
राजधानी दिल्ली पर छाए धुंध ने एक बार फिर उस मुद्दे की ओर ध्यान खींचा है जो हर साल सामने आता है- पराली जलाना. शुरुआत में, खेतों में आग लगने की घटनाएं काफी कम थीं. यहां तक कि इस साल 15 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच पंजाब और हरियाणा में सिर्फ 25 घटनाएं रिपोर्ट की गईं जो पिछले साल इसी दौरान दर्ज किए गए 559 मामलों से काफी कम है.
हालांकि, NASA के FIRMS के डेटा से पता चलता है कि हाल के दिनों में पराली की आग लगने की घटनाओं में कई बार बढ़ोतरी हुई है, 22 अक्टूबर, 30 अक्टूबर, 31 अक्टूबर, 1 नवंबर और 3 नवंबर को सैटेलाइट्स ने इसमें साफ बढ़ोतरी दर्ज की है.
इंडिया टुडे की OSINT टीम ने NASA के टेरा और एक्वा सैटेलाइट्स के डेटा का इस्तेमाल करके एक्टिव आग लगने वाली जगहों को मैप किया. यह एनालिसिस सितंबर से अक्टूबर तक पंजाब और हरियाणा में खेतों में आग लगने की घटनाओं के बदलते पैटर्न को दिखाता है. साथ ही, यह इसी दौरान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भी आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी का संकेत देता है.
सिर्फ सोमवार को ही पराली जलाने के 446 नए मामले दर्ज किए गए - 256 पंजाब में और 23 हरियाणा में - जिससे इस सीजन में कुल संख्या 2,663 हो गई है. हालिया बढ़ोतरी के बावजूद, ये आंकड़े पिछले सालों की तुलना में काफी कम हैं. जैसे कि 2024 में इसी दौरान 4,132 मामले और 2023 में 12,813 मामले दर्ज किए गए थे.
धान की कटाई के बाद (दिवाली के आसपास), किसान गेहूं बोने से पहले खेतों को जल्दी साफ करने के लिए पराली जलाते हैं. इस समय कम तापमान के कारण धुआं हवा में ही रह जाता है, जिससे वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है.
पंजाब, हरियाणा से कहीं ज्यादा धान पैदा करता है. हरियाणा का कुल एरिया और उत्पादन लगभग पंजाब के सिर्फ एक जिले - संगरूर के बराबर है. पंजाब में धान की कुछ किस्में ज्यादा पराली भी पैदा करती हैं.
पराली जलाने वालों के खिलाफ जुर्माना और FIR का प्रावधान किया गया है. ये दोनों सख्ती पराली जलाने के खिलाफ मदद जरूर करते हैं, लेकिन एक हद तक ही. जुर्माने और एफआईआर से अलग हटकर सरकार ने कुछ अच्छी पहल की है. अब, किसान पराली को इंडस्ट्रीज को बेच सकते हैं (बिजली, कागज, या बायो-CNG के लिए). इससे उन्हें इनकम होती है और पराली की आग में कमी आती है.
प्रशासन की ओर से पराली की आग के खिलाफ बेहतर मॉनिटरिंग, सख्त कार्रवाई और मार्केट-बेस्ड सॉल्यूशन की वजह से खेतों में आग लगने की घटनाओं में काफी कमी आई है. दो-चार साल पहले जितनी आग की घटनाएं दर्ज होती थीं, उससे बहुत कम घटनाएं अब दर्ज होती हैं.(बिदिशा साहा का इनपुट)