इस बेल का छिलका पतला, बीज कम और वजन 2 किलो तक...पढ़ें खास वैरायटी के बारे में

इस बेल का छिलका पतला, बीज कम और वजन 2 किलो तक...पढ़ें खास वैरायटी के बारे में

बेल की किस्मों में स्वर्ण वसुधा का नाम सबसे प्रमुख है. इसकी कई खासियतें हैं जो सभी बेल में इसे प्रमुख बनाती हैं. जैसे, इस किस्म के पेड़ पर सालों भर फल लगते हैं. सबसे खास बात ये है कि इसके एक बेल का वजन एक किलो से लेकर 2 किलो तक होता है.

दूसरे फलों की तरह किसान बेल का भी अच्छा उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.दूसरे फलों की तरह किसान बेल का भी अच्छा उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Apr 02, 2025,
  • Updated Apr 02, 2025, 7:23 PM IST

गर्मी आते ही बेल की मांग बढ़ जाती है क्योंकि इसका रस गर्मियों में अमृत के समान माना जाता है. बाकी सीजन में भी इसका रस पी सकते हैं, मगर गर्मियों में इसका फायदा कुछ अधिक होता है. बेल ऊपर से देखने में जितना सख्त दिखता है, अंदर से उसका गूदा उतना ही मुलायम होता है. इसके गूदे से बना रस पाचन तंत्र के लिए बहुत अच्छा माना गया है. ऐसे में बेल की एक बहुत ही खास किस्म है जिसका नाम है स्वर्ण वसुधा.

बेल की किस्मों में स्वर्ण वसुधा का नाम सबसे प्रमुख है. इसकी कई खासियतें हैं जो सभी बेल में इसे प्रमुख बनाती हैं. जैसे, इस किस्म के पेड़ पर सालों भर फल लगते हैं. सबसे खास बात ये है कि इसके एक बेल का वजन एक किलो से लेकर 2 किलो तक होता है. इसका सबसे बड़ा फायदा बेल की व्यावसायिक खेती करने वाले किसानों को होता है. ऐसे किसान स्वर्ण वसुधा किस्म को महंगे रेट पर बेचते हैं.

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स्वर्ण वसुधा किस्म की खासियत

बेल की बाकी वैरायटी से अधिक उपज स्वर्ण वसुधा किस्म से मिलती है. सिंचित क्षेत्र में अगर किसान इस किस्म को लगाता है तो एक पेड़ से 44 किलो तक पैदावार मिल सकती है. सामान्य तौर पर बाजार में 50 रुपये किलो तक बेल बिकता है. इस तरह  एक पेड़ से किसान 2 से 2.5 हजार रुपये तक कमाई कर सकता है. बाजार में इस किस्म की मांग इसलिए भी अधिक है क्योंकि एक फल से 80 परसेंट तक गूदे की रिकवरी मिलती है. 

बेल का छिलका अगर मोटा हो तो उसका वजन अधिक हो जाता है. इससे किसानों को बेचने में कम फायदा होता है. मगर स्वर्ण वसुधा किस्म में छिलका पतला होने के साथ गूदे की रिकवरी अधिक होती है. छिलका 2 एमएम तक पलता होने के साथ ही बीज की मात्रा भी बहुत कम होती है. बेल में बीज अधिक होने पर उसकी मांग कम हो जाती है. लेकिन स्वर्ण वसुधा के साथ ऐसी बात नहीं है.

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17-19 टन तक मिलेगी उपज

बेल की इस किस्म को लगाकर किसान प्रति हेक्टेयर 17-19 टन तक उपज ले सकते हैं. किसानों को अधिक उपज लेनी है तो हाई डेंसिटी तकनीक से रोपाई करनी चाहिए. यानी पौधों की रोपाई कम कम जगह में करनी चाहिए. झारखंड की मिट्टी को इस बेल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है. झारखंड के किसान इस बेल की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं.

 

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