
भारत में इस साल चीनी उत्पादन की शुरुआत सकारात्मक रही है. एक अक्टूबर से शुरू हुए मौजूदा चीनी सत्र में 15 नवंबर तक 10.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 7.1 लाख टन ज्यादा है. बताया जा रहा है कि ज्यादा चीनी मिलों की तरफ से पेराई का काम शुरू करना और बेहतर जूस रिकवरी इसका एक बड़ा कारण है. महाराष्ट्र में इस साल नए पेराई सीजन की शुरुआत बारिश के कारण देर से हुई. हालांकि इसके बाद भी चीनी मिलों से होने वाली रिकवरी ने ज्यादा निर्यात की संभावनाओं को जन्म दिया है.
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रियों (NFCSF) ने एक बयान में बताया कि कर्नाटक और महारष्ट्र में गन्ने की कीमत को लेकर चल रहे किसानों के आंदोलन ने पेराई की गति को और धीमा कर दिया है. अखबार बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार पहले 15 दिनों यानी 15 नवंबर तक की रिपोर्ट के अनुसार इस सीजन में 325 चीनी मिलों ने पेराई शुरू कर दी है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में सिर्फ 144 मिलें सक्रिय थीं. इस बार 128 लाख टन गन्ने की पेराई हुई है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 91 लाख टन था. औसत रिकवरी दर (गन्ने से चीनी हासिल) 8.2 प्रतिशत रही, जो पिछले वर्ष के 7.8 प्रतिशत से अधिक है.
NFCSF ने बताया कि पिछले वर्ष मिलों की कम संख्या का कारण महाराष्ट्र में चुनाव थे, जिसके चलते पेराई सीजन की शुरुआत नवंबर के अंत तक टल गई थी. अनुमान के अनुसार 2025–26 सीजन में देश का कुल चीनी उत्पादन 350 लाख टन रहने का अनुमान है. इसमें महाराष्ट्र का योगदान 125 लाख टन, उत्तर प्रदेश का 110 लाख टन और कर्नाटक का 70 लाख टन माना जा रहा है. ये तीन राज्य देश के कुल चीनी उत्पादन का 75-80 प्रतिशत हिस्सा देते हैं. 1 अक्टूबर को पिछले सीजन से मिले 50 लाख टन के शुरुआती स्टॉक, 35 लाख टन चीनी के एथेनॉल उत्पादन के लिए डायवर्जन और 290 लाख टन की अनुमानित घरेलू खपत को ध्यान में रखते हुए, लगभग 20-25 लाख टन सरप्लस है जो निर्यात के लिए उपलब्ध होगा.
कोऑपरेटिव चीनी मिलों के संगठन ने कहा कि सरकार पहले ही 15 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दे चुकी है. समय पर की गई यह घोषणा बाजार की भावनाओं को स्थिर करने में मदद करेगी. भारत के लिए निर्यात का अवसर (जनवरी से अप्रैल) अब केवल दो महीने दूर है और अनुमान है कि सीजन के बाद के हिस्से में अतिरिक्त 10 लाख टन निर्यात की अनुमति भी मिल सकती है. इस कदम से चीनी मिलों को आंशिक राहत मिलेगी, जो वर्तमान में चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) में कोई बदलाव न होने के कारण आर्थिक दबाव की स्थिति में हैं. चीनी का MSP 2019 से 31 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर है.
NFCSF के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाईकनवरे ने कहा, 'हमारा ध्यान तीन बड़े मसलों पर हैं, चीनी MSP में बदलाव कर इसे देशभर में मौजूदा एक्स-मिल वास्तविक कीमत के बराबर करना, शुगर बेस्ड एथेनॉल के दामों में बढ़ोतरी करना और आने वाले समय में शुगर बेस्ड एथेनॉल के आवंटन में इजाफा करना.' पिछले तीन सालों से एथेनॉल खरीद कीमतों के स्थिर रहने की ओर इशारा करते हुए NFCSF के अध्यक्ष हर्षवर्धन पाटिल ने कहा कि चीनी और एथेनॉल, दोनों ही रेवेन्यू के अहम सोर्स हैं और इनके ब्लॉक होने से शुगर इंडस्ट्री को अभी यह साफ नहीं हो सका है कि गन्ने का भुगतान, ऑपरेशनल कॉस्ट और देनदारियां कैसे चुकाया जाएगा.
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