ग्वार राजस्थान की एक अहम फसल है और यहां के किसान बड़े ही मन से इसकी खेती करते आए हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से किसानों का ध्यान इसकी खेती से अलग दूसरी फसलों की तरफ लग गया है. ऐसे में ग्वार के पुराने सुनहरे दिन और किसानों के बीच वही उत्साह वापस लाने के मकसद से एक खास पहल को लॉन्च किया गया है. इसे सस्टेनेबल ग्वाल इनीशिएटिव के तौर पर जाना जा रहा है. इसका मकसद छोटे किसानों के लिए बेहतर दिनों को वापस लाकर समाज को भी फायदा पहुंचाना है.
इस पहल को जोधपुर स्थित एनजीओ साउथ एशिया बायो टेक्नोलॉजी सेंटर की तरफ से शुरू किया गया है. एनजीओ के अनुसार साल 2012-13 राजस्थान के ग्वार (क्लस्टर बीन) किसानों और ग्वार गम इंडस्ट्री के लिए एक महत्वपूर्ण पल साबित हुआ. उस साल अमेरिका में कच्चे तेल के निकालने के लिए हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग (फ्रैकिंग) का बहुत प्रचार-प्रसार हुआ और ग्वार कुछ समय के लिए अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया.
जब मार्च-अप्रैल 2012 में तो ग्वार की कीमतें 29,000 से 30,000 रुपये प्रति क्विंटल के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गईं थीं. लेकिन 12 साल बाद इसकी कीमतों में भारी गिरावट देखी गई. एनजीओ की मानें तो साल 2024-25 में ग्वार की कीमतों में 5,000 से 5,500 रुपये तक की गिरावट दर्ज की गई है. खाद्य, चारा, दवा क्षेत्र और कॉस्मेटिक इंडस्ट्री के लिए ग्वार की अहमियत बरकरार है. लेकिन फिर भी इस फसल को अपना वास्तविक मूल्य प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
साउथ एशिया बायो टेक्नोलॉजी की मानें तो आज स्थिति बदल रही है. एनजीओ की तरफ से चलाई जा रही और बाड़मेर स्थित आदर्श ग्वार गम इंडस्ट्री की तरफ से सस्टेनेबल ग्वार इंडस्ट्री की शुरुआत की गई है जिसमें इसकी कीमतों में निष्पक्षता, स्थिरता और इसमें मौजूद मौकों को वापस लेकर आया जाएगा. एनजीओ ने इस पहल के तहत जो लक्ष्य गिनाएं हैं उनमें-
बेहतर गाइडेंस और मॉर्डन प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी के साथ किसानों को सशक्त बनाना
ग्वार की खेती के मूल सिद्धांत के रूप में स्थिरता को बढ़ावा देना
किसानों और प्राइस चेन भागीदारों, दोनों के लिए बाजार मूल्य में इजाफा करना.
एनजीओ का कहना है कि उसका मकसद एक समृद्ध, टिकाऊ ग्वार पारिस्थितिकी तंत्र को वापस लाना है जहां किसान तो अपना उचित हिस्सा कमाएं हीं और साथ ही साथ उद्योग अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचे. सस्टेनेबल ग्वार की ग्लोबल सप्लाई में तेजी आ रही है और ऐसे में यह बहुत जरूरी है. इस पहल पर साउथ एशिया बायो-टेक्नोलॉजी के डायरेक्टर भागीरथ चौधरी ने भी अपनी राय व्यक्त की. उन्होंने कहा, 'सस्टेनेबल ग्वार की ग्लोबल डिमांड में इजाफा हो रहा है. ऐसे में भारत पर फिर से ध्यान केंद्रित हो रहा है जो दुनिया की सप्लाई का करीब 90 फीसदी उत्पादन करता है. अकेले राजस्थान भारत के उत्पादन में लगभग 85 प्रतिशत का योगदान देता है.'
उनका कहना था कि यह उत्पादन 16 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 30.9 लाख हेक्टेयर पर आ गया है. एक दशक पहले, उत्पादन 60 लाख हेक्टेयर से 36 लाख टन तक पहुंच गया था, लेकिन दोनों आंकड़े तब से आधे हो गए हैं. उन्होंने बताया कि ग्वार गम का निर्यात 2023-24 में 4.2 लाख टन तक पहुंच गया था जिसकी कीमत 541.65 मिलियन डॉलर रही. वहीं ग्वार के सब-प्रॉडक्ट्स जैसे खाद्य, चारा, फार्मा और ब्यूटी कॉस्मेटिक्स में नए प्रयोग देखने को मिल रहे हैं. वहीं इस पहल से अस्थिर कच्चे तेल के बाजारों और वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों के मद्देनजर गुणवत्ता और स्थिरता की रक्षा की जा सकेगी. ऐसे में किसानों को इस नई मांग को पूरा करने के लिए तैयार किया जा रहा है.
यह भी पढ़ें-