
चालू तेल वर्ष 2025-26 में भारत के सोयामील निर्यात में भारी गिरावट आने की संभावना है. ऐसा प्रस्तावित यूरोपीय संघ वन विनाश विनियमन (EUDR) मानदंडों के अनुपालन को लेकर चिंताओं और ऊंची कीमतों के कारण हो रहा है. व्यापार निकाय सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने अपने नवीनतम आपूर्ति और मांग अनुमानों के अनुसार, निर्यात 8 लाख टन (lt) आंका है, जो पिछले साल के 20.23 lt से काफी कम है. तेल वर्ष 2024-25 के दौरान यूरोप भारतीय सोयामील का एक प्रमुख खरीदार था, और EUDR मानदंडों के लागू होने से पहले जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैंड जैसे देश प्रमुख खरीदार के रूप में उभरे.
सोपा के कार्यकारी निदेशक डी एन पाठक ने कहा कि EUDR अभी भी हमारे सिर पर मंडरा रहा है और पिछले साल मुख्य निर्यात यूरोप को हुआ था. ऐसा लग रहा है कि निर्यात पिछले साल के स्तर पर नहीं होगा. मांग तो है, लेकिन सवाल मांग का नहीं है. सवाल यह है कि क्या हम इसकी आपूर्ति कर पाएंगे. क्या हम ईयूडीआर मानदंडों का पालन कर पाएंगे. यही सवाल है. हम कोशिश कर रहे हैं. प्रसंस्करणकर्ताओं और निर्यातकों द्वारा EUDR मानदंडों का पालन करने की प्रक्रिया काफी सुस्त रही है. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ईयूडीआर नियमों का पालन करने के लिए उद्योग का समर्थन कर रही है.
सोपा के कार्यकारी निदेशक ने अंग्रेजी अखबार 'बिजनेसलाइन' की एक रिपोर्ट में बताया कि अन्य देशों की तुलना में भारत में सोयामील की कीमतें ज़्यादा हैं. उन्होंने कहा कि अब हमारा एफओबी मूल्य लगभग 430-425 डॉलर प्रति टन होगा, जबकि ब्राज़ील और अर्जेंटीना जैसे अन्य देशों में यह 320 डॉलर के आसपास है.
बता दें कि हाल ही में हुए एक अरब डॉलर के अमेरिकी-बांग्लादेश सौदे से पड़ोसी खरीदार की ओर से भारतीय भोजन की मांग भी प्रभावित होगी. भारतीय सोयामील वैश्विक बाजार में सबसे महंगे उत्पादों में से एक बना हुआ है, जिसका मुख्य कारण इसकी गैर-आनुवंशिक रूप से संशोधित (गैर-जीएम) प्रकृति है. परंपरागत रूप से, भारतीय गैर-जीएम सोयामील की कीमत अन्य जीएम-मूल उत्पादों की तुलना में लगभग 100 डॉलर प्रति टन अधिक रही है, जिससे मूल्य-संवेदनशील बाज़ारों में यह कम प्रतिस्पर्धी हो गया है. सितंबर में समाप्त होने वाले तेल वर्ष 2024-25 के दौरान, भारत का सोयामील निर्यात लगभग 5 प्रतिशत घटकर 20.23 लाख टन रह गया, जबकि पिछले वर्ष यह 21.28 लाख टन था. यह गिरावट मुख्यतः ईरान और बांग्लादेश से खरीद में कमी के कारण हुई, जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय सोयामील के महत्वपूर्ण खरीदार रहे हैं.
जर्मनी को निर्यात एक साल पहले के 1.04 टन से चार गुना बढ़कर 4.10 टन से ज़्यादा हो गया. फ्रांस को निर्यात तीन गुना बढ़कर 2.23 टन हो गया, जबकि पिछले साल यह 68,332 टन था. नीदरलैंड को निर्यात दोगुने से भी ज़्यादा बढ़कर 1.11 टन हो गया, जो पहले 50,856 टन था.
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