Groundnut: कैसे 16वीं सदी की एक पुर्तगाली फसल ने बदलकर रख दी भारत के किसानों की जिंदगी

Groundnut: कैसे 16वीं सदी की एक पुर्तगाली फसल ने बदलकर रख दी भारत के किसानों की जिंदगी

इतिहासकारों के अनुसार, मूंगफली की शुरुआत भारत में पुर्तगालियों द्वारा लाए जाने के बाद हुई. उस समय भारत में मसालों और बाकी कृषि उत्पादों की डिमांड यूरोप में काफी बढ़ रही थी. पुर्तगाली जब एशिया की यात्रा के दौरान भारत आए तो अपने साथ मूंगफली के बीज भी ले आए. सबसे पहले इसे गोवा और कोंकण क्षेत्र में उगाया गया.

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क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Oct 13, 2025,
  • Updated Oct 13, 2025, 3:27 PM IST

मूंगफली, जिसे वैज्ञानिक भाषा में Arachis hypogaea कहा जाता है, आज भारत की एक प्रमुख फसल बन चुकी है. मगर क्या आप जानते हैं कि यह पौधा 16वीं सदी में पुर्तगालियों के माध्यम से भारत आया था? तब से लेकर आज तक, यह छोटा-सा बीज भारत की कृषि और अर्थव्यवस्था में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है. आज किचन में मूंगफली के तेल से लेकर सर्दियों में मूंगफली छीलते हुए गप्‍प मारने तक, यह जीवन का खास हिस्‍सा बन गई है. भारत में इसका इतिहास भी काफी खास रहा है और आज हम आपको उसके बारे में ही बताने जा रहे हैं. 

कैसे आई भारत 

इतिहासकारों के अनुसार, मूंगफली की शुरुआत भारत में पुर्तगालियों द्वारा लाए जाने के बाद हुई. उस समय भारत में मसालों और बाकी कृषि उत्पादों की डिमांड यूरोप में काफी बढ़ रही थी. पुर्तगाली जब एशिया की यात्रा के दौरान भारत आए तो अपने साथ मूंगफली के बीज भी ले आए. सबसे पहले इसे गोवा और कोंकण क्षेत्र में उगाया गया. शुरुआती दौर में इसे मुख्य तौर पर तेल निकालने और स्थानीय खाने में प्रयोग के लिए बोया गया. 

क्‍यों हो गई पॉपुलर 

मूंगफली के फैलने की असली वजह इसकी उपजाऊ प्रकृति और कम पानी में इसके उगने की ताकत थी. भारतीय किसानों ने इसे जल्दी अपनाया क्योंकि यह कम लागत में अधिक पैदावार देने वाली फसल थी. इसके अलावा, मूंगफली की मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने की खासियत ने भी इसे लोकप्रिय बनाने में मदद की. मूंगफली की जड़ें मिट्टी में नाइट्रोजन को बढ़ाती हैं. इससे फसलें स्वस्थ रहती हैं और बाकी फसलों के लिए एक उपजाऊ जमीन तैयार होती है. 

कहां-कहां होती है खेती 

समय के साथ, मूंगफली भारत के अलग-अलग हिस्सों में फैल गई. राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्‍ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य मूंगफली की खेती के बड़े केंद्र बन गए. राजस्थान के बाड़मेर और गंगानगर जिले, गुजरात का भावनगर और सूरत, महाराष्‍ट्र का नासिक और आंध्र प्रदेश के पश्चिमी जिले मूंगफली उत्पादन में सबसे आगे हैं. यह विविधता किसानों को अलग-अलग जलवायु में भी मूंगफली उगाने की सुविधा देती है. 

आज मूंगफली केवल खाने का सामान ही नहीं रही, बल्कि यह ऑयल इंडस्‍ट्री और कमर्शियल फार्मिंग का भी महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है. भारत दुनिया में मूंगफली तेल का बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. इसके अलावा, मूंगफली के भुने हुए बीज, चाकलेट, बटर और स्नैक्स जैसे कई प्रॉडक्‍ट्स ने इसे घरेलू और अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में और भी महत्वपूर्ण बना दिया है. 

कई किस्‍में हुई तैयार 

मूंगफली की सफलता का एक और कारण है वैज्ञानिक और टेक्निकल एडवांसमेंट. बीते दशकों में एग्री रिसर्च इंस्‍टीट्यूट्स ने नई मूंगफली किस्में विकसित की हैं, जो बीमारियों और कीटों के लिए ज्‍यादा प्रतिरोधक क्षमता वाली हैं और ज्‍यादा पैदावार भी देती हैं. किसान अब हाईब्रिड और उन्नत किस्में उगाकर अपनी आय बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा, सिंचाई और आधुनिक खेती के तरीकों के इस्तेमाल से मूंगफली की उपज में लगातार वृद्धि हुई है. 

ग्रामीण आय का जरिया 

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि मूंगफली भारत की अर्थव्यवस्था के लिए केवल एक फसल नहीं, बल्कि कृषि विविधता और ग्रामीण आय का एक स्तंभ है. यह छोटे और मध्यम किसानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है क्योंकि यह कम लागत में उगाई जा सकती है और जल्दी बिक जाती है. इसके अलावा, मूंगफली की खेती से किसानों को तेल बीज, पशु चारा और खाद्य सामग्री जैसी कई उपयोगी चीजें मिलती हैं. 

16वीं सदी में पुर्तगालियों द्वारा भारत लाए गए छोटे बीज ने अब पूरे देश में अपनी पकड़ बना ली है. यह बताता है कि कैसे एक विदेशी फसल ने भारतीय कृषि पर स्थायी प्रभाव डाला और आज यह भारत की प्रमुख फसलों में शामिल है. मूंगफली की यात्रा, गोवा के छोटे खेतों से लेकर राष्‍ट्रीय अंतरराष्‍ट्रीय बाजार तक, भारत की कृषि विविधता और किसान शक्ति की कहानी कहती है.  

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