हरियाणा में सियासी उलटफेर के बावजूद पंजाब-हरियाणा के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन जारी रहेगा. यह आंदोलन आठ महीने से अधिक वक्त से चल रहा है और अब इसका नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा-गैर राजनीतिक (SKM-NP) और किसान मजदूर मोर्चा ने एक बड़ा फैसला लिया है. मोर्चा ने विवाद के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी को नकार दिया है. साथ ही कमेटी को पत्र लिखकर 7 कारणों से कमेटी के साथ बात करने में असमर्थता जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने 2 सितंबर, 2024 को आंदोलन कर रहे किसानों की शिकायतों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश नवाब सिंह की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी का गठन किया था.
इस कमेटी जानेमाने कृषि अर्थशास्त्री देवेंद्र शर्मा, रंजीत घुम्मन, डॉ. सुखपाल, बीएस संधू और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी बीआर कंबोज शामिल हैं. कमेटी ने संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) एवं किसान मजदूर मोर्चा को पत्र भेजा था. दोनों मोर्चों ने गंभीर विचार-विमर्श के बाद कमेटी को जवाब के तौर पर एक पत्र लिखा है. जिसमें साफ कहा गया है कि किसी भी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से कमेटी गठित करने की मांग नहीं की थी.
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1. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि आंदोलनकारी किसानों की एक बड़ी मांग निष्पक्ष कमेटी गठित करना है, यह बात असत्य है. क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) एवं किसान मजदूर मोर्चा ने कभी भी कमेटी निर्माण की मांग नहीं की. फरवरी 2024 में आंदोलन की शुरुआत में केंद्र सरकार द्वारा कमेटी बनाने का प्रस्ताव जरूर दिया गया था, जिसे आंदोलनकारी किसानों ने नकार दिया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पढ़ कर प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव को जबरदस्ती किसानों की मांग बताकर उन पर थोपने का प्रयास किया गया है.
2. साल 2004 में केंद्र सरकार द्वारा डॉ. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कृषि आयोग बनाया गया था. जिसने 2006 में अपनी रिपोर्ट दी थी. जिसमें कहा गया था कि किसानों को C2+50% फॉर्मूले के अनुसार फसलों का MSP दिया जाना चाहिए. इस रिपोर्ट को न तो यूपीए और न ही एनडीए सरकार ने लागू किया. जिसके बाद 2015 में देश के किसान आखिरी विकल्प के तौर पर बड़ी उम्मीदों के साथ सुप्रीम कोर्ट गए.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने लिखित जवाब दिया कि हम स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू नहीं कर सकते. इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कोई सख्त स्टैंड नहीं लिया. यदि कोर्ट उस समय कहता कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए आयोग की यह रिपोर्ट है, जिसे सत्ता में आने के बाद लागू करने का वादा भाजपा ने किया था. इसलिए अब वे इस से पीछे नहीं हट सकते और इसे लागू करना पड़ेगा, तो आज हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई वर्तमान कमेटी पर विश्वास करने की स्थिति में होते.
3. सुप्रीम कोर्ट का आदेश किसानों पर हथियारबंद होने के उन सरकारी आरोपों की चर्चा करता है, जो आरोप सत्य से परे हैं. कोर्ट के आदेश में उन इंजेक्टर मोर्टारों, जहरीली गैसों व सरकारी अत्याचारों की कहीं कोई चर्चा नहीं की गई है जिनका इस्तेमाल सरकार द्वारा निहत्थे व निर्दोष किसानों पर किया गया.
कोर्ट का आदेश इस बात की कोई चर्चा नहीं करता कि सरकार द्वारा की गई हिंसा में 433 किसान घायल हुए, 5 किसानों की आंखों की रोशनी चली गई और किसानों के दर्जनों ट्रैक्टर-ट्राली तोड़ दिए गए. युवा किसान शुभकरण सिंह की गोली मारकर हत्या करने का आरोप हरियाणा पुलिस पर है, उसी हरियाणा पुलिस से उस मामले की जांच कराना कहां तक उचित है? क्या आरोपियों से निष्पक्ष जांच की उम्मीद की जा सकती है?
4. सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में किसान आंदोलन के मुद्दों को न्यायपूर्ण, सही, व्यवहारिक व सब के हित में होने पर संदेह जाहिर करते हुए कहता है कि आंदोलनकारी किसान तुरंत न मानी जाने वाली मांगों पर न अड़े हैं. जबकि सच यह है कि 2011 में स्वयं उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित कमेटी द्वारा MSP गारंटी कानून का सुझाव दिया गया था. यही नहीं केंद्र सरकार ने 2004 में डॉ. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था, जिसने C2+50% फॉर्मूले के अनुसार फसलों का MSP किसानों को देने की बात कही थी. यह सब साबित करता है कि आंदोलनकारी किसानों की मांगें न्यायपूर्ण, व्यवहारिक एवं सब के हित में हैं.
स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले के अनुसार फसलों का MSP देने सहित हमारी तमाम मांगें अलग-अलग सरकारों द्वारों अलग-अलग समय पर स्वीकार की गई हैं. यदि सुप्रीम कोर्ट उन मांगों को तुरंत लागू न होने की बात कहकर किसानों को अड़िग न होने की हिदायत देता है तो आंदोलनकारी किसानों को वो हिदायत स्वीकार्य नहीं है. कोर्ट का आदेश अपनी बनाई कमेटी के अध्यक्ष व सदस्यों को खर्च, मेहनत एवं कार्य के अनुपात में मेहनताना देने की बात तो करता है, लेकिन दूसरी तरफ किसानों को उनकी मेहनत (C2+50% फॉर्मूले) के अनुसार फसलों के भाव देने की मांग को अव्यवहारिक होने की तरफ इशारा करता है.
5. सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में आंदोलनकारी किसानों को राजनीति से उचित दूरी बनाने की हिदायत देता है, जबकि पूरा देश जानता है कि 13 फरवरी से शुरू हुआ आंदोलन शुद्ध तौर पर गैर-राजनीतिक है और आज तक किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को संगठन ने अपने मंच का इस्तेमाल नहीं करने दिया. यदि अपनी मांगों को लेकर किसान प्रतिनिधियों द्वारा नेता विपक्ष के साथ मुलाकात को कोर्ट द्वारा राजनीति माना जा रहा है तो भारत के पूर्व न्यायाधीश रंजन गोगई द्वारा रिटायर होते ही राज्यसभा के सांसद की शपथ लेने को क्या गैर-राजनीतिक कहा जाएगा?
6. सुप्रीम कोर्ट का आदेश पंजाब या हरियाणा सरकार द्वारा चयनित किसी अन्य जगह पर आंदोलन को लेकर जाने की तरफ भी इशारा करता है. लेकिन इस बात पर कोई टिपण्णी नहीं की गई कि किसानों द्वारा 6 फरवरी को दिल्ली पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर दिल्ली में जंतर-मंतर या रामलीला मैदान में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की अनुमति मांगी गई थी, जिस पर आजतक किसानों को कोई जवाब नहीं मिला है.
7. सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश एवं कमेटी द्वारा हमें भेजे गए पत्र में कमेटी के कार्यक्षेत्र एवं अपनी सिफारिशों को लागू कराने के अधिकारों की कोई चर्चा नहीं की गई है. इन वजहों से संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) एवं किसान मजदूर मोर्चा सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी से बात करने में असमर्थ है. इस पत्र की कॉपी हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी को भी भेजी गई है.
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