
पंजाब में इस साल मॉनसून सीजन में भीषण बारिश और बाढ़ जैसी आपदाओं से भयंकर तबाही मची और लाखों हेक्टेयर खरीफ फसलों और खेती की जमीन को नुकसान पहुंचा है. बाढ़ का असर यह हुआ कि कई जिलों में अलग-अलग इलाकों में गाद और रेत जमा होने के कारण रबी की बुवाई पर भी संकट है. ऐसें में अब किसान इस समस्या से पार पाने की कोशिश कर रहे हैं. ठीक ऐसा ही हाल कपूरथला जिले के सुल्तानपुर लोधी के बाढ़ग्रस्त इलाकों में देखने को मिल रहा है.
यहां के किसान इन दिनों दोहरी मार झेल रहे हैं. एक ओर खेतों में रेत के पहाड़ बने हुए हैं तो दूसरी ओर गेहूं की बुवाई का समय तेजी से निकलता जा रहा है. इसके बाद ऊपर से एक किलोमीटर लंबा टूटा बांध अब भी बड़ा खतरा बना हुआ है. हालात इतने बिगड़े हैं कि गांवों में ट्रैक्टर और डीजल दोनों की भारी किल्लत हो गई है.
दि ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाके में बाढ़ के बाद खेतों से रेत हटाने, समय निकलने से पहले गेहूं की बुआई और रामपुर गौरा के विशालकाय बांध के टूटे हिस्से को बंद करना- ये तीन चुनौतिया बनी हुई हैं. लेकिन, इलाके में ट्रैक्टरों की संख्या सीमित होने से हर काम अधूरा पड़ रहा है. पहले जो 60-70 ट्रैक्टर बांध पर तैनात थे, अब वहां मुश्किल से 6-7 ही बचे हैं, बाकी सब गांवों में खेतों से रेत उठाने में लगा दिए गए हैं.
रामपुर गौरा गांव में राज्य का सबसे बड़ा करीब एक किलोमीटर लंबा बांध का टूटना अब भी जस का तस है. इसी दरार ने ब्यास नदी की धारा को मोड़ दिया था और पूरा गांव तबाह हो गया था. अब गांव वाले खुद जुटकर इसे भरने में लगे हैं, लेकिन काम की रफ्तार बेहद धीमी है. अब तक करीब 400 फीट बांध की मरम्मत हो चुकी है, लेकिन बाकी हिस्सा चुनौती बनकर खड़ा है. रोजाना दोनों तरफ से मिलाकर सिर्फ 16 फीट काम हो पा रहा है.
ब्यास नदी ने जिन खेतों को डुबोया, वहां अब 1 से 5 फीट तक रेत पड़ी है. बाउपुर, मोहम्मदाबाद, मंद गुजरांवाला, भैनी कदर बख्श, मंद मुबारकपुर, बंदू जदीद से लेकर संगरा तक खेतों के बीच रेत की खत्म न होने वाले टीले दिख रहे हैं. यही रेत ट्रैक्टर-ट्रोलियों में भरकर बांध बंद करने के लिए इस्तेमाल की जा रही है.
बाउपुर के परमजीत सिंह और सरहाली डेरा के सेवादार बाबा बलबीर सिंह किसानों की सूची लिए रेत के टीलों पर खड़े रहते हैं. किसके खेत से रेत उठानी है, किसे ट्रैक्टर मिलेगा, कौन बाद में आएगा. ये सारी जिम्मेदारी वे ही संभाल रहे हैं. सैकड़ों किसान अपनी बारी के इंतजार में लाइन लगाए हुए हैं.
सरहाली डेरा नेता बलबीर सिंह का कहना है, “लिस्ट खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. सैकड़ों एकड़ खेतों में रेत ही रेत है. एक ट्रैक्टर को पांच एकड़ की सीमा देकर आगे बढ़ा रहे हैं, तभी कहीं जाकर थोड़ी-थोड़ी बुवाई हो रही है. ट्रैक्टर और JCB जितनी जल्दी किसानों का काम निपटाएंगे, उतनी जल्दी बांध बंद करने में मदद मिलेगी.”
बाउपुर सरपंच के भाई परमजीत सिंह बताते हैं कि समस्या सिर्फ ट्रैक्टरों की नहीं, डीजल की भी भयावह कमी है. लगभग 200 ट्रैक्टर तो इस वक्त अलग-अलग गांवों में काम कर रहे हैं, लेकिन जरूरत इससे कहीं ज्यादा है. “छोटे किसानों के पास ट्रैक्टर हैं ही नहीं, ऊपर से डीजल भी खत्म हो रहा है. रेत अब भी 500-600 एकड़ में जमकर पड़ी है.”
गांव वाले अब ट्रैक्टरों को राशन की तरह बांट रहे हैं. हर किसान को थोड़ी-थोड़ी देर के लिए ट्रैक्टर दिया जा रहा है, ताकि थोड़ी बुवाई हो सके, क्योंकि समय निकलता जा रहा है.