चावल विश्व की 50 प्रतिशत जनसंख्या का मुख्य भोजन है और इसीलिए विश्व में धान की लगभग 7,000 किस्में बोई जाती हैं, जिनमें से लगभग 5,000 किस्मों की खेती हमारे देश में की जाती है. भारत में भी 40 करोड़ से अधिक लोग चावल खाते हैं. यानी विश्व के कुल उत्पादन का पांचवा भाग हमारे देश में उत्पादित होता है. देश में चावल की खेती उत्तर में हिमालय के हरे-भरे ढलानों से लेकर दक्षिण में बुंदेलखंड के पठारी क्षेत्रों तक और पश्चिम में देहरादून की घाटी से लेकर पूर्व में गंगा तक प्रचलित है. समय के साथ चावल की खपत में लगातार बढ़त देखी जा रही है. लेकिन धान में लगने वाले कुछ रोग की वजह से धान की उपज पर असर पड़ता दिखाई दे रहा है. उन्हीं रोगों में से एक है खैरा रोग. क्या है ये रोग और कैसे कर सकते हैं इसका बचाव, आइए जानते हैं.
क्या है धान में लगने वाला खैरा रोग
खैरा रोग फसल में जिंक की कमी के कारण पैदा होता है, जिससे न केवल फसल की क्वालिटी खराब होती है, बल्कि फसल का उत्पादन भी 40 फीसद तक कम हो जाता है. खैरा रोग से बचने के लिए धान की रोपाई के 25 दिन के अंदर ही खेत की निराई-गुड़ाई और निगरानी शुरू कर देनी चाहिए, ताकि समय रहते इसके लक्षणों की पहचान कर उपाय किए जा सकें.
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खैरा रोग की पहचान कैसे करें
- उत्तर बिहार के खेतों की मिट्टी में जिंक की काफी कमी है, जिसके कारण धान की फसल में बुवाई के 25 दिन बाद ही खैरा रोग के लक्षण दिखने लगते हैं.
- विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च क्षारीयता और कैल्शियम की मात्रा वाली मिट्टी में धान की खेती करने पर खैरा रोग का खतरा बढ़ जाता है.
- यह समस्या न केवल फसल के उत्पादन और उत्पादकता में बाधा डालती है, बल्कि धान के पौधों की वृद्धि, फूल, फसल और परागण में भी बाधा डालती है.
- खैरा रोग से प्रभावित होने पर धान के पौधों की पत्तियां हल्के भूरे और लाल रंग की होने लगती हैं.
- इससे न केवल पौधों की वृद्धि रुक जाती है, बल्कि धब्बों से भरी पत्तियां मुरझाने लगती हैं.
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धान में खैरा रोग की रोकथाम
- विशेषज्ञों के अनुसार धान की रोपाई के 25 दिन के अंदर खेत में निराई-गुड़ाई और निगरानी शुरू कर देनी चाहिए, ताकि समय रहते इसके लक्षणों की पहचान की जा सके और उपाय किए जा सकें.
- कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यह रोग जिंक की कमी से होता है, लेकिन इसमें कीटनाशक या फफूंदनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए.
- खैरा रोग से प्रभावित धान की फसल में रोग रोकने का काम विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही करें.
- 15 लीटर पानी में 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और 0.2 प्रतिशत बुझा हुआ चूना मिलाकर फसल पर हर 10 दिन में तीन बार छिड़काव करें.
- किसान चाहें तो चूना की जगह 2 प्रतिशत यूरिया का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
- इसके जल्दी निदान के लिए मिट्टी की जांच कराएं और आवश्यकतानुसार बीजोपचार करें. खेत की जुताई और उर्वरकों का प्रयोग करें.
- धान की रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें और प्रति हेक्टेयर फसल के हिसाब से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट मिट्टी में मिला दें.