कई-कई किलो आलू के चिप्स एक साथ तले जाते हैं. बड़े से कढ़ाव में खौलते हुए तेल में चिप्स फ्राई किए जाते हैं. लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि फ्राई करते वक्त एक भी चिप्स ब्राउन कलर का नहीं होता है. चिप्स का कलर ठीक वैसा ही रहता है जैसा आलू होता है. जबकि घर के किचिन में चार से पांच चिप्स भी तलो तो एक-दो ब्राउन कलर के हो ही जाते हैं. पूरी तरह से ब्राउन नहीं होंगे तो उस रंग के धब्बे आ जाएंगे.
अलीगढ़ के आलू किसान विनोद बताते हैं कि चिप्स बनाने में सबसे ज्यादा चिप्सोना आलू का इस्तेमाल होता है. इस आलू में स्टार्च की मात्रा कम होती है और कोल्ड स्टोरेज के खास चैम्बर में रखने से आलू में मौजूद स्टार्च शुगर में भी नहीं बदलता है. इसके अलावा आगरा और अलीगढ़ में कुफरी बाहर, कुफरी चिप्सोना, कुफरी सदाबहार, कुफरी सूर्या, कुफरी आनंद, कुफरी पुखराज, कुफरी बादशाह, कुफरी ख्याति और कुफरी गरिमा आलू बड़ी मात्रा में पैदा किया जाता है.
बड़ी-बड़ी कंपनियों में तले जा रहे आलू के चिप्स ब्राउन न होने के पीछे फ्राई करने वाले की कोई कलाकारी नहीं है. यह तो आलू के साथ की गई एक खास तरह की प्रोसेसिंग का कमाल है. लेकिन आलू की यह प्रोसेसिंग घर पर नहीं कोल्ड स्टोरेज में की जाती है. इस बारे में किसान तक ने सेंट्रल पोटेटो रिसर्च सेंटर, पटना के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. शिव प्रताप सिंह से बात की. उन्होंने बताया कि जब आलू को चिप्स के तौर पर फ्राई करते हैं तो उसमे मौजूद शुगर भी जलने लगती है. चिप्स पर जो ब्राउन कलर दिखाई देता है वो वही जली हुई शुगर होती है. अब सवाल उठता है कि इतनी शुगर आलू में कहां से आती है.
अगर हम गौर करें तो आलू को कोल्ड स्टोरेज में रखकर 8 से 10 महीने तक खाया जाता है. यही वजह है कि जब हम आलू को कोल्ड स्टोरेज में 3 से 4 डिग्री तापमान पर रखते हैं तो उसमे मौजूद स्टार्च शुगर में बदलने लगता है. यही शुगर तेल में जलती है. लेकिन जब हम कोल्ड स्टोरेज के चैम्बर का तापमान 10 से 12 डिग्री रखते हैं तो आलू की प्राकृतिक अवस्था बरकरार रहती है. मतलब यह कि आलू में मौजूद स्टार्च शुगर में नहीं बदलता है.
इस तापमान पर आलू जमे न इसका भी खास ख्याल रखा जाता है. क्योंकि आलू जमने लगेगा तो उसका स्वाद तो बिगड़ेगा ही साथ में आलू में मौजूद कई तत्व का मिश्रण खराब हो जाएगा. आलू कोल्ड स्टोरेज में जमा न इसके लिए आलू पर सीआईपीसी केमिकल का छिड़काव किया जाता है.