
एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) ने ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसानों के लिए एक बड़ा फैसला लिया है. एक रिपोर्ट के अनुसार अथॉरिटी ने इन सभी किसानों के लिए 100 फीसदी फिजिकल वेरिफिकेशन को अनिवार्य कर दिया है. कुछ विशेषज्ञ इस कदम की तुलना चुनाव आयोग के SIR से कर रहे हैं. हालांकि उनका यह भी कहना है कि यह कदम भारतीय कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला हो सकता है.
अखबार बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार नए ऑर्गेनिक किसानों के रजिस्ट्रेशन, किसानों को अनुपालन की पुष्टि करने वाले स्कोप सर्टिफिकेट के रिन्यूअल और सर्टिफिकेशन एजेंसियों को बदलने के लिए नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) जारी करने, इन सभी प्रॉसेस के लिए यह सत्यापन वैरीफिकेशन कंपलसरी होगा. कुछ सर्टिफिकेशन एजेंसियों की तरफ से जारी नोटिफिकेशन के हवाले से यह जानकारी दी गई है. ट्रेड एनालिस्ट एस. चंद्रशेखरन के हवाले से अखबार ने बताया है कि यह कदम भारत की ऑर्गेनिक खेती के लिए नोटबंदी या स्पेशल इनटेंस रिव्यू (SIR) जैसा पल है. इस फैसले को भारत के ऑर्गेनिक फार्मिंग सिस्टम को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा जा रहा है.
एक सर्टिफिकेशन एजेंसी की तरफ से किसानों को कहा है कि यह वैरीफिकेशन अनिवार्य है, चाहे वह नए ऑर्गेनिक किसान हों या पुराने रजिस्ट्रेशन को रिन्यू करवाने वाले. इस वैरीफिकेशन का मकसद है-ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन का दायरा बढ़ाना और नियमों का सही पालन सुनिश्चित करना ताकि कहीं भी गलत तरीकों की गुंजाइश न रहे. APEDA के निर्देशों के अनुसार, अब यह अनिवार्य किया गया है कि जो किसान समूह ऑर्गेनिक खेती करते हैं, वो अपनी पहचान को आधार कार्ड के जरिये वैरीफाई करवाएं. वैरीफिकेशन प्रॉसेस तीन महीने के अंदर पूरी कर लेनी चाहिए. बताया जा रहा है कि यह कदम ऑर्गेनिक खेती व्यवस्था को और मजबूत बनाने के लिए उठाया गया है.
आधिकारिक सूत्रों की मानें तो जिन किसान समूहों ने अब तक वैरीफिकेशन नहीं कराया है, उन्हें एक एनओसी जारी करना होगा. इसमें बताया जाएगा कि वो ऑर्गेनिक प्रोजेक्ट्स के लिए जिम्मेदार हैं और सभी किसानों की जानकारी सही है. अगर किसी तरह की कोई इररैगुलैरिटी पाई गई तो फिर सर्टिफिकेशन एजेंसी पर पैनाल्टी लगाई जा सकती है. साथ ही, किसानों और उनके समूहों को डॉक्यूमेंट्स, सर्टिफिकेशन, मैप और रिकॉर्ड मुहैया कराने होंगे. APEDA मैक्सिमस वैरीफिकेशन फीस पर भी डिसीजन लेगा ताकि किसानों पर ज्यादा बोझ न पड़े.
एक सूत्र ने बताया कि किसान संगठनों को अपने ही खर्च पर यह वैरीफिकेशन पूरा कराना होगा लेकिन एपीडा की टेक्निकल टीम किसी भी तरह से किसानों पर अतिरिक्त या अनुचित दबाव नहीं डालेगी. सूत्रों के अनुसार, निरीक्षण एजेंसियां सिर्फ मॉनिटरिंग करेंगी लेकिन किसानों के यात्रा खर्च और बाकी लागत भी किसान समूहों को उठानी पड़ सकती हैं. ट्रेसनेट नामक डिजिटल सिस्टम के माध्यम से इस पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की योजना है, यह वही सिस्टम है जो पहले राष्ट्रीय ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट प्रोग्राम में उपयोग किया जाता था.
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