धान की रोपाई अब लगभग समाप्ति की ओर है. वहीं, पहले इसकी खेती करने वाले कई किसान धान की सोहनी (निराई–गुड़ाई) में जुट गए हैं. लेकिन, जो किसान खरीफ सीजन में धान के अलावा सब्जी की खेती करते हैं, उनके लिए यह समय खास मायने रखता है. विशेष रूप से परवल और फूलगोभी उगाने वाले किसानों के लिए यह सुनहरा मौका है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (समस्तीपुर) द्वारा जारी साप्ताहिक कृषि सुझाव में बताया गया है कि अभी का मौसम परवल की खेती के लिए बिल्कुल अनुकूल है.
साथ ही, फूलगोभी की नर्सरी के लिए भी किसान अभी से तैयारी शुरू कर दें. इसके अलावा, धान और मक्का की खड़ी फसलों में कीटों की नियमित निगरानी करना न भूलें, ताकि समय रहते बचाव किया जा सके.
केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जानकारी देते हुए बताया कि यह समय परवल की खेती के लिए काफी उपयुक्त है. इसकी खेती के दौरान किसान राजेंद्र परवल–1, राजेंद्र परवल–2, एफपी–1, एफपी–3, स्वर्ण रेखा, स्वर्ण अलौकिक सहित अन्य किस्मों का चयन कर सकते हैं. प्रति हेक्टेयर 2,500 गुच्छों की रोपाई करनी चाहिए. एक गुच्छे से दूसरे गुच्छे की दूरी 2×2 मीटर रखनी चाहिए. परवल के अच्छे फलन के लिए 5 प्रतिशत नर पौधों की रोपाई अवश्य करनी चाहिए. इस विधि से परवल का उत्पादन बेहतर होता है.
रोपाई के समय प्रति गड्ढा 3–5 किलोग्राम कंपोस्ट, 250 ग्राम नीम या अरंडी की खल्ली, 100 ग्राम एस.एस.पी (सिंगल सुपर फॉस्फेट), 25 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और 10–15 ग्राम थीमेट का उपयोग करना चाहिए.
फूलगोभी की नर्सरी के लिए किसानों को बीज चयन के दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. विश्वविद्यालय के अनुसार, फूलगोभी की मध्यकालीन अगहनी किस्मों में पूसी, पटना मेन, पूसा सिंथेटिक–1, पूसा शुभ्रा, पूसा शरद, पूसा मेघा, काशी कुवाँरी और अर्ली स्नोबॉल किस्मों की बुआई करनी चाहिए. बीज को उपचारित करने के बाद ही उथली क्यारियों में बोना चाहिए.
अगस्त महीने में मक्के की खड़ी फसल में तना छेदक कीट का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है. इसके लिए किसानों को फसल की लगातार निगरानी करनी चाहिए. इस कीट की सूंडियां पहले कोमल पत्तियों को खाती हैं, फिर मध्य कलीका की पत्तियों के बीच घुसकर तने में पहुंच जाती हैं और तने के गूदे को खाते हुए जड़ों की ओर सुरंग बनाती हैं. परिणामस्वरूप, मध्य कली मुरझाकर सूखी दिखाई देती है, और यदि उसे खींचा जाए तो आसानी से बाहर निकल आती है. ऐसे लक्षण दिखाई देने पर किसान कार्बोफ्यूरॉन (3जी) को 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों के गाभे में डालें. वहीं, जो धान की फसल 25–30 दिन की हो गई हो, उसमें प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन का उपयोग करें और खेतों से खरपतवार अवश्य निकाल दें.