केंद्र सरकार ने कपास पर 20 सितंबर 2025 तक के लिए इंपोर्ट ड्यूटी हटा दी है. इससे किसानों में आक्रोश है. वहीं, व्यापारियों और टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए यह राहत भरा कदम माना जा रहा है. किसान नेताओं का कहना है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और व्यापारियों को खुश करने के लिए सरकार ने यह निर्णय लिया है. ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने के बाद भारत सरकार ने कपास पर लगने वाला आयात शुल्क पूरी तरह हटा दिया है. सरकार का दावा है कि उसके इस फैसले से टेक्सटाइल इंडस्ट्री को राहत मिलेगी और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन किसान संगठनों का आरोप है कि यह फैसला किसानों के खिलाफ है और इसका सीधा असर उनकी कमाई पर पड़ेगा. अब सवाल ये है कि इस फैसले से किसका भला होगा और किसका नुकसान? पढ़िए आज तक की यह ग्राउंड रिपोर्ट… अकोला और नागपुर से.
विदर्भ का इलाका कपास उत्पादन का गढ़ है. अकोला जिले के निंभारा गांव के प्रगतिशील किसान गणेश नानोटे पाटिल ने 17 एकड़ में कपास बोया है, लेकिन अब केंद्र सरकार के फैसले ने उनकी नींद उड़ा दी है. उन्हें डर है कि अगर विदेशी कपास बाजार में सस्ते दाम पर आया तो उनकी मेहनत की फसल कौन खरीदेगा?
कपास किसान गणेश नानोटे पाटिल ने कहा, “सरकार ने ये ड्यूटी 30 सितंबर तक हटाई है. लेकिन, हमारी चिंता यह है कि अगर विदेशी कपास आ गया तो अक्टूबर से हमारी फसल कौन खरीदेगा? सीसीआई कितना खरीदेगी और किस दाम पर खरीदेगी ये साफ नहीं है. पहले भी सिर्फ 35% किसानों का कपास खरीदा गया था और उसमें भी अलग-अलग दाम मिले थे. हमें डर है कि कहीं इस बार भी नुकसान न हो.”
किसानों का कहना है कि कीटों का प्रकोप, मजदूरों की कमी और लगातार बढ़ती लागत पहले से ही कपास की खेती को घाटे का सौदा बना रही है. ऐसे में विदेशी कपास का दबाव और बढ़ गया तो भारतीय किसानों की फसल को मंडी में खरीदार तक नहीं मिल पाएंगे.
वहीं, अकोला के कपास व्यापारी नमन रुंगटा ने कहा कि दुनिया में सबसे महंगा कपास भारत में बिकता है. अगर बाहर से सस्ता कपास बिना ड्यूटी के आ रहा है तो व्यापारी वही खरीदेगा. व्यापार घाटे के लिए नहीं किया जाता. ऐसे में भारतीय किसानों का महंगा कपास कौन खरीदेगा? इसका नुकसान सीधे किसानों को होगा.
वहीं, विदर्भ के किसान नेता का आरोप है कि केंद्र सरकार का यह फैसला किसानों की जेब काटने वाला है. किसान नेता विजय जवंधिया ने आज तक से खास बातचीत में कहा कि आयात शुल्क माफ करने से किसानों को मिलने वाली एमएसपी पर भी असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, “पहले कपास पर 11% आयात शुल्क लगता था, जिसे अब हटा दिया गया है. इसका मतलब है कि किसानों को अब एमएसपी भी नहीं मिलेगी. सरकार कपास किसान को 8,110 रुपए प्रति क्विंटल देती है, लेकिन आयात शुल्क हटने के बाद किसानों को 7 हजार से भी कम दाम में कपास बेचना पड़ेगा. यानी सीधे एक हज़ार रुपए क्विंटल का घाटा. सरकार एक तरफ सम्मान निधि देती है और दूसरी तरफ किसानों की जेब काट रही है.”
एक तरफ व्यापारी और टेक्सटाइल इंडस्ट्री इस फैसले को राहत मान रही है, वहीं किसान संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार ने यह फैसला अमेरिकी दबाव और उद्योगपतियों के हितों को देखते हुए लिया है. किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही हैं. अब देखना यह होगा कि 30 सितंबर के बाद सरकार किसानों को राहत देने के लिए क्या कदम उठाती है. (नागपुर से योगेश पांडे की रिपोर्ट)