
उत्तर गुजरात के किसान इस समय दोहरी मुसीबत में हैं. एक तरफ अनियमित बारिश ने लगभग पूरी खड़ी फसल बर्बाद कर दी है तो दूसरी तरफ जमीन का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूबा हुआ है. इसकी वजह से नई समस्या पैदा हो रही है. बेमौसमी बारिश की वजह से किसानों के सामने खरीफ फसलें जैसे अरंडी, ज्वार और बाजरा की फसल कैसे काटें, यह सवाल था तो अब खेतों में भरे पानी की वजह से रबी की बुआई भी टालनी पड़ रही है. उत्तर गुजरात के ज्यादातर किसान इसी मुसीबत में हैं क्योंकि इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के कारण पानी आसानी से निकल नहीं पाता.
हाल ही में गुजरात सरकार ने 10,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है. एक सर्वे में इस बात का पता चला कि करीब 16,000 गांवों में फैले 42 लाख हेक्टर कृषि क्षेत्र अनियमित बारिश का शिकार हुआ है. शनिवार को ही कृषि मंत्री जितुभाई वघाणी ने घोषणा की है कि राज्य सरकार सोमवार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) योजना के तहत धान, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी की खरीद शुरू करेगी. इसके लिए 113 केंद्र स्थापित किए गए हैं. हालांकि गुजरात सरकार ने सितंबर और अक्टूबर में हुई बारिश से हुए नुकसान के लिए किसानों को 11,138 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है, फिर भी कई जिलों के किसान कहते हैं कि उन्हें हालात में किसी तरह के सुधार की उम्मीद नहीं दिख रही है.
एक किसान नरसेंगाभाई पटेल ने अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, 'सरकार ने जिस मदद का ऐलान किया है वह अधिकतम 2 हेक्टेयर तक सीमित है. इस सीमा को कम से कम 5 हेक्टेयर तक बढ़ाया जाना चाहिए. इस मदद से तो किसानों का ईंधन खर्च भी पूरा नहीं होता. किसान किसी के सामने भीख नहीं मांगते, वो सम्मान के साथ जीवन जीते हैं. सरकार अब भी नुकसान का सबूत फोटो और वीडियो के रूप में मांग रही है, जबकि उन्हें अच्छी तरह पता है कि पूरा इलाका अभी भी जलभराव में डूबा हुआ है. थराद के नागला, खानपुर और डेडगाम जैसे गांवों में खेतों में करीब 10 फीट तक पानी भरा है.'
बुधवार को राज्य सरकार ने दावा किया कि अक्टूबर में हुई अनियमित बारिश से प्रभावित किसानों के लिए घोषित 10,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज के तहत अब तक 10 लाख से ज्यादा किसानों ने मदद के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिया है. इसके अलावा, सितंबर 2025 में भारी बारिश से प्रभावित पांच जिलों के 1.25 लाख किसानों ने कृषि राहत पैकेज के लिए भी रजिस्ट्रेशन किया है.
जलभराव का असर सिर्फ उत्तर गुजरात के किसानों तक ही सीमित है, ऐसा नहीं है. बल्कि जूनागढ़ जिले के किसान भी इससे गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं. एक किसान अशीष पिथिया, जिनके पास 70 बीघा जमीन है, ने बताया, 'मंगरोल से द्वारका तक समुद्र तट के किनारे फैले लगभग 200 वर्ग किलोमीटर के ‘घेड’ क्षेत्र (जो समुद्र स्तर से नीचे है) का 70 फीसदी से ज्यादा हिस्सा अभी भी जलभराव में है. जमीन को सूखने में कम से कम डेढ़ महीने और लगेंगे.'
इस जलभराव का कृषि भूमि पर कितना बुरा असर पड़ेगा, इस बारे में पिथिया ने खासतौर पर बताया. उन्होंने बताया, 'मिट्टी में लवणता बढ़ जाएगी. बराबर और जरूरी धूप नहीं मिलने से जमीन की क्वालिटी और खराब हो जाएगी. जहां एक बीघा में आमतौर पर 20–25 किलो बीज लगता है, अब किसानों को 40 किलो बीज डालने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, वह भी तब जब पानी पूरी तरह उतर जाएगा. अनियमित बारिश के कारण किसान अपनी खरीफ फसल खो चुके हैं और अब इस देरी की वजह से रबी की खेती में भारी गिरावट आएगी.' इस हफ्ते की शुरुआत में, राज्य सरकार ने यह भी घोषणा की कि जीरे की बुवाई के लिए छह जिलों के किसानों को आठ घंटे के बजाय दो एक्स्ट्रा घंटे बिजली सप्लाई की जाएगी.
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