चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग ने एक महत्वपूर्ण तकनीकी बैठक का आयोजन किया. इस बैठक का उद्देश्य वर्ष 2024-25 की अनुसंधान योजनाओं की समीक्षा करना और वर्ष 2025-26 के लिए नई योजनाएं बनाना था. इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए, जबकि अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने अध्यक्षता की.
कुलपति प्रो. काम्बोज ने वैज्ञानिकों से कहा कि अब समय आ गया है कि रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक और पर्यावरण-अनुकूल कीट नियंत्रण तकनीकों पर काम किया जाए. उन्होंने कहा कि इससे न केवल पर्यावरण बचेगा, बल्कि किसानों की सेहत और मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहेगी.
उन्होंने फसल-प्रणाली आधारित एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) अपनाने पर ज़ोर दिया. इसके अंतर्गत कीट प्रतिरोधी किस्मों का विकास, जैव-कीटनाशकों का प्रयोग और मित्र कीटों का संवर्धन किया जाना चाहिए. यह तरीका फसलों की सुरक्षा के साथ-साथ लागत भी घटाता है.
प्रो. काम्बोज ने कहा कि कपास में गुलाबी सुंडी, गन्ने में बोरर और अन्य प्रमुख फसलों में कीट प्रकोप को समय पर रोकने के लिए नई तकनीकों का विकास आवश्यक है. जलवायु परिवर्तन के कारण कीटों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है, जिससे वैज्ञानिकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए.
कुलपति ने ज़ोर देते हुए कहा कि कीटों की निगरानी और पूर्वानुमान प्रणाली को मज़बूत करना बेहद ज़रूरी है. इससे किसानों को समय पर सही जानकारी मिल सकेगी और वे सही समय पर सही कीटनाशक का छिड़काव कर पाएंगे.
उन्होंने वैज्ञानिकों को सलाह दी कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग करते हुए एक निर्णय समर्थन प्रणाली तैयार करें, ताकि किसानों को मोबाइल या अन्य माध्यम से सटीक सलाह मिल सके.
प्रो. काम्बोज ने मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीटों के संरक्षण को भी बहुत ज़रूरी बताया. उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन को सिर्फ शहद उत्पादन तक सीमित न रखें, बल्कि मोम, पराग, प्रोपोलिस और रॉयल जेली जैसे बहु-मूल्य उत्पादों से किसानों की आय भी बढ़ाई जा सकती है.
उन्होंने कहा कि ट्राइकोग्राम्मा, क्रायसोपा जैसे मित्र कीटों का बड़े स्तर पर उत्पादन और वितरण होना चाहिए ताकि कीटनाशकों का उपयोग कम किया जा सके और प्राकृतिक संतुलन बना रहे. अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने वैज्ञानिकों को सुझाव दिया कि सभी प्रमुख फसलों पर आधारित कीटों की पहचान, जीवन चक्र, क्षति के लक्षण और प्रबंधन पद्धतियों पर एक कैटलॉग या एटलस तैयार किया जाए. इससे किसान और कृषि विस्तार अधिकारी आसानी से जानकारी प्राप्त कर सकें.
उन्होंने यह भी कहा कि कृषि उत्पादों में कीटनाशी अवशेषों की निगरानी होनी चाहिए और उत्पादन अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के अनुसार होना चाहिए. इससे निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा.
कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष डॉ. सुनीता यादव ने सभी अधिकारियों और वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त किया. इस अवसर पर डॉ. आर.के. गुप्ता, डॉ. सुरेन्द्र धनखड़, डॉ. सुरेन्द्र यादव, डॉ. सुरेश सीला और डॉ. रामनिवास श्योकंद भी उपस्थित रहे. यह बैठक हरियाणा के किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है. अगर वैज्ञानिक बताए गए दिशा-निर्देशों का पालन करें, तो हम आने वाले समय में कीट प्रबंधन में एक बड़ा बदलाव देख सकते हैं-जो कृषि को अधिक सुरक्षित, टिकाऊ और लाभकारी बनाएगा.