दूध असहयोग आंदोलन से न‍िकला 'अमूल कोऑपरेट‍िव मॉडल', अब कर्नाटक में एंट्री से क‍िसे फायदा...

दूध असहयोग आंदोलन से न‍िकला 'अमूल कोऑपरेट‍िव मॉडल', अब कर्नाटक में एंट्री से क‍िसे फायदा...

नंदिनी डेयरी कर्नाटक म‍िल्क फेडरशन का ब्रांड है. वहीं कर्नाटक म‍िल्क फेडरेशन कर्नाटक डेयरी कॉआपरेट‍िव की अपेक्स बॉडी है, ज‍िसका गठन 1974 में कि‍या गया था. यहां पर ये गौर करने वाली बात है क‍ि कर्नाटक डेयरी फेडेशर का गठन अमूल मॉडल की तर्ज पर ही क‍िया गया था.

कर्नाटक व‍िधानसभा चुनाव से अमूल बनाम नंदनी दूध की जंग शुरू हो गई है- GFX Sandeep Bhardwajकर्नाटक व‍िधानसभा चुनाव से अमूल बनाम नंदनी दूध की जंग शुरू हो गई है- GFX Sandeep Bhardwaj
मनोज भट्ट
  • Apr 10, 2023,
  • Updated Apr 10, 2023, 6:07 PM IST

कर्नाटक व‍िधानसभा चुनाव 2023 की तैयार‍ियां पीक पर हैं. 10 मई को प्रस्ताव‍ित व‍िधानसभा चुनाव के लि‍ए राजनीत‍िक दलों के बीच वैचार‍िक नूरा-कुश्ती जारी है. इस बीच कर्नाटक व‍िधानसभा चुनाव में देश का सबसे बड़ा म‍िल्क ब्रांड अमूल चर्चा में है. कर्नाटक में अमूल ने अपने ब्रांड लांच करने की घोषणा की है, ज‍िस पर व‍िपक्ष हमलावार हो गया है. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स‍िद्धारमैया ने इसे कर्नाटक म‍िल्क फेडरेशन के दूध ब्रांड नंद‍िनी को खत्म करने की साज‍िश बताया है. व‍िपक्षी दल जेडीएस ने अमूल को लेकर कर्नाटक की बीजेपी सरकार पर हमला बोला है. इस पूरे मामले पर राजनीत‍िक आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. ऐसे में क‍िसान तक ने अमूल बनाम नंद‍िनी के पूरे व‍िवाद को समझने की कोश‍िश की है, ज‍िसे पूरा समझने से पहले अमूल के जन्म से लेकर व‍िस्तार तक की कहानी समझना जरूरी है. आइए इन सभी पहलुओं को स‍िलस‍िलेवार ढंग से समझते हैं. 

सरदार पटेल का दूध असहयोग आंदोलन

अमूल बनाम नंदिनी व‍िवाद को व‍िस्तार से समझने से पहले अमूल मॉडल के जन्म की कहानी को समझना जरूरी है. सही मायनों में अमूल मॉडल सरदार बल्लभ भाई पटेल की सोच की देन है. ये कहानी शुरू होती है 1942 से. गुजरात के खेड़ा में क‍िसान दूध के कम दाम म‍िलने को लेकर परेशान थे. इस परेशानी को खत्म करने के ल‍िए सरदार पटेल ने क‍िसानों की सहकारी सम‍ित‍ि शुरू करने की स‍िफार‍िश की थी, लेक‍िन उस दौरान इस पर काम नहीं हो सका. इसके बाद 1945 में बॉम्बे सरकार ने बॉम्बे म‍िल्क स्कीम शुरू की. इसके तहत आणंद से दूध की बॉम्बे आपूर्त‍ि की जानी थी. इसके ल‍िए सरकार ने पोलसन्स लिमिटेड के साथ एक समझौता किया, लेक‍िन क‍िसानों के ह‍िस्से फ‍िर भी कुछ नहीं आया. 

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इन हालातों में क‍िसानों ने एक बार फ‍िर सरदार पटेल से संपर्क क‍िया. तो पटेल ने सहकारी सम‍ित‍ि बनाकर दूध बेचने की सलाह दोहराई. साथ ही उन्होंने क‍िसानों को सलाह दी क‍ि वे सरकार से सहकारी सम‍िति‍ गठन करने की अनुमत‍ि मांगें. ऐसा न होने पर वे दूध बेचने से मना कर दें. इसी तरह सरदार पटेल की अगुवाई में दूध असहयोग आंदोलन शुरू हुआ.

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इसके बाद पटेल ने अपने व‍िश्वस्त सहयोगी मोरारजी देसाई को खेड़ा जिले में हड़ताल आयोजित करने के लिए भेजा. 4 जनवरी 1946 को देसाई ने समरखा गांव में एक बैठक की, ज‍िसमें एक संघ के बैनर तले प्रत्येक गांव में दूध उत्पादक सहकारी सम‍िति‍ गठ‍ित करने का फैसला ल‍िया गया. साथ ही बैठक में ये भी प्रस्ताव पास क‍िया गया क‍ि सरकार सहकारी सम‍िति से दूध की खरीदारी करेगी, ऐसा ना होने पर क‍िसान दूध नहीं बेचेंगे. लेक‍िन सरकार ने क‍िसानों की मांग ठूकरा दी. इसी तरह शुरू हुआ दूध असहयोग आंदोलन... 

अंग्रेज अफसर का दौरा और आणंद सहकारी सम‍ित‍ि का गठन

क‍िसानों का दूध असहयोग आंदोलन 15 द‍िनों तक चला. क‍िसानों ने व्यापार‍ियों को दूध नहीं बेचा. मसलन इन 15 द‍िनों तक बॉम्बे (अब का मुंबई) दूध नहीं पहुंचा और बाॅम्बे दूध योजना पूरी तरह से ध्वस्त हो गई. आंदोलन के 15 द‍िन पूरे हो जाने के बाद अंग्रेज अफसर ने आणंद का दौरा क‍िया ज‍िन्होंंने वहां पहुंच कर क‍िसानों की मांग को स्वीकार कर ल‍िया. इसी तरह खेड़ा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड, आणंद की शुरुआत हुई. 14 दिसंबर, 1946 को इसे औपचारिक रूप से पंजीकृत किया गया.

 

खेड़ा ज‍ि‍ला दूध उत्पादक सहकारी सम‍ित‍ि आंणद के कार्यालय की ऐत‍िहास‍िक तस्वीर- फोटाे साभार अमूल

अमूल का ऐसे हुआ जन्म  

खेड़ा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड, आणंद के गठन से क‍िसानों को नई ताकत म‍िली. देखते ही देखते कई अन्य ज‍िलों की सहकारी सम‍ित‍ियां भी इससे जुड़ती गईं. साथ ही दूध का कलेक्शन भी बढ़ता गया. हालांक‍ि इस बीच अध‍िक दूध की खपत जैसी चुनौति‍यां भी सामने आईं. इस बीच अध‍िक दूध से मक्खन और दूध पाउडर जैसे उत्पादों बनाने के व‍िचार ने भी जन्म ल‍िया. इसी तरह 50 लाख रुपये के बजट से दूध से पाउडर और मक्खन बनाने के प्लांट का खाका तैयार क‍िया गया. 1954 में इसकी आधारश‍िला राष्ट्रपत‍ि ने रखी. 1955 में इसने काम करना शुरू क‍िया. इससे देश में डेयरी काेऑपरेट‍िव में नया जाेश आया तो वहीं खेड़ा यूनियन ने अपनी उत्पाद शृंखला के विपणन के लिए ब्रांड "अमूल" पेश किया.

अमूल मॉडल की देन है देश में श्वेत क्रांत‍ि  

भारत के व‍िकास में श्वेत क्रांत‍ि यानी ऑपरेशन फ्लड की भूम‍िका किसी से छ‍िपी नहीं है. बेशक श्वेत क्रांत‍ि के हीरो वर्गीज कुर‍ियन थे, लेक‍िन इसका जन्म अगर अमूल मॉडल को कहा जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं है.असल में कुरि‍यन ने ही अमूल को लांच क‍िया था और 1964 में जब अमूल के कैटल फीड प्लांट का उद्घाटन करने के ल‍िए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री आणंद आए थे. तो उसी दौरान अमूल मॉडल के व‍िस्तार पर चर्चा हुई. ज‍िसके पर‍िणाम स्वरूप ही 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना की गई. इसी एनडीडीबी के नेतृत्व में देश में श्वेत क्रांत‍ि हुई. 

क‍िसानों को सबसे अध‍िक लाभ देने के ल‍िए जाना जाता है अमूल

देश के डेयरी कोऑपरेट‍िव का अगुवा अमूल को ही माना जाता है. असल में अमूल ने देशभर में अपना व‍िस्तार क‍िया है. उसके पीछे मुख्य अवधारणा इसे क‍िसानों की सहकारी सम‍िति‍ के तौर पर म‍िली पहचान है. अमूल क‍िसानों को सबसे अध‍िक लाभांश देने के ल‍िए जाना जाता है. अमूल से म‍िले आंकड़ों के अनुसार 50 रुपये लीटर वाला दूध अगर कोई उपभोक्ता अगर खरीदता है, उसमें से 42 रुपये से अध‍िक पैसा क‍िसानों के पास जाता है. आइए ग्राफ‍िक्स में अमूल का मार्जि‍न मॉडल समझने की कोश‍िश करते हैं. 

अमूल का मार्जिन मॉडल. GFX- संदीप भारद्वाज

अमूल मॉडल की तर्ज पर शुरू हुई नंदिनी डेयरी 

नंदिनी डेयरी कर्नाटक म‍िल्क फेडरशन का ब्रांड है. वहीं कर्नाटक म‍िल्क फेडरेशन कर्नाटक डेयरी कॉआपरेट‍िव की अपेक्स बॉडी है, ज‍िसका गठन 1974 में कि‍या गया था. यहां पर ये गौर करने वाली बात है क‍ि कर्नाटक डेयरी फेडरेशन का गठन अमूल मॉडल की तर्ज पर ही क‍िया गया था. ज‍िसकी तस्दीक फेडरेशन की वेबसाइट भी करती है. फेडरेशन अमूल के बाद देश का दूसरा बड़ा डेयरी कोऑपरेट‍िव है, तो वहीं फेडरेशन की पहचान दक्षि‍ण भारत के सबसे बड़े डेयरी कोऑपरेटि‍व की भी है.  

गुजरात मॉडल का राजनीत‍िक व‍िरोध और कन्नड अस्म‍िता...व‍िवाद की वजह 

अमूल बनाम नंद‍िनी डेयरी को लेकर शुरू हुआ व‍िवाद को अगर व‍िस्तार से समझने की कोश‍िश करेंगे तो इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारक समझ में आएंगे. असल में इस पूरे व‍िवाद को गुजरात मॉडल के राजनीत‍िक व‍िरोध और कन्नड अस्म‍िता से जोड़ कर बड़ा क‍िया जा रहा है. 2014 में नरेंद्र मोदी गुजरात मॉडल के दम पर ही देश के प्रधानमंत्री बने थे. इसके बाद से देश-व‍िदेश में गुजरात मॉडल चर्चा में आया था. बेशक अमूल मोदी के गुजरात मॉडल की देन नहीं है, नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले ही अमूल मॉडल देश-व‍िदेश में अपनी पहचान बना चुका था, लेक‍िन मौजूदा राजनीत‍िक पर‍िदृश्य में गुजरात मॉडल में ही अमूल को जोड़ने का प्रयास कि‍या जाता हुआ द‍िखाई दे रहा है. 

वहीं इस व‍िवाद के पीछे का दूसरा कारण कन्नड अस्‍म‍ि‍ता का राजनीत‍ि‍क मुद्दा नजर आता है. असल में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता स‍िद्धारमैया और जेडीएस लंबे समय से कन्नड अस्म‍िता के मुद्दे को लेकर अपनी राजनीत‍ि को धार दे रहे हैं. ज‍िसमें अमूल के व‍िरोध को भी इससे जोड़ कर देखा जा रहा है.          

अमूल की मौजूदगी से क‍िसानों को क‍ितना फायदा 

अमूल के कर्नाटक में एंटी से राजनीत‍िक घमासान मच गया है, लेक‍िन इस पर चर्चा कम ही हो रही है क‍ि अमूल की मौजूदगी से कर्नाटक के क‍िसानों को कि‍तना फायदा होगा. असल में देश भर के डेयरी कोऑपरेट‍िव में अमूल की पहचान क‍िसानों को अध‍िक फायदा पहुंचाने की रही है. मसलन, अमूल माॅडल में दूध से प्राप्त होने वाले कुल लाभ का सबसे अध‍िक ह‍िस्सा (लाभांश) क‍िसानों को म‍िलता है. ऐसे में माना जा रहा है क‍ि अमूल की मौजूदगी क‍िसानों को फायदा पहुंचा सकती है.      

अमूल से नंदिनी को क‍ितना खतरा

कर्नाटक में अमूल की मौजूदगी को नंदि‍नी के ल‍िए खतरा माना जा रहा है. इसको लेकर राजनीत‍िक आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. इसको समझने की कोशि‍श करें तो ये तय है क‍ि अमूल की एंट्री से कर्नाटक के डेयरी कोऑपरेट‍िव में काॅम्पटीशन बढ़ जाएगा, लेक‍िन, नंदिनी के वजूद को क‍िसी भी तरह के खतरा होने की बात को स्वीकारा नहीं जा सकता है. अमूल देश के कई राज्यों में है, जो एक गांव और ज‍िला स्थ‍ित डेयरी कोऑपरेट‍िव के संघ (अंब्रेला ऑर्गनाइजेशन ) के तौर पर काम करता है. ऐसा अभी तक नहीं हुआ है क‍ि अमूल ने क‍िसी राज्य डेयरी कोऑपरेट‍िव के वजूद को खत्म क‍िया है, लेक‍िन ये सच है क‍ि अमूल सभी डेयरी कोऑपरेटि‍व के बीच अपनी बादशाहत साब‍ित करने में सफल रहा है.        

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