पंजाब के सैकड़ों किसान इन दिनों एक गंभीर संकट से जूझ रहे हैं. एक बीमारी ने न सिर्फ उनकी धान की फसल को बर्बाद कर दिया है बल्कि उनकी उम्मीदों, रोजगार और भरोसे को भी गहरी चोट पहुंचाई है. कभी सुनहरे उत्पादन का वादा करने वाली फसल अब किसानों के लिए दुःस्वप्न बन चुकी है. राज्य सरकार ने ऐसे प्रभावित किसानों को मुआवजा देने का भरोसा तो दिया है लेकिन लेकिन अब तक प्रति एकड़ मुआवजे की राशि की घोषणा नहीं की गई है. इस देरी से किसानों में नाराजगी और असमंजस की स्थिति है.
ड्वार्फिंग डिजीज या बौनापन रोग ने इस बार धान के किसानों की उम्मीदों को तोड़ दिया है. पहली बार पंजाब में साल 2022 में यह रोग देखा गया था. अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस साल यह बीमारी और ज्यादा आक्रामक होकर लौटी है जिससे पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, रूपनगर समेत कई जिलों में करीब 11,000 एकड़ फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई है. इस बीमारी का वैज्ञानिक नाम सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ डिजीज है.
यह बीमारी वायरस व्हाइटबैक्ड प्लांटहॉपर (WBPH) नामक कीड़े से फैलता है और पौधों की बढ़वार रोक देता है. संक्रमित पौधे बौने रह जाते हैं, उनकी पत्तियां सीधी व संकरी हो जाती हैं और जड़ें कमजोर पड़ जाती हैं. कई बार पौधे समय से पहले सूख जाते हैं. फतेहगढ़ साहिब के फरौर गांव के किसान टोनी सिंह ने बताया, 'शुरुआत में पौधे हरे-भरे दिख रहे थे लेकिन अचानक उनकी बढ़त रुक गई. अब प्रति एकड़ 2-3 क्विंटल उपज भी नहीं मिलेगी. छिड़काव पर 6000 रुपये खर्च करने के बाद भी कुछ नहीं बचा.' उन्होंने निराश होकर कहा, 'मैंने अपने सपनों को इस जमीन में बोया था, अब उन्हें जोतकर दफना रहा हूं.'
टोनी के मुताबिक, उन्हें प्रति एकड़ 1.2 लाख रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है, जिसमें किराया, खाद, बीज और मेहनत का सारा पैसा डूब गया. 9.5 एकड़ में उन्हें करीब 11 लाख रुपये का घाटा हुआ है. उनका कहना है कि सरकार इन पीआर वैरायटीज को बढ़ावा देती है लेकिन जब फसल बर्बाद होती है तो देखने तक कोई नहीं आता. यह दर्द सिर्फ टोनी का नहीं है। पटियाला जिले के भपाल गांव के किसान गुरविंदर सिंह की हालत भी वैसी ही है. उन्होंने 60 एकड़ में धान की बुआई की थी, जिसमें पीआर 131, 132, 126 और 128 जैसी सरकारी मंजूरी वाली किस्में थीं. अब लगभग पूरी फसल बर्बाद हो गई. उन्होंने कहा, 'जिन खेतों में पीआर 131 और 132 थी, वहां 2 क्विंटल प्रति एकड़ से ज्यादा नहीं मिला. कुछ हिस्सों में तो आधी फसल भी नहीं बची.'
उनकी जमीन में से सिर्फ 12 एकड़ अपनी है, बाकी पट्टे पर ली गई है और हर साल किराया 65,000 रुपये प्रति एकड़ है. इतना बड़ा निवेश डूबने के बाद भी अब तक कोई सरकारी सर्वे या मुआवजे की घोषणा नहीं हुई. गांव दर गांव, जनसूई, खाबरा और फरौर, में हालात एक जैसे हैं. जहां सामान्यत: 30–32 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन होता है, वहां अब किसान 2-3 क्विंटल पर सिमट गए हैं. कई किसानों ने तो अगली फसल की तैयारी के लिए अपनी नाकाम फसल जोत दी है.
खाबरा गांव के किसान गुरप्रीत सिंह कहते हैं, 'यह बीमारी हमें आर्थिक और मानसिक रूप से खत्म कर रही है. जब इतनी बड़ी मात्रा में फसल नष्ट हो जाए, तो इसे आपदा घोषित किया जाना चाहिए.' प्रभावित किसान अब हमदर्दी नहीं बल्कि न्याय की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि जब सरकार इन वैरायटीज को बढ़ावा देती है तो फसल नष्ट होने पर उसे भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए. किसानों ने मांग की है कि ‘बौनापन रोग’ को प्राकृतिक आपदा घोषित किया जाए और पारदर्शी सर्वे के आधार पर मुआवजा पैकेज दिया जाए. इस बीच, पंजाब कृषि विभाग के निदेशक जसवंत सिंह ने बताया कि प्रभावित इलाकों में ‘स्पेशल गिरदावरी’ (विशेष सर्वे) की प्रक्रिया चल रही है ताकि राहत राशि तय की जा सके.