सोयाबीन किसान परेशान हैं. नई फसल की आवक अभी शुरू भी नहीं हुई है और सोयाबीन 3800 से 4000 हजार रुपये क्विंटल पर बिक रहा है, जबकि सोयाबीन का MSP इस साल 4892 रुपये क्विंटल घोषित है. माना जा रहा है कि नई फसल की आवक के बाद सोयाबीन के दामों में अभी और गिरावट होगी. इस बात के मद्देनजर मध्य प्रदेश में सोयाबीन किसान आंदोलन कर रहे हैं और सोयाबीन के दाम 6 हजार रुपये क्विंटल करने की मांग कर रहे हैं. कुछ ये ही हाल रबी सीजन पर सरसों किसानों का भी था. सरसों के दाम MSP से एक हजार रुपये क्विंटल नीचे थे. इस बीच किसानों को बड़ी परेशानियाें का सामाना करना पड़ा. कारण... पाम ऑयल
पाम ऑयल ने भारत के तिलहनी फसलों के किसानों की परेशानियां बढ़ाई हुई हैं. पाम ऑयल इंपोर्ट पर रियायत ने किसानों को मुश्किल में डाला हुआ है. मसलन, अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए सस्ता पाम ऑयल इंपोर्ट करता है. ये कहानी पाम ऑयल इंपोर्ट के लिए डाॅलर खर्च करने की है. इस ट्रेंड ने देश के अंदर पाम ऑयल के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम तैयार किया है.
देश में अंदर पाम ऑयल का विस्तार हो रहा है तो वहीं इसको देखते हुए देश के अंदर 'मिलावट' का धंधा फल-फूल रहा है, जो सरसों, सोयाबीन किसानों की मुश्किल बढ़ा रहा है. आज की बात इसी पर...जानेंगे कि कैसे पाम ऑयल पर खर्च किसानों का मर्ज बढ़ा रहा है. जानेंगे कि भारत ने 5 साल में कितना पाम ऑयल इंपोर्ट किया है. पाम ऑयल इंपोर्ट में कितना खर्च किया और जानेंगे कि कैसे देश में पाम ऑयल की मिलावट करने वाले प्लांट बढ़ रहे हैं.
इस पूरी कहानी की शुरूआत पाम ऑयल इंपोर्ट पर रियायत से करते हैं. असल में भारत सरकार ने कच्चे पाम ऑयल पर 5 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगाई है, जिसमें एग्री सेस शामिल है. वहीं रिफाइंड पाम ऑयल में 13.5 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी निर्धारित की गई है, जो 31 मार्च 2025 तक के लिए लागू है. इंपोर्ट ड्यूटी में इस राहत से देश में सस्ता पाम ऑयल आता है, जिससे सरसों और सोयाबीन के दाम गिरते हैं.
देश में पाम ऑयल इंपोर्ट का बीते दशक में तेजी विस्तार हुआ है. इसे समझने से पहले भारत में खाद्य तेलों के हालों की बात करते हैं. भारत सरकार के खाद्य व सावर्जनिक वितरण विभाग की तरफ से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बीते 5 साल में भारत में खाद्य तेलों की खपत का 42 फीसदी (105 लाख मीट्रिक टन) खाद्य तेलों की आपूर्ति घरेलू स्तर पर हुई, जबकि 144 लाख मीट्रिक टन (58 फीसदी) खाद्य तेल इंपोर्ट किया गया.
विभाग के 7 सालों के आंकड़ों के अनुसार देश में रिफाइंड पाम ऑयल की तुलना में कच्चे पाम ऑयल का इंपोर्ट बढ़ा है तो वहीं देश में पिछले 5 साल में इंपोर्ट होने वाले कुल खाद्य तेलाें की तुलना में पाम ऑयल की हिस्सेदारी 59 फीसदी तक पहुंच गई है,जबकि दूसरे नंबर पर सोयाबीन है, पिछले 5 साल में कुल इंपोर्टेट खाद्य तेलों में 22 फीसदी हिस्सेदारी सोयाबीन की रही है.
भारत सरकार के खाद्य व सावर्जनिक वितरण विभाग की तरफ से उपलब्ध 7 सालों के आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में देश में 64.33 लाख मीट्रिक टन कच्चे पाम ऑयल का इंपोर्ट हुआ, जो 2022-23 में बढ़कर 75 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गया है. इसी तरह 2016-17 में रिफाइंड पाम ऑयल का इंपोर्ट 29 लाख मीट्रिक टन था, जो 2022-23 में घटकर 22 लाख मीट्रिक टन तक सिमट गया है. मायने ये ही हैं देश में कच्चे पाम ऑयल की इंपोर्ट् ड्यूटी में छूट का इंपोर्टर दबा कर फायदा उठा रहे हैं. जिसने देश में पाम ऑयल के लिए एक मजबूत ईकोसिस्टम तैयार किया है.
देश में पाम ऑयल विशेषकर कच्चे पाम ऑयल के विस्तार ने पाम ऑयल के लिए एक मजबूत ईकोसिस्टम तैयार किया है. भारत सरकार के खाद्य व सावर्जनिक वितरण विभाग की तरफ से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मौजूदा वक्त में देश के अंदर वनस्पति तेल उद्योगों में सबसे अधिक यूनिटों की संख्या ब्लेंडिंग करने वालों की है. विभाग के आंक्रड़ों के अनुसार मौजूदा वक्त में देश के अंदर वनस्पति प्राेडक्शन यूनिट की संंख्या 115 है, जबकि रिफाइनिंग यूनिट्स की संख्या 250 है. वहीं ब्लेडिंग वेजिटेबल ऑयल यूनिट्स की संंख्या 524 है. जबकि साल्वेंट एक्सटेंशन प्लांट यूनिट्स की संंख्या 131 है.
भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में खाद्य तेल इंपोर्ट करता है. जिसमें 59 फीसदी तक की हिस्सेदारी अकेले पाम ऑयल की है. साल 2022-23 के आंकड़ों से समझें तो भारत ने खाद्य तेल इंपोर्ट करने में 1.7 लाख करोड़ रुपये खर्च किए. इस अनुपात में इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल इंपोर्ट पर भारत की तरफ से किए गए खर्च का अनुमान लगाया जा सकता है. साथ ही इस पर भी चर्चा होनी चाहिए कि MSP ना मिलने से सोयाबीन और सरसों किसानों का कितना नुकसान हुआ. साथ ही इस पर भी चर्चा होनी चाहिए कि कैसे किसान नुकसान उठा कर खाद्य तेलों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनने की कहानी लिखेंगे. इस सूरत में तो किसान तिलहनी फसलों की खेती से दूरी बना लेंगे और वह वक्त दूर नहीं है, जब खाद्य तेलों की आत्मनिर्भरता के नारे के बीच भारत में इंपोर्टेट विशेष तौर पर पाम ऑयल का विस्तार हाेगा. मसलन, घर-घर इंपोर्टेट पाम ऑयल की आपूर्ति होगी.
पाम ऑयल के इस फल-फूलते साम्राज्य ने किसानों को नुकसान पहुंचाया है. इसको लेकर किसान संगठन पहले भी नाराजगी जता चुके हैं. जिसके तहत बीते साल राष्ट्रीय किसान महापंचायत ने दिल्ली में सरसों सत्याग्रह किया था. अब किसान महापंचायत ने पाम ऑयल पर बैन लगाने की मांग की है. महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने इस संदर्भ में एक पत्र पीएम मोदी को लिखा है, जिसमें पाम ऑयल से किसानों और मानव स्वास्थ्य को हो रहे नुकसान पर राष्ट्रीय विमर्श कराने की मांग करते हुए पाम ऑयल पर बैन लगाने की मांग की है.