उत्तर प्रदेश और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन दिनों गन्ने की फसल में पत्तियों के पीले पड़ने और सूखने की समस्या से जूझ रहे हैं. यह समस्या किसानों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि इससे गन्ने की उपज और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हो रही है. किसानों को समझ नहीं आ रहा है कि यह कौन सा रोग है. विशेषज्ञों के अनुसार, इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें जड़ बेधक कीट, गन्ने में पीला रोग और उकठा रोग शामिल हैं. हाल ही में, उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास विभाग के आयुक्त ने गन्ना वैज्ञानिकों और गन्ना विकास अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इस समस्या का समाधान किसानों को बताया जाए, ताकि वे इसका सही समाधान पा सकें. विशेषज्ञों का मानना है कि इन रोगों और कीटों की पहचान कर उनका समय रहते सही नियंत्रण किया जाए, तो फसल की हानि को रोका जा सकता है. आइए, इस समस्या के कारणों और उनके नियंत्रण के उपायों के बारे में जानें.
गन्ने की फसल में पत्तियों का पीला पड़ना और सूखना किसानों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है. इस समय गन्ने के खेतों में कुछ बीमारियों और कीटों के कारण फसल पीली पड़ रही है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि गन्ने की फसल का पीलापन जड़ बेधक कीट, वाइरल पीला रोग और उकठा रोग के कारण हो सकता है, क्योंकि इन कीटों और बीमारियों का प्रकोप इस समय अधिक देखा जा रहा है. इसलिए, किसानों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे पहले अपने खेत में जाकर रोग और कीटों से प्रभावित फसल के लक्षणों की पहचान करें, ताकि सही उपचार और दवाओं का उपयोग करके समय पर रोकथाम कर सकें.
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गन्ने की पत्तियों का पीला पड़ना और सूखना जड़ बेधक कीट के कारण हो सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, कई गन्ना किसानों के खेतों में जड़ बेधक कीट का प्रकोप देखा गया है. यह कीट गन्ने की जड़ों और तनों को नुकसान पहुंचाता है और भूमि के अंदर से तनों में छिद्र कर प्रवेश करता है. प्रारंभिक अवस्था में, अगर इसका प्रकोप होता है, तो मध्य पोई सूख जाती है. इस कीट का रंग भूरा होता है, जबकि इसके लार्वा हल्के पीले रंग के होते हैं. अगर गन्ने की जड़ों के पास यह कीट दिखाई दे, तो इमिडाक्लोप्रिड 200 मिलीलीटर को 400 लीटर पानी में मिलाकर गन्ने की जड़ों के पास ड्रेचिंग करें. जैविक नियंत्रण के लिए ट्राइकाग्रामा किलोनिसिस बेनिस कार्ड का उपयोग किया जा सकता है.
गन्ने की पत्तियों का पीला पड़ना और सूखना उकठा रोग के कारण भी हो सकता है. यह रोग फ्यूजेरियम मोनिलीफोर्मी, सिफेलोस्पीरियम सेकराई, या एक्रीमोनियम स्पीसीज द्वारा होता है. इस रोग में पत्तियों की मध्य शिरा पीली पड़ जाती है और गन्ना धीरे-धीरे हल्का और अंदर से खोखला हो जाता है. इसके नियंत्रण के लिए प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें. खेत में गन्ने के जड़ क्षेत्र में कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें और 15 दिनों के अंतराल पर यही प्रक्रिया दोहराएं. ट्राइकोडर्मा स्पीसीज को 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 100-200 किग्रा कम्पोस्ट खाद के साथ मिलाकर खेत में बिखेरें. सल्फर और जिंक का छिड़काव भी इस रोग पर प्रभावी नियंत्रण प्रदान कर सकता है.
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गन्ने की पत्तियों का पीला पड़ना और सूखना येलो लीफ वायरस के कारण भी हो सकता है. यह रोग गन्ने की फसल को दुनिया भर में प्रभावित कर रहा है. इस रोग में पत्तियों की मिडरिब पीली पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे पूरी पत्ती सूख जाती है. इस रोग का संक्रमण संक्रमित बीज गन्ना और एक प्रकार के चूषक कीट Melanaphis sacchari के माध्यम से होता है. इसके नियंत्रण के लिए कीट वाहकों का नियंत्रण जरूरी है. इसके लिए मैलाथियान (0.1%) या डाइमेक्रोन (0.2%) का प्रयोग करें. कार्बोफ्यूरान या फोरेट का मिट्टी में प्रयोग करें. सूखी पत्तियों को हटाकर मासिक अंतराल पर मैलाथियान का छिड़काव करें. इन उपायों को अपनाकर किसान अपनी फसल को इन रोगों और कीटों से बचा सकते हैं और गन्ने की पैदावार और गुणवत्ता को बनाए रख सकते हैं.