मिलीबग कीट आम की फसल के लिए एक बड़ा खतरा माना जाता है. यह कीट वैसे तो जमीन में रहता है, लेकिन जैसे ही आम की फसल में बौर आने लगते हैं, तो यह पेड़ों पर चढ़ना शुरू कर देता है और फूलों को बर्बाद करने लगता है. मिलीबग के हमले से बचाव के लिए किसानों के द्वारा अलग-अलग तरह के कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है जो इस समस्या का पूर्ण समाधान नहीं है. लखनऊ के फल पट्टी में ही इस कीट का खतरा बढ़ा है. ऐसे में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. हरिशंकर सिंह के द्वारा एक नए तरीके का इजाद किया गया है जिसके माध्यम से इस कीट पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है. यह तरीका काफी सस्ता और प्रभावी है, जिसे किसान अपनाकर अपनी आम, अमरूद और लीची की फसल को मिलीबग कीट से बचा सकते हैं.
मिलीबग की जमीन से निकलकर पेड़ की शाखाओं पर पहुंचकर भारी संख्या में एकत्रित हो जाते हैं और फिर फलों और पौधों का रस चूसने लगते हैं. मिलीबग के संक्रमण से आम की मंजरी सूख जाती है जिसके कारण फल नीचे गिर जाते हैं. यह कीट संक्रमण के दौरान एक प्रकार का मीठा स्राव भी छोड़ता है जिसे हनीड्यू कहते हैं जिसके माध्यम से किसान मिलीबग कीट के संक्रमण को पहचान सकते हैं.
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मिलीबग कीट से ज्यादातर फल उत्पादक अपनी फसल का बचाव करने के लिए पेड़ के तने के आसपास भुरभुरी मिट्टी में कीटनाशक को मिलाकर इकट्ठा कर देते हैं जिसके चलते मिलीबग पेड़ों पर चढ़ने से पहले ही मर जाता है. यह तरीका पूर्ण प्रभावी नहीं है. वहीं वही इसमें उपयोग होने वाले कीटनाशक के चलते फलों पर भी इसका असर देखा गया है. मिलीबग से निपटने के लिए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के कीट वैज्ञानिक डॉ हरिशंकर सिंह ने एक नया तरीका इजाद किया है जिससे इस कीट पर पूर्ण नियंत्रण पाया जा सकता है.
डॉ हरिशंकर सिंह बताते हैं कि मिलीबग जमीन में पड़ा रहता है जो दिसंबर के महीने से आम के फलों के तनों पर चढ़ना शुरू कर देता है. इसलिए सबसे पहले जमीन से लगे हुए तने पर कॉपर ऑक्सिक्लोराइड का छिड़काव करके फिर तनो के चारों तरफ गीली मिट्टी को टेप के द्वारा बांध दिया जाता है. इस टेप के ऊपर गोंद से सनी हुई एक सूती रस्सी को लगाया जाता है. जैसे ही मिलीबग जमीन से निकलकर पेड़ के तने पर चढ़ना शुरू होता है. इस पॉलिथीन के चलते वह चढ नहीं पाता है और जो ऊपर चढ़ जाते हैं वह गोंद से लगी हुई रस्सी में चिपक कर मर जाते हैं. यह पूर्ण तरीके से जैविक उपाय है और किसानों के लिए काफी सस्ता भी है. इस तरीके के अपनाकर किसान अपनी फसल का मिलीबग से बचाव कर सकते हैं और कीटनाशक पर होने वाले फालतू खर्च से भी बच सकते हैं.