राजस्थान के धौलपुर जिले में इस साल बहुत ज़्यादा बारिश से परेशान किसानों को खाद ढूंढने में मुश्किल हो रही है, क्योंकि उन्हें अपनी फसलों के लिए खाद ब्लैक में खरीदनी पड़ रही है. अभी रबी की फसल की बुआई का मौसम है. धौलपुर जिले के ज़्यादातर इलाकों में सरसों, गेहूं, चना और आलू की फसलें बोई जा चुकी हैं. लेकिन, DAP, यूरिया और अमोनियम खाद, जो फसलों की पहली सिंचाई में इस्तेमाल होती है, उन्हें ब्लैक में खरीदना पड़ रहा है.
हालात ये हैं कि सोमवार को किसानों ने राजाखेड़ा बाईपास पर सिलावट रोड पर जाम लगा दिया. जाम लगने के बाद दोनों तरफ गाड़ियों की लंबी कतारें लग गईं. मौके पर मौजूद पुलिस प्रशासन ने किसानों को समझा-बुझाकर जाम खुलवाया और ट्रैफिक बहाल कराया. जिले के राजाखेड़ा सबडिवीजन में किसानों को यूरिया खाद की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. बाजार में यूरिया की कमी से परेशान किसान सोमवार को खाद और बीज की दुकानों पर रैक आने के बाद उमड़ पड़े. पुरुष और महिलाएं दोनों ही अपने घर के काम छोड़कर सुबह 6 बजे से ही लाइन में लग गए. लेकिन दुकानें देर से खुलने से किसानों का गुस्सा भड़क गया.
शिकायत मिलने पर राजाखेड़ा SDM और तहसीलदार मौके पर पहुंचे. उन्होंने हालात का जायजा लिया और पुलिस की मौजूदगी में खाद बांटने का आदेश दिया. लेकिन, सिर्फ एक बैग मिलने पर किसान भड़क गए और राजाखेड़ा बाईपास पर सिलावट रोड पर जाम लगा दिया. काफी मशक्कत के बाद पुलिस जाम खुलवाने में कामयाब रही.
किसान राजकुमार और प्रमोद ने बताया कि वे सुबह 6 बजे से लाइन में लगे हैं, लेकिन दोपहर 12 बजे तक उनकी बारी नहीं आई. उनका कहना है कि ज़्यादा बारिश और सूखे के बाद खाद की कमी ने उनकी परेशानी और बढ़ा दी है. उन्होंने किसी तरह बीज बोकर फसल उगा ली, लेकिन यूरिया की कमी से फसल को खतरा है.
किसानों ने बताया कि एडमिनिस्ट्रेशन के निर्देश के मुताबिक, हर आधार कार्ड पर यूरिया का सिर्फ़ एक बैग दिया जा रहा है, जो उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी नहीं है. आलू, गेहूं और सरसों उगाने वाले किसानों के लिए यह "समुद्र में एक बूंद" के बराबर है. इससे उन्हें फिर से लाइनों में लगना पड़ेगा और खाद की कमी का सामना करना पड़ेगा. किसानों का कहना है कि वे दो साल से ज़्यादा बारिश से परेशान हैं. सरकार कोई मदद नहीं कर रही है.
खेती का खर्च बहुत ज़्यादा है. जब आलू जैसी कैश क्रॉप बोने की बात आती है, तो किसानों को खाद, बीज, यूरिया, जिप्सम और पेस्टिसाइड का खर्च उठाना पड़ता है, जिसका खर्च लगभग 40,000 रुपये प्रति एकड़ आता है. सरसों की खेती में आलू की तुलना में काफी कम लागत आती है. किसानों का अनुमान है कि सरसों की खेती में प्रति एकड़ करीब 10,000 रुपये का खर्च आता है. किसानों का कहना है कि महंगाई और ब्लैक मार्केट में खाद की खरीद ने उनकी कमर तोड़ दी है. किसानों ने सरकार से खाद आसानी से उपलब्ध कराने की मांग की है. किसानों का कहना है कि लाइन में लगने के बाद भी उन्हें आसानी से खाद नहीं मिल पा रही है. (उमेश मिश्रा का इनपुट)