तिल की अच्छी उपज के लिए इन किस्मों की बुवाई करें किसान, ये खाद डालना जरूरी

खाद-बीज

तिल की अच्छी उपज के लिए इन किस्मों की बुवाई करें किसान, ये खाद डालना जरूरी

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तिल की खेती मटियार और चिकनी मिट्टी में की जाती है. रबी-जायद की फसलें काटने के बाद दो जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर लें. इसके बाद कल्टीवेटर या देसी हल से दो बार जुताई करके मिट्टी को अच्छी तरह से समतल कर लें. जुलाई के पहले सप्ताह तक इसकी खेती कर लेनी चाहिए. अगर देर से बुवाई करते हैं तो उपज घटने की आशंका रहती है.

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तिल की खेती अगर समय पर कर रहे हैं तो 3-4 की दर से बीज और देर से बुवाई कर रहे हैं तो 4-5 किलो प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है. फसल की अधिक उपज लेने के लिए गुजरात तिल नंबर-1, गुजरात तिल नंबर-2, फुले तिल नंबर-1, प्रताप, ताप्ती, पदमा, एन-8, डीएम 1, पूरवा 1, आरटी 54 की खेती कर सकते हैं.

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बीजजनित रोगों से बचाने के लिए 2.5 ग्राम थीरम या कैप्टॉन प्रति किलो की दर से बीज शोधन में प्रयोग करें. अधिक उपज के लिए और निराई-गुड़ाई में आसानी के लिए तिल को पंक्तियों के बीच का फासला 30-45 सेमी रखें. बुवाई के 15 से 20 दिनों बाद पौधों की छंटाई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखें. बुवाई में बीज को 1.5-2.5 सेमी की गहराई पर डालें.

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तिल की फसल से अधिक उपज लेने के लिए फसल की बुवाई के बाद 25-30 दिनों तक खरपतवारों से मुक्त रखें. ध्यान रखें कि खेत में खरपतवार न हों, इससे उपज प्रभावित होगी. तिल में पहली निराई-गुड़ाई फसल बोने के 15 से 20 दिनों के अंदर करनी चाहिए. अगर खरपतवार अधिक हों तो बुवाई के 35-40 दिनों के अंदर दूसरी निराई-गुड़ाई करें.

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तिल में एक किलो प्रति हेक्टेयर की दर से फ्लूक्लोरेलिन सक्रिय दवा को 400-500 लीटर पानी में घोलकर गुड़ाई से पहले खेत में छिड़काव करने से खरपतवार नष्ट होते हैं. इससे फसल को बढ़ने का मौका मिलेगा और उपज भी अधिक होगी. इस दवा को फसल बोने से पहले मिट्टी में मिला दें. फ्लूक्लोरेलिन के अलावा एलाक्लोर (1-75 किलो) या पेंडीमेथिलीन (1 किलो) के प्रयोग से खरपतवार नष्ट होते हैं.

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ध्यान रहे कि इन उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले मिट्टी की जांच करा लें. आपको यह भी जान लेना चाहिए कि तिल की फसल को कितनी सिंचाई की जरूरत है. खेत में नमी के हिसाब से ही उर्वरकों का प्रयोग किया जाना चाहिए. अगर मिट्टी की जांच नहीं करा सकते तो सिंचित क्षेत्र में 40-50 किलो नाइट्रोजन, 20-30 किलो फॉस्फोरस और 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए.

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वर्षा आधारित फसल में 20-25 किलो नाइट्रोजन और 15 से 20 किलो प्रति हेक्टेयर फॉस्फोरस देना चाहिए. इसके साथ ही फसल में 10-20 किलो प्रति हेक्टेयर गंधक का प्रयोग करना चाहिए. इससे तिल की उपज अच्छी मिलती है. सिंचित मात्रा में नाइट्रोजन की आधी मात्रा जबकि असिंचित क्षेत्रों में सभी उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय बीज से 3-4 सेमी गहराई पर प्रयोग करें.