कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि प्याज की फसल में खाद की कितनी मात्रा हो तो अच्छी पैदावार मिलेगी. रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के वैज्ञानिकों के अनुसार, प्याज के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत तैयार करते समय मिला दें. इसके अलावा 100 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस और 50 किलो पोटाश की जरूरत होती है.
नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय दें. नाइट्रोजन की बाकी मात्रा रोपाई के डेढ़ माह बाद खड़ी फसल में दें. जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में रोपाई से पहले जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिलाएं. या फिर जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट का छिड़काव पौधों रोपाई के 60 दिन बाद करें. अच्छी पैदावार के लिए खाद का संतुलन जरूरी है.
प्याज की फसल को शुरुआती अवस्था में कम सिंचाई की आवश्यकता जरूरत होती है. बुवाई या रोपाई के साथ एवं उसके तीन-चार दिन बाद हल्की सिंचाई जरूर करें, ताकि मिट्टी नम रहे. लेकिन बाद में सिंचाई की अधिक आवश्यकता रहती है. कंद बनते समय पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करनी चाहिए.
फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष पीले पड़कर गिरने लगते हैं. इस समय सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. वैज्ञानिकों के अनुसार 15×10 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए रोपाई कर दें. रोपाई के समय खेत में नमी और3-4 बार हल्की सिंचाई करें. ये तो रही खाद और पानी की बात. अब इसमें लगने वाली प्रमुख बीमारी आर्द्रगलन के बारे में बात कर लेते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक आर्द्रगलन बीमारी आमतौर पर नर्सरी एवं पौधे की शुरुआती अवस्था में नुकसान पहुंचाता है. यह मुख्य रूप से पीथियम, फ्यूजेरियम तथा राइजोक्टोनिया फंगीसाइड द्वारा होती है.
हालांकि, इस बीमारी का प्रकोप खरीफ मौसम में ज्यादा होता है. इस रोग में पौध के जमीन की सतह पर लगे हुए स्थान पर सड़न दिखाई देती है और आगे पौध उसी सतह से गिरकर मर जाती है.
रोकथाम के लिए बुवाई के लिए स्वस्थ बीज का चुनाव करना चाहिए. बुवाई से पहले बीज को थाइरम या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें. पौध शैय्या के ऊपरी भाग की मिट्टी में थाइरम के घोल (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या बाविस्टीन के घोल (1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए. जड़ और जमीन को ट्राइकोडर्मा विरडी के घोल (5.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.