कभी फायदेमंद मानी मानी जाने वाली पान की खेती अब अपनी चमक खोती जा रही है. इसकी खेती में लगे किसान गिरती बाजार कीमतों, सीमित विपणन सुविधाओं और बढ़ती मजदूरी लागत से जूझ रहे हैं. इन मुश्किल हालातों ने कई किसानों को अपनी पुरानी खेती छोड़ने की कगार पर पहुंचा दिया है. इस स्थिति को रोकने के लिए धर्मपुरी के किसानों ने बागवानी विभाग से प्रति खेप 12,000 रुपये का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) तय करने की मांग की है.
तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में करीब 250 एकड़ क्षेत्र में पान की खेती की जाती है जिसमें करीब 1,500 किसान लगे हुए हैं. पान की प्रमुख खेती पलायमपौडुर, कोम्बई, जल्लीकोट्टई, रेड्डीपट्टी और कोडीपट्टी गांवों में होती है. आमतौर पर जिले में उत्पादित पान के पत्ते बाजारों में ‘मुटाई’ नामक खेपों में बेचे जाते हैं. एक मुटाई में करीब 128 गड्डियां होती हैं और हर गड्डी में करीब 120 पत्ते शामिल होते हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से प्रतिकूल मौसम, रोग और कीट के हमलों बढ़ती मजदूरी लागत और मार्केटिंग के सीमित साधनों के कारण किसानों के मुनाफे पर गहरा असर पड़ा है.
कोमाथमपट्टी गांव के एस. देवराज ने बताया, 'पान किसान सिर्फ आठ महीने में एक बार ही अच्छी गुणवत्ता वाले पत्ते उगा पाते हैं. यानी हर साल किसान अपनी उपज को सिर्फ एक या ज्यादा से ज्यादा दो बार ही बेच सकता है. इतनी सीमाओं के बाद पिछले कुछ वर्षों से पान की कीमतें बेहद खराब रही हैं. उन्होंने बताया कि औसतन किसानों को प्रति खेप सिर्फ 7,000 से 9,000 रुपये तक ही मिलते हैं. बरसात के मौसम में कीमतें थोड़ी बेहतर रहती हैं लेकिन फिर भी यह लाभदायक नहीं है, खासकर बढ़ती मजदूरी लागत के कारण.
उनका कहना था कि हर हफ्ते खेतों की देखभाल के लिए करीब चार कुशल मजदूरों की जरूरत होती है जिनकी प्रति व्यक्ति मजदूरी 800 से 1,000 रुपये तक होती है. बरसात के मौसम में मजदूरी दरें और बढ़ जाती हैं, जिससे हमारे मुनाफे का बड़ा हिस्सा मजदूरी में ही चला जाता है.
जल्लिकोट्टई के एक और किसान आर. नागराज ने बताया, 'हमारे मुनाफे का बड़ा हिस्सा मजदूरी में चला जाता है. इसके अलावा हमें पौधों को बीमारियों से बचाने और खाद-उर्वरक पर भी काफी खर्च करना पड़ता है. पिछले साल गंभीर सूखे के कारण हालात बेहद खराब थे जिससे किसानों को सिंचाई पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ा. बाद में वर्ष के अंत में चक्रवात ‘फेंगाल’ से आई बारिश ने बेलों की सुरक्षा पर दोबारा निवेश करने को मजबूर कर दिया. नतीजा पूरी तरह घाटे का सौदा रहा, और इस साल भी हालात ज्यादा बेहतर नहीं हैं.'
वहीं कुछ किसानों का कहना है कि आने वाले मौसम में उत्तर-पूर्वी मॉनसून के दौरान उत्पादन में भारी गिरावट का सामना करना पड़ सकता है. उन्हें अब करीब 70 फीसदी तक नुकसान का डर सता रहा है. उस समय भले ही बाजार में कीमतें बढ़ जाएं पर अधिकतम 30,000 रुपये प्रति खेप तक ही मिल पाएंगे जो मुनाफे के लिए जरूरी नहीं होगा. इसलिए स्थिति बेहद अस्थिर है, और अगर यह जारी रही तो किसानों को पान की खेती छोड़नी पड़ सकती है. ऐसे में किसानों ने प्रति खेप 12,000 रुपये की एमएसपी की मांग की है ताकि थोड़ा फायदा मिल सके.
वहीं बागवानी विभाग के अधिकारियों ने कहा कि जिले में पान की खेती करने वाले किसानों की संख्या बहुत सीमित है. अगर किसान खरीद से जुड़ी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं तो वो कृषि विभाग के साथ मिलकर उनके लिए कोई समाधान निकाल सकते हैं. लेकिन जहां तक एमएसपी का सवाल है तो वह नीतिगत निर्णय है. ऐसे में वो इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते हैं.
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