Green Manure: खेती में मिट्टी की उर्वरकता बनाए रखने के लिए ग्रीन मैन्योर (Green Manure) का इस्तेमाल बेहद फायदेमंद होता है. ग्रीन मैन्योर (Green Manure) का मतलब उन फसलों से है जिन्हें खेत में उगाकर बाद में मिट्टी में मिला दिया जाता है. इससे मिट्टी में जैविक तत्व बढ़ते हैं और भूमि उपजाऊ बनती है. ढैंचा, सनई और लोबिया तीन प्रमुख फसलें हैं जिन्हें ग्रीन मैन्योर (green manure crops) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं इनकी बुवाई का सही समय और प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता.
एक हेक्टेयर खेत में ढैंचा की बुवाई के लिए 50 से 60 किलो बीज की जरूरत होती है. बुवाई के समय की बात करें तो ढैंचा की बुवाई का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जुलाई के बीच होता है. इस बीच किसान इसकी बुवाई कर सही उत्पादन ले सकते हैं. साथ ही इसके खासियत की बात करें तो ढैंचा मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाता है और खरपतवारों पर नियंत्रण रखता है. इसे 40-50 दिन बाद जब यह हरा-भरा हो जाता है, तब खेत में जोतकर मिट्टी में मिला देना चाहिए. इससे खेत की उर्वरकता में भारी सुधार होता है.
सनई की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 60 से 80 किलो बीज की आवश्यकता होती है. बुवाई के सही समय की बात करें तो सनई की बुवाई अप्रैल से जुलाई के बीच की जाती है. सनई एक गहरी जड़ वाली फसल है जो मिट्टी की बनावट को सुधारती है और उसमें जैविक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाती है. यह जलधारण क्षमता को भी बढ़ाती है, जिससे सिंचाई की जरूरत कम होती है.
लोबिया की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 25 से 35 किलो बीज की आवश्यकता होती है. लोबिया की बुवाई भी अप्रैल से जुलाई के बीच की जाती है. लोबिया नाइट्रोजन फिक्सिंग फसल है, यानी यह मिट्टी में नाइट्रोजन जोड़ती है. यह फसल तेजी से बढ़ती है और कम समय में खेत को हरा-भरा बना देती है, जिससे मिट्टी में जैविक सामग्री बढ़ती है.
आज के समय में अत्यधिक रासायनिक खादों के प्रयोग से मिट्टी की गुणवत्ता लगातार घट रही है. ऐसे में ग्रीन मैन्योर एक प्राकृतिक उपाय है जो मिट्टी को स्वस्थ और उपजाऊ बनाता है. यह पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है और लंबे समय तक खेत की उत्पादकता बनाए रखता है.