अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव प्रस्तावित हैं. इससे पहले इसी साल के आखिर में देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिन्हें लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. ऐसे में राजनीतिक दलों के बीच सेमीफाइनल की राजनीतिक पिच पर धुंआधार बैटिंग कर अपने पक्ष में मतदाताओं को लुभाने के प्रयास जारी हैं. इन प्रयासों के बीच देशभर की जनता का ध्यान दो नए 'कानूनों' ने अपनी तरफ खींचा है. एक केंद्र सरकार की तरफ से प्रस्तावित यूनिवर्सल सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता (UCC) है. तो वहीं दूसरा, राजस्थान विधानसभा में बीते दिनों पास हुआ महात्मा गांधी न्यूनतम आय गारंटी योजना (MGMIGS) है. इन दोनों ही 'कानूनों' का विश्लेषण करने के लिए इसके पीछे की अवधारणा को समझा जाए तो कहा जा सकता है कि दोनों ही 'कानूनों' को लाने की वजह जनसंख्या का बढ़ता दबाव और उससे उपजने वाली चुनौतियों को कम करने की सरकारी कोशिशें हैं. जिसमें सबसे बड़ी चुनौती सामाजिक सुरक्षा दिखाई देती है.
खैर... अपने मूल विषय पर वापस लौटते हैं, जिसमें UCC और MGMIGS पर सामांतर बहस करने के बजाय MGMIGS का पूरा विश्लेषण करना है, जिसके तहत समझते हैं कि राजस्थान सरकार की महात्मा गांधी न्यूनतम आय गारंटी योजना यानी MGMIGS क्या चुनावी साल में कोई खांटी चुनावी खेल है या ये योजना, सूचना के अधिकार, मनरेगा जैसी योजनाओं की तरह गेम चेंजर साबित हो सकती है. कोशिश करेंगे कि इस पूरे मामले को देश की बढ़ती जनसंख्या, बेरोजगारी का मुद्दा, सामाजिक सुरक्षा, चुनावी साल और आम आदमी के हाल के नजरिए से देखा जाए.
महात्मा गांधी न्यूनतम आय गारंटी योजना यानी MGMIGS को समझने से पहले जरूरी है कि देश की जनसंख्या पर बात की जाए. असल में भारत ने बीते कुछ समय पहले ही जनसंख्या के मामले में चीन को मात दी है, जिसके बाद भारत को सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश का ताज मिला है. मसलन भारत की जनसंख्या 142 करोड़ के पार हो गई है.
ये भी पढ़ें- Minimum Income Guarantee: राजस्थान में 125 दिन का 'गांरटीड' रोजगार, नहीं तो बेरोजगारी भत्ता
बेशक देश की ये जनसंख्या भारत का जनबल है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ ही कुछ चुनौतियां भी सामने आ रही है, जिसमें बेरोजगारी और बढ़ती सामाजिक सुरक्षा की चिंता प्रमुख है. ऐसे में सरकारों की जिम्मेदारियां बढ़ी हैं कि वह रोजगार की व्यवस्था करें.
महात्मा गांधी न्यूनतम आय गारंटी योजना को समझने के क्रम में अब देश की बेरोजगारी दर और गरीबी के हाल पर भी चर्चा करना जरूरी है. प्राइवेट एजेंसी CMIE के आंकड़ों के अनुसार जून 2023 में भारत की बेरोजगारी दर 7.7 फीसदी रही है. तो वहीं अगर देश में गरीबी रेखा के हाल को इंटरनेशल आंकड़ों के हिसाब से समझने की कोशिश करें तो वह परेशान करते हैं. विश्व बैंक की तरफ से साल 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार देश के लगभग 137 मिलियन लोग प्रतिदिन 46 रुपये से जीवन यापन कर रहे हैं और 612 मिलियन लोग की प्रति दिन की आय 78 रुपये प्रति दिन थी. इन हालातों में सामाजिक सुरक्षा जैसा मुद्दा देश की एक बड़ी आबादी के लिए जरूरी हो जाता है.
देश की बेरोजगारी दर और गरीबी के हाल को आंकड़ों से समझा जाए तो सामाजिक सुरक्षा बेहद ही जरूरी हो जाती है, जिसको लेकर केंद्र व राज्य सरकारें लगातार काम करती रही हैं. इसी कड़ी में सरकारों की तरफ से फ्री अनाज वितरण, मनरेगा समेत अन्य योजनाओं से यह काम किया जा रहा है. तो वहीं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकारें कई योजनाओं में नागरिकों को काम शुरू करने के लिए सस्ती दर पर लोन और सब्सिडी भी उपलब्ध करवा रही हैं.
सामाजिक सुरक्षा और सरकारी योजनाओं पर जिक्र के बाद काम के मौलिक अधिकार पर चर्चा करना जरूरी सा लगता है. बेशक, न्यूनतम आय गारंटी योजना यानी MGMIGS को विधानसभा में पारित किए जाने के बाद ही सरकार की तरफ से फ्री की घोषणाओं पर एक बार फिर चर्चाएं शुरू हो गई हैं, जिसमें पक्ष-विपक्ष नजर आ रहे हैं. एक तरफ एक पक्ष इस योजना से राजकोष पर बोझ बढ़ने की बात कर रहा है. तो वहीं दूसरा पक्ष से काम के मौलिक अधिकारों की तरफ बढ़ते कदम बता रहा है.
ये भी पढ़ें- Minimum Income Guarantee: गारंटीड रोजगार की 'सौगात' तो फिर क्यों बेरोजगारी भत्ते की बात!
इसको लेकर मजदूर किसान शक्ति संगठन के सदस्य कमल टांक कहते हैं कि संविधान में जीवन जीने का मौलिक अधिकार है और जीवन जीने के लिए काम यानी रोजगार बेहद जरूरी है. ऐसे में मिनिमन इनकम गांरटी योजना रोजगार के मौलिक अधिकार की तरफ बढ़ते कदम हैं. वहीं इसको लेकर कई विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि ऐसी बड़ी घोषणाएं अक्सर राजनीतिक दल अपनी सुविधाओं के अनुसार करते हैं. सिलेंडर से सब्सिडी छोड़ने का नारा और पीएम किसान की घोषणा इसका एक उदाहरण है.
दुनियाभर में मिनिमम इनकम गारंटी की चर्चा कई दशकों से है. यूरोप के कई देश अपने नागरिकों को मिनिमम इनकम गारंटी दे रहे हैं. कुछ इसी तर्ज देश में कांग्रेस ने सत्ता में आने पर नागरिकों को 72 हजार सालाना यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) देने का वायदा किया था. अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार कुछ इसी तर्ज पर महात्मा गांधी न्यूनतम आय गारंटी योजना लेकर आई है. हालांकि ये योजना UBI योजना से अलग है. UBI का फार्मूला कहता है कि इसका लाभ लेने वालों को किसी भी तरह की सब्सिडी का लाभ नहीं मिलेगा, जबकि MGMIGS सिर्फ न्यूनतम गारंटी की बात करता है. मसलन, इस योजना का लाभ लेने वाले नागरिक अन्य सब्सिडी का लाभ भी ले सकते हैं.
राजस्थान सरकार MGMIGS तब लेकर आई है, जब विधानसभा चुनाव बेहद ही करीब हैं. बेशक ये अधिनियम विधानसभा में पेश हुआ है, लेकिन इस पर अभी राज्यपाल के हस्ताक्षर होने हैं. माना जा रहा है कि ये अधिनियम जब तक कानून बनेगा, तब तक चुनाव की आचार संहिता लग जाएगी. ऐसे में ये राजस्थान सरकार की चुनावी चाल है. साथ ही बीजेपी ये कहकर भी विरोध कर रही है कि सरकार ने पिछले साढ़े चार सालों में इस तरह की किसी योजना पर काम नहीं किया है. मसलन, चुनावी माइलेज लेने के लिए गहलोत सरकार इस तरह की योजना लेकर आ रही है.
इसका क्रियान्वयन से पहले ही चुनाव हो जाएंगे और चुनाव के बाद इसका क्रियान्वयन कई मायनों में चुनौतीपूर्ण होगा. वहीं इसको लेकर कांग्रेस के प्रवक्ता नितिन सारस्वत कहते हैं कि गहलोत सरकार एक कानून के रूप में इसे लेकर आ रही है, जिसके क्रियान्वयन में देरी हो सकती है, लेकिन इस योजना का क्रियान्वयन करना कानूनी रूप से जरूरी होगा.