मई महीने में किसान खेतों में धान की खेती की तैयारी में जुट गए हैं. वहीं, खरीफ सीजन में देश के अलग-अलग क्षेत्रों में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. लेकिन हर क्षेत्र की अपनी चुनौतियां हैं. कहीं पानी की कमी है, तो कहीं बाढ़ की समस्या ऐसे में किसानों को अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार धान की उपयुक्त किस्म का चयन करना चाहिए. बता दें कि खरीफ सीजन में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती हैं और इसकी खेती से किसानों की अच्छी कमाई भी होती है.धान की खेती तो अच्छी होती है, लेकिन कभी-कभी सूखा बाढ़ और पानी की कमी से फसलों की पैदावार नहीं हो पाती. ऐसे में बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए जलरोधी किस्में मौजूद हैं, जो बाढ़ की स्थिति में भी अच्छी पैदावार देती हैं. आइए जानते हैं कौन सी हैं ये किस्में और क्या है इसकी खासियत.
सह्याद्रि पंचमुखी किस्म (Sahyadri Panchmukhi Variety): ये धान की एक खास किस्म है. सह्याद्रि पंचमुखी किस्म बाढ़ रोधी किस्म है, इस किस्म की खासियत यह है कि ये किस्म लगातार 8 से 10 दिन तक बाढ़ का सामना कर सकती है. इस धान की खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है. इस किस्म को आंचलिक कृषि और बागवानी अनुसंधान ने वर्ष 2019 में विकसित किया था, इस किस्म के पौधे अधिक पानी से गलते नहीं है और इसके चावल की क्वालिटी पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. यह किस्म रोपाई के बाद 130 से 135 दिन में तैयार हो जाती है, इतना ही नहीं, यह किस्म धान की अन्य किस्मों के मुकाबले 26 प्रतिशत तक अधिक पैदावार देती है.
स्वर्णा सब-1 किस्म (Swarna Sub 1 Variety): धान की स्वर्णा सब-1 किस्म भी बाढ़ प्रतिरोधी किस्म है. इस किस्म के धान के पौधे 14 से 17 दिन तक पानी में डूबे रहने के बाद भी खराब नहीं होते हैं. यह किस्म आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय की ओर से विकसित की गई थी. यह एक बौनी किस्म है. वहीं इस किस्म की सीधी बुवाई करने पर 140 दिन में पक जाती है, जबकि इस किस्म की रोपाई करने पर यह 145 दिन में पककर तैयार होती है. इसका दाना मध्यम आकार का और पतला होता है. बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में धान स्वर्णा सब -1 किस्म से औसतन प्रति हैक्टेयर 1 से 2 टन तक का अधिक लाभ होता है.
हीरा किस्म (Diamond Variety): ये बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में खेती के लिए धान की एक खास वैरायटी है. इस किस्म को भागलपुर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय की ओर से विकसित किया गया है, इस किस्म की खास बात यह है कि यह किस्म बाढ़ के पानी में 15 दिनों तक डूबी रहने के बाद भी खराब नहीं होती है. इस किस्म की पैदावार धान की अन्य किस्मों से ज्यादा होती है. वहीं, ये किस्म 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
ऊपर बताए गए किस्मों के अलावा धान की दो अन्य बाढ़ प्रतिरोधी किस्में भी है, जिन्हें असम कृषि अनुसंधान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया है. यह दो किस्में क्रमश: रंजीत सब-1 (Ranjit SAB-1) और बहादुर सब-1 (Bahadur Sub-1) हैं. यह दोनों ही किस्में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. बता दें कि असम के अलग-अलग क्षेत्रों में बाढ़ आने से धान की फसल बर्बाद हो जाती है. ऐसे में इस क्षेत्र के लिए विशेष रूप से धान की इस किस्म की बुवाई की जाती है.
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