किसानों को मिलेगी कीटों से राहत, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में नई तकनीकों पर जोर

किसानों को मिलेगी कीटों से राहत, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में नई तकनीकों पर जोर

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में कीट विज्ञान विभाग की तकनीकी बैठक में कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने जैविक कीट नियंत्रण, IPM और कीटों की निगरानी प्रणाली को मजबूत बनाने पर जोर दिया. जानें कैसे ये पहलें किसानों के लिए फायदेमंद साबित होंगी.

किसानों को मिलेगा कीटों से राहतकिसानों को मिलेगा कीटों से राहत
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jul 16, 2025,
  • Updated Jul 16, 2025, 4:13 PM IST

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग ने एक महत्वपूर्ण तकनीकी बैठक का आयोजन किया. इस बैठक का उद्देश्य वर्ष 2024-25 की अनुसंधान योजनाओं की समीक्षा करना और वर्ष 2025-26 के लिए नई योजनाएं बनाना था. इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए, जबकि अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने अध्यक्षता की.

रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक पर जोर

कुलपति प्रो. काम्बोज ने वैज्ञानिकों से कहा कि अब समय आ गया है कि रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक और पर्यावरण-अनुकूल कीट नियंत्रण तकनीकों पर काम किया जाए. उन्होंने कहा कि इससे न केवल पर्यावरण बचेगा, बल्कि किसानों की सेहत और मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहेगी.

एकीकृत कीट प्रबंधन की आवश्यकता

उन्होंने फसल-प्रणाली आधारित एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) अपनाने पर ज़ोर दिया. इसके अंतर्गत कीट प्रतिरोधी किस्मों का विकास, जैव-कीटनाशकों का प्रयोग और मित्र कीटों का संवर्धन किया जाना चाहिए. यह तरीका फसलों की सुरक्षा के साथ-साथ लागत भी घटाता है.

गुलाबी सुंडी और अन्य कीटों पर विशेष ध्यान

प्रो. काम्बोज ने कहा कि कपास में गुलाबी सुंडी, गन्ने में बोरर और अन्य प्रमुख फसलों में कीट प्रकोप को समय पर रोकने के लिए नई तकनीकों का विकास आवश्यक है. जलवायु परिवर्तन के कारण कीटों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है, जिससे वैज्ञानिकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए.

कीटों की निगरानी और पूर्वानुमान हो सशक्त

कुलपति ने ज़ोर देते हुए कहा कि कीटों की निगरानी और पूर्वानुमान प्रणाली को मज़बूत करना बेहद ज़रूरी है. इससे किसानों को समय पर सही जानकारी मिल सकेगी और वे सही समय पर सही कीटनाशक का छिड़काव कर पाएंगे.

ICT आधारित निर्णय समर्थन प्रणाली की जरूरत

उन्होंने वैज्ञानिकों को सलाह दी कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग करते हुए एक निर्णय समर्थन प्रणाली तैयार करें, ताकि किसानों को मोबाइल या अन्य माध्यम से सटीक सलाह मिल सके.

मधुमक्खियों और परागणकों का संरक्षण

प्रो. काम्बोज ने मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीटों के संरक्षण को भी बहुत ज़रूरी बताया. उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन को सिर्फ शहद उत्पादन तक सीमित न रखें, बल्कि मोम, पराग, प्रोपोलिस और रॉयल जेली जैसे बहु-मूल्य उत्पादों से किसानों की आय भी बढ़ाई जा सकती है.

मित्र कीटों का उत्पादन और वितरण

उन्होंने कहा कि ट्राइकोग्राम्मा, क्रायसोपा जैसे मित्र कीटों का बड़े स्तर पर उत्पादन और वितरण होना चाहिए ताकि कीटनाशकों का उपयोग कम किया जा सके और प्राकृतिक संतुलन बना रहे. अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने वैज्ञानिकों को सुझाव दिया कि सभी प्रमुख फसलों पर आधारित कीटों की पहचान, जीवन चक्र, क्षति के लक्षण और प्रबंधन पद्धतियों पर एक कैटलॉग या एटलस तैयार किया जाए. इससे किसान और कृषि विस्तार अधिकारी आसानी से जानकारी प्राप्त कर सकें.

गुणवत्ता और अवशेषों पर निगरानी

उन्होंने यह भी कहा कि कृषि उत्पादों में कीटनाशी अवशेषों की निगरानी होनी चाहिए और उत्पादन अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के अनुसार होना चाहिए. इससे निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा.

कार्यक्रम का समापन

कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष डॉ. सुनीता यादव ने सभी अधिकारियों और वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त किया. इस अवसर पर डॉ. आर.के. गुप्ता, डॉ. सुरेन्द्र धनखड़, डॉ. सुरेन्द्र यादव, डॉ. सुरेश सीला और डॉ. रामनिवास श्योकंद भी उपस्थित रहे. यह बैठक हरियाणा के किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है. अगर वैज्ञानिक बताए गए दिशा-निर्देशों का पालन करें, तो हम आने वाले समय में कीट प्रबंधन में एक बड़ा बदलाव देख सकते हैं-जो कृषि को अधिक सुरक्षित, टिकाऊ और लाभकारी बनाएगा.

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