
काजू की खेती भारत में तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है, क्योंकि कम क्षेत्र में भी यह किसानों को अच्छी और लगातार आय दिला सकती है. गर्म और धूप वाले मौसम और शुष्क ऋतु काजू की उपज के लिए उत्तम मानी जाती है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, यदि किसान वैज्ञानिक पद्धति से खेती करें तो प्रति पेड़ 3–4 किलोग्राम तक उपज पा सकते हैं.
काजू किसी भी प्रकार की मिट्टी में उग सकता है, हालांकि लाल दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त है. मैदानों के साथ-साथ 600–700 फीट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्र भी इसके लिए अनुकूल हैं.
45×45×45 सेमी के गड्ढे खोदकर उनमें मिट्टी + 10 किलो गोबर खाद + 1 किलो नीमखली मिलाई जाती है.
1. स्टेम बोरर (तना छेदक कीट)
2. टी मच्छर (टी मॉस्किटो बग)
भारत में अधिकांश काजू प्रोसेसिंग मैन्युअल तरीके से की जाती है. मुख्य चरण इस प्रकार हैं:
1. रोस्टिंग (भूनना)
छिलका नरम करने के लिए भुनाई या भाप विधि अपनाई जाती है.
2. शेलिंग (छिलका हटाना)
लकड़ी के छोटे हथौड़े से खोल तोड़कर कर्नेल निकाला जाता है.
3. पीलिंग (ऊपरी परत हटाना)
काजू की सुरक्षात्मक परत हटाने के लिए पिन या चाकू का उपयोग किया जाता है.
4. स्वेटिंग
कर्नेल को जमीन पर फैलाकर नमी सोखने दी जाती है ताकि टूटने की संभावना कम हो.
5. ग्रेडिंग
कर्नेल को अखंड, टूटा हुआ और स्लिट रूपों में बांट दिया जाता है.
6. पैकिंग
10 किलो टिन में भरकर CO₂ गैस से सील किया जाता है, ताकि सफर के दौरान कीटों का अटैक न हो और फल में खराबी न आए.
काजू की बढ़ती मांग, निर्यात क्षमता और बेहतर कीमतों को देखते हुए किसान इसकी खेती लगातार बढ़ा रहे हैं. उचित प्रबंधन और वैज्ञानिक तकनीकों के साथ यह फसल किसानों के लिए हाई-वैल्यू और हाई-रिटर्न वाली खेती साबित हो सकती है.