे सिर्फ प्यार का नाटक करती है. एक दिन कथिरेसन और उसका दोस्त रवि एक व्यक्ति को कुछ गुंडों से बचा कर अस्पताल ले जाते हैं. उनकी हैरानी का ठिकाना नहीं रहता जब वे देखते हैं कि इस व्यक्ति यानी जीवनानंदम की शक्ल हूबहू कथिरेसन से मिलती है.

कथिर को अब पुलिस से बचने का एक और तरीका मिल जाता है. वह जीवनानंदम यानी जीवा बन कर उसके वृद्धाश्रम को चलाने लगता है ताकि वह इस आश्रम के 25 लाख रुपये लूट कर बैंकॉक भाग जाये. लेकिन जब उसे जीवा के काम और उसके मिशन के बारे मे पता चलता है तो वह बदल जाता है.

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किसानों की आत्महत्या की कहानी

जीवा दरअसल एक वैज्ञानिक है जिसने एक गांव में ज़मीन के नीचे पानी खोज लिया है जिससे ना सिर्फ उस गांव बल्कि पूरे सूखा ग्रस्त ज़िले के किसान सिंचाई कर सकते हैं. लेकिन चिराग नाम का एक भ्रष्ट उद्योगपति उसी ज़मीन पर अपना कारख़ाना लगाना चाहता है और किसानों को अपनी ज़मीन बेचने के लिए विवश करता है. विरोध करने पर जीवा को गिरफ्तार कर लिया जाता है. इस मुद्दे पर सरकार का ध्यान खींचने के लिए छह किसान आत्महत्या कर लेते हैं, लेकिन कुछ नहीं होता.

यह सब जान कर कथिरेसन उर्फ कथिर निश्चय करता है कि वह चोरी चकारी और बैंकॉक भागने की मंशा छोड़ कर इन बेसहारा किसानों और वृद्धाश्रम की मदद करेगा. कहानी में अनेक मोड़ और उपकहानियों के बाद आखिरकार जीवा और कथिर की जीत होती है. इस पूरी प्रक्रिया में कथिर बिलकुल बदल जाता है, उसे किसानों के कष्टों और दिक्कतों का एहसास होता है. अंकिता, जो पहले कथिर से प्यार का नाटक कर रही थी अब उससे वाकई प्यार करने लगती है, लेकिन कथिर खुद को पुलिस के हवाले कर देता है और वादा करता है कि जेल से आने के बाद वह अंकिता से शादी करेगा.

नील नितिन मुकेश की पहली तमिल फिल्म

फिल्म की कहानी में किसानों की दिक्कतों, तमिलनाडु के कुछ इलाकों में पानी की कमी और अंधाधुंध औद्योगिकीकरण की भेंट चढ़ते खेत –इन अहम मुद्दों को बहुत कुशलता से बुना गया है. फिल्म के नायक और डबल रोल में थे तमिल सुपर स्टार विजय, जिन्हें थलापथी (यानी कमांडर) विजय के नाम से जाना जाता है. यह थलापथी विजय की दूसरी ऐसी फिल्म थी जिसमे उन्होने डबल रोल किया. लेकिन इस फिल्म में उनके अभिनय की बहुत प्रशंसा हुई. संगीत दिया था अनिरुद्ध रविचन्दर ने. यह अनिरुद्ध की पहली बहुत ही सफल फिल्म रही. ये वही अनिरुद्ध हैं जिन्होने फिल्म ‘जवान’ का संगीत भी कम्पोज़ किया है.

इस फिल्म ने एक नवोदित अभिनेता सतीश (जिन्होने नायक के दोस्त रवि की भूमिका निभाई) को भी लोकप्रिय बना दिया. यह हिन्दी फिल्म अभिनेता नील नितिन मुकेश की पहली तमिल फिल्म थी, जिसमें उन्होने खलनायक चिराग नाम के उद्योगपति का रोल अदा किया. उन्होने अपने तमिल संवाद खुद बोले, जो अपने आप में एक उपलब्धि है.

फिल्म को मिले अनेक फिल्मफेयर अवार्ड्स

रिलीज़ होने से पहले फिल्म कुछ विवादों में फंसी- जिसमें कहानी की चोरी का आरोप एक अहम विवाद था. मिंजुर गोपी और अंबु राजसेखर- दो लेखक/फिल्म निर्माताओं का आरोप था कि मुरुगाडौस ने फिल्म की कहानी उनसे चुराई. फिर कुछ लोगों को इस बात पर भी आपत्ति थी कि फिल्म की एक प्रोड्यूसर कंपनी में श्रीलंका से भी फंडिंग हुई थी. बहरहाल, फिल्म रिलीज़ होते ही ज़बरदस्त हिट साबित हुयी.

थलापथी विजय ने साबित कर दिया कि वे सिर्फ एक स्टार ही नहीं हैं बल्कि एक संवेदनशील अभिनेता भी हैं और ‘कत्थी’ इस बात की मिसाल बन गई कि गंभीर विषय पर भी एक लोकप्रिय फिल्म बनाई जा सकती है. फिल्म का संगीत भी बेहद लोकप्रिय हुआ. इस फिल्म को अनेक फिल्मफेयर अवार्ड्स के साथ अन्य और भी पुरस्कार मिले. किसानों के सरोकारों पर केन्द्रित यह कोई शास्त्रीय फिल्म नहीं बल्कि एक हल्की-फुलकी मनोरंजक फिल्म है जो मनोरंजन के साथ साथ किसानी और सिंचाई से जुड़ी समस्याओं के प्रति जागरूक भी कर जाती है.

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