
सरकार की तरफ से चालू मार्केटिंग सीजन 2025-26 में 15 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दिए जाने के बाद देशभर की मिलों में निर्यात को लेकर गतिविधियां तेज हो गई हैं. अनुमति जारी होने के कुछ ही दिनों में लगभग एक लाख टन चीनी के स्पॉट डिलीवरी कॉन्ट्रैक्ट पूरे हो चुके हैं और जनवरी के मध्य तक इसकी खेप विदेशी बाजारों तक पहुंचने लगेंगी. उद्योग जगत के विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआत में आशंका जताई जा रही थी कि भारतीय चीनी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों के हिसाब से आकर्षक साबित नहीं होगी, लेकिन डॉलर के मुकाबले रुपये के 90 के स्तर को पार कर जाने के बाद निर्यातकों का उत्साह तेजी से बढ़ा है. दिलचस्प बात यह है कि जिन शुरुआती कॉन्ट्रैक्ट्स पर साइन हुए, उस समय डॉलर करीब 88 रुपये पर था.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान, श्रीलंका, सोमालिया, यमन, केन्या सहित मध्य-पूर्व और अफ्रीका के कई देशों से भारतीय चीनी की मांग बढ़ने लगी है. एक निर्यातक के मुताबिक, पश्चिमी तट के बंदरगाहों से भेजी जाने वाली चीनी के सौदे 440 से 450 डॉलर प्रति टन एफओबी के दायरे में हुए हैं.
वहीं, चेन्नई स्थित राजति ग्रुप के निदेशक एम. मदन प्रकाश ने बताया कि केन्या के लिए चीनी की कीमत 510 डॉलर प्रति टन (कॉस्ट एंड फ्रेट) और बंदर अब्बास के लिए 470 डॉलर प्रति टन रही है. वहीं, पड़ोसी और अफ्रीकी देशों से पूछताछ लगातार बढ़ रही है.
सरकार ने पिछले महीने जारी आदेश में स्पष्ट किया था कि सभी चालू चीनी मिलों को उनके पिछले तीन वर्ष के औसत उत्पादन के आधार पर समान रूप से 5.286 प्रतिशत का निर्यात कोटा दिया जा रहा है. यह प्रावधान इसलिए लागू किया गया है, ताकि किसी भी राज्य या मिल को अलग-अलग मापदंडों के कारण नुकसान न हो.
चूंकि सरकार ने मिलों को यह विकल्प भी दिया है कि वे खुद निर्यात करें या फिर व्यापारी निर्यातकों और रिफाइनरियों के माध्यम से अपनी निर्धारित मात्रा भेजें, इसलिए उत्तर प्रदेश की कई मिलों ने अपना कोटा बेचने के लिए तय किया है. अनुमान के मुताबिक, लगभग 30 से 40 हजार टन कोटा निर्यातकों द्वारा खरीद लिया गया है.
इधर, राष्ट्रीय सहकारी चीनी कारखाना महासंघ ने केंद्र से मांग की है कि मौजूदा 15 लाख टन के अलावा कम से कम 10 लाख टन अतिरिक्त निर्यात की अनुमति दी जाए. महासंघ का कहना है कि इससे घरेलू बाजार में चीनी कीमतों को स्थिरता मिलेगी, मिलों की नकदी स्थिति सुधरेगी और अतिरिक्त स्टॉक का दबाव कम होगा.
राष्ट्रीय सहकारी चीनी कारखाना महासंघ का आकलन है कि देश में इस वर्ष घरेलू खपत करीब 2.9 करोड़ टन रहने की संभावना है, जबकि 1 अक्टूबर 2025 को 50 लाख टन का खुला स्टॉक उपलब्ध था. ऐसे में सीजन के अंत तक लगभग 75 लाख टन चीनी मिलों के गोदामों में बच सकती है, जो वित्तीय बोझ बढ़ाने का कारण बनेगी.
इस बीच, कृषि मंत्रालय की पहली अग्रिम अनुमान रिपोर्ट के अनुसार इस बार देश में गन्ना उत्पादन बढ़कर 475.6 मिलियन टन पहुंच सकता है, जो पिछले वर्ष के 454.6 मिलियन टन की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है. नई तिमाही की शुरुआत यानी 1 अक्टूबर के बाद केवल दो महीनों में ही 41.4 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि से 50 प्रतिशत ज्यादा है.